नई दिल्लीः हाल ही में कतर में हुए फीफा वर्ल्ड कप के दौरान वहां की सरकार ने स्टेडियम और उसके आसपास शराब की ब्रिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था. सरकार ने अपने इस कदम पर दुनियाभर में होने वाली आलोचनाओं के बाद भी अपना फैसला नहीं बदला. वहीं दुबई में यूनाईटेड अरब अमीरात सरकार ने शराब की ब्रिक्री से  प्रतिबंध हटा लिया है. अरब देशों में शराब प्रतिबंधित है, लेकिन चोरी-छिपे और सख्त नियम कानूनों का पालन कर ये वहां भी मिल जाती है. वहीं, दुबई में पर्यटकों को लुभाने के लिए सरकार ने शराब की ब्रिकी को मंजूरी दे दी है. सरकार का मानना है कि पर्यटकों के आने से राजस्व में वृद्धि होगी. सरकारी कंपनियों ने ऐलान किया है कि शराब पर लगने वाले 30 फीसद टैक्स को हटाया जाएगा साथ ही शराब बेचने के लिए लाइसेंस खरीदने वालों को पैसे नहीं देने होंगे. यह ऐलान देश की सत्ता पर काबिज अल मख्तूम परिवार ने किया है. 

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नए साल के जश्न में मुस्लिमों को जाने से रोका गया था 
हालांकि, अभी दो दिन पहले ही भारत सहित दुनिया के कई देशों के धार्मिक नेताओं ने मुसलमानों को नए साल की पार्टियों से दूर रहने की सलाह दी थी, क्योंकि यहां शराब परोसी जाती है. मौलाना, उलमा और धार्मिक नेताओं ने ऐसे आदेश इसलिए जारी किए थे, क्योंकि इस्लाम में शराब एक हराम पेय पदार्थ माना जाता है, और इसके सेवन करने को बड़ा गुनाह माना जाता है. आईये जानते हैं, इस्लाम में शराब के वर्जित होने की आखिर क्या वजह है ?  


अरब के लोग भी कभी पीते थे शराब 
इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब के जमाने में अरब के लोग काफी भ्रष्ठ थे और भोग विलास में डूबे रहते थे. वह तरह-तरह की शराब बनाते थे और उसका सेवन करते थे. लोग शराब का कारोबार भी करते थे. फिर मोहम्मद साहब ने अल्लाह का पैगाम उन लोगों तक पहुंचाया और उन्हें शराब का त्याग करने का आदेश दिया. इसके बाद लोगों ने शराब का त्याग कर दिया. घरो में रखे शराब फेंक दिए. कारखानों में रखी शराब की खेपे सड़कों और नालियों में बहा दिए गए. 

एक आदेश पर लोगों ने छोड़ दिया सेवन 
मोहम्मद ने कहा, "अल्लाह ने लानत की है, शराब पर, उसके पीने वालों पर, पिलाने वालों पर, बेचने वालों पर, उसे खरीदने वालों पर और जिसके लिए वह निचोड़ी जाए और उस पर भी, जिसके पास वह ले जाई जाए.’’ यहां तक कि मोहम्मद ने हर उस चीज का सेवन करने से लोगों को रोका है, जो नशा पैदा करता है.’’ 
उन्होंने अपने एक दूसरे संबोधन में कहा था कि शराब और नशा इंसानों के बीच नफरत और फसाद पैदा करता है, जो शैतानों का काम है, इसलिए इंसानों को इससे दूर रहना चाहिए. कुरान की 5.10, 5.11, 5.12, 4.43 आयतों में शराब को लेकर स्पष्ट आदेश दिए गए हैं. 


शराब के सेवन से रोकने की वजह 
कुरान की आयतों में शराब के लिए 'खम’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है. खम अरबी भाषा का शब्द जिसका मतलब होता है कोई ऐसी चीज जिसके सेवन से इंसान की बुद्धि पर पर्दा पड़ जाता हो. इस शब्द की यही व्यवख्या दूसरे खलीफा  हजरत उमर रजि. ने भी अपने एक संबोधन में की थी. इससे यह साफ होता है कि इस्लाम में सिर्फ शराब ही नहीं बल्कि हर उस चीच के सेवन से लोगों को रोका गया है कि जिससे नशा पैदा होता हो और उसके बाद इंसान की सोचने समझने की सलाहियत नष्ट हो जाती है. 
इस्लाम शराब को लेकर इतना सख्त है कि दवा के तौर पर भी इसका सेवन वर्जित करार दिया गया है. शराब को यहां कोई दवा नहीं बल्कि अपने आप में एक बीमारी माना गया है. 

दवा के तौर पर भी शराब के सेवन पर रोक 
शराब के कम मात्रा में सेवन को लेकर इस्लामिक रिर्सच स्कॉलर मौलाना अबुल्लैस इस्लाही नदवी कहते हैं, " इस्लाम में शराब या किसी भी नशीले पदार्थ के कम मात्रा में सेवन की भी इजाजत नहीं है. यह इंसानी की कमजोरी की दृष्टि से एक बेहद तर्कसंगत बात है, क्योंकि शराब के बारे में एक प्रचलित धारणा है कि यह एक मार मुंह लग जाती है तो फिर छूटती नहीं है. वहीं, इसमें एक किसी सीमा का निर्धारण करना भी मुश्किल है, क्योंकि किसी चीज की सीमा मानव विवेक और बुद्धि ही तय करती है और जब शराब की कुछ घूंट अंदर जाने से आपकी बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाएगी तो आप इसकी सीमा कैसे तय करेंगे.’’ इसलिए मोहम्मद साहब ने कहा था कि जिस चीज की ज्यादा मात्रा नशा पैदा करे, उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम है.’’ 
अबुल्लैस इस्लाही कहते हैं, ईश्वर ने इंसानों को दुनिया के तमाम प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बनाया और उसे सबसे ज्यादा ज्ञान और बुद्धि का मालिक बनाया है, लेकिन अगर इंसान शराब और कोई अन्य नशा करके अपनी हली बुद्धि को भ्रष्ट कर ले तो इसे क्या कहेंगे. ये इंसानों का काम तो कतई नहीं हो सकता है. 


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