Pakistan Terrorism: पाकिस्तान के सियासी हालात और आर्थिक संकट के बीच बढ़ती दहशतगर्दना गतिविधियों से पाकिस्तान की फौज और हुकूमत कुछ अजीबो ग़रीब हालात का सामना करती नज़र आ रही है. माली परेशानी और देश में हो रहे दहशतगर्दाना हमलों जैसे बड़ी समस्‍याओं से बाहर का रास्ता उन्‍हें दिखाई नहीं दे रहा हैं. इन तमाम परेशानियों की जड़ कहीं न कहीं वहां की फौज और हुकूमत की नीतियों से जुड़ा हुआ है. एक समय ऐसा था जब पाकिस्‍तान  आतंकियों का ठिकाना बन चुका था और कैंप बनाकर इन्हें ट्रेनिंग दी जाती थी, लेकिन अब पाकिस्तान की हरकत उसी पर भारी पड़ रही है.


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तालिबान के सीनियर लीडर से दख़ल देने की मांग
अमेरिका के अफ़ग़ानिस्‍तान पर हमले के दौरान पाकिस्‍तान तालिबानियों  कों पनाह देता रहा था, आज पाकिस्‍तानी हुकूमत ख़ुद चौतरफ़ा परेशानियों का सामना करने पर तालिबान के आगे कमज़ोर हो गया है और मदद की अपील कर रहा है. टीटीपी, जिसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान कहा जाता है, वो पाकिस्‍तानियों के ख़ून का प्यासा बना हुआ है. बीती 30 जनवरी को पाकिस्‍तान के पेशावर की मस्जिद में हुए आत्मघाती बम ब्लास्ट के बाद पाकिस्तान की हुकूमत ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पर नकेल कसने के लिए तालिबान के सीनियर लीडर हिबतुल्लाह अखुंदजादा से हस्तक्षेप देने का मुतालबा किया है.


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जो बोया, वो काट रहा है पाकिस्तान
पाकिस्तान ने जैसा बोया, वैसी ही काट रहा हैं. उसकी करनी अब उसके सामने ही आ रही है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, पाकिस्‍तानी फ़ौज और सरकार दोनों के लिए एक बड़ा चैलेंज बना हुआ है. पहले भी कई हमलों में टीटीपी का नाम सामने आ चुका है, वो समय समय पर इस बात पर ज़ोर देता रहा है कि पाकिस्तान में पूरी तरह इस्लामी क़ानून लागू किए जाएं. बता दें कि 2014 में भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने पेशावर में एक सेना के स्‍कूल पर हमला बोलकर सैकड़ों स्‍कूली बच्‍चों को मौत की नींद सुला दिया था.