आतंक को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान के मौलवियों ने जारी किया फतवा, जानिए क्या कहा
Pakistan Fatwa: कहते हैं कि इंसान जो बोता है वही काटता है. ऐसा ही कुछ पाकिस्तान में हो रहा है. दरअसल पाकिस्तान के कुछ मौलानाओं ने आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी किया है.
Pakistan: दुनियाभर में दहशतगर्दी के लिए मशहूर पाकिस्तान भी अब आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी कर रहा है. क्योंकि पाकिस्तान में आतंकवाद की घटनाएं बढ़ रही हैं. खैबर पख्तूनख्वा के उलमा ने आतंकवादियों और आतंकवाद के काली करतूतों के खिलाफ फतवा जारी किया है. खैबर पख्तूनख्वा के दिग्गज मौलाना तैयब कुरैशी ने कहा कि उलेमा ने जिहाद से जुड़े कुछ सवालों के जवाब के लिए फतवा जारी किया था. डॉन न्यूज से बात करते हुए उन्होंने कहा, "हाल ही में, कुछ तथाकथित विद्वानों ने इस्लाम के नाम का इस्तेमाल करके अराजकता फैलाने की कोशिश की, इसलिए फतवा जारी करना हमारी जिम्मेदारी है."
14 पन्नों के फतवे पर मौलाना कारी एहसानुल हक, मुफ्ती सुब्हानुल्लाह जान, डॉ. मौलाना अताउर रहमान, मौलाना हुसैन अहमद, मौलाना डॉ. अब्दुल नासिर समेत अलग-अलग नजरियों से जुड़े 16 धार्मिक विद्वानों ने दस्तखत किए हैं. मुफ्ती मुख्तारुल्लाह हक्कानी, मौलाना तैयब कुरैशी, मौलाना सलमान उल हक हक्कानी, मौलाना रहमतुल्लाह कादरी, मौलाना उमर बिन अब्दुल अजीज, अल्लामा आबिद हुसैन शाकरी, मुफ्ती मेराजुद्दीन सरकानी, मुफ्ती रजा मुहम्मद हक्कानी, मुफ्ती खालिद उस्मानी, मौलाना शेख अब्दुल अजीज और मौलाना अब्दुल करीम शामिल हैं.
फतवे में विद्वानों ने पाकिस्तान में फैली अराजकता और अव्यवस्था की कड़ी निंदा की है. धार्मिक विद्वानों ने अफसरों के खिलाफ जंग का ऐलान करने वालों और हथियार उठाने वालों को सजा के काबिल ऐलान कर दिया है. साथ ही कहा कि किसी एक शख्स को जिहाद पर फैसला लेने का हक नहीं है और सिर्फ इस्लामिक स्टेट का मुखिया ही जिहाद का ऐलान कर सकता है.
गौरतलब है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने 28 नवंबर, 2022 को सरकार के साथ हुए संघर्षविराम समझौते को रद्द कर दिया था और अपने आंतकवादियों को देश भर में हमले शुरू करने को कहा था. जिसके बाद देश के विभिन्न हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों की गईं. अफगानिस्तान में मौजूद टीटीपी नेतृत्व के निर्देश पर ये हमले किए गए थे. टीटीपी, जो वैचारिक रूप से अफगान तालिबान से जुड़ा हुआ है, ने पिछले एक साल में देश में 100 से ज्यादा हमले किए हैं, उनमें से ज्यादातर अगस्त के बाद हुए हैं, क्योंकि टीटीपी और सरकार के बीच शांति वार्ता टूट गई थी.
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