जालंधर/लाहौरः पंजाब के 92 वर्षीय एक शख्स ने पाकिस्तान में रह रहे अपने भतीजे से सोमवार को 75 साल बाद मुलाकात की जब वह पाकिस्तान के करतारपुर साहिब के गुरुद्वारे में मत्था टेकने पहुंचे थे. ये दोनों चाचा और भतीजा मुल्क के बंटवारे के दौरान एक दूसरे से बिछड़ गए थे. साल 1947 में विभाजन के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा में इन लोगों के कई रिश्तेदार भी मारे गए थे. गुरु नानक देव के आखिरी मुकाम करतारपुर साहिब में सरवन सिंह ने अपने भाई के बेटे मोहन सिंह को पाकर गले लगा लिया. 

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मोहन सिंह अब बन गया है अब्दुल खालिक 
मोहन सिंह को अब अब्दुल खालिक के नाम से जाना जाता है, जो पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार में पले-बढ़े हैं. इस मौके पर दोनों परिवारों के कुछ सदस्य भी वहां मौजूद थे. खालिक के रिश्तेदार मुहम्मद नईम ने करतारपुर कॉरिडोर से लौटने के बाद फोन पर बताया कि खालिक साहब ने अपने चाचा के पांव छुए और कई मिनट तक उन्हें गले से लगाए रखा. उन्होंने कहा कि चाचा और भतीजे दोनों ने एक साथ चार घंटे गुजारे और यादें ताजा कीं और अपने-अपने मुल्कों में रहने के तरीके साझा किए. उनके मुलाकात पर, रिश्तेदारों ने उन्हें माला पहनाई और उन पर गुलाब के फूल बरसाए. 

बिछड़ते वक्त 6 साल का था भतीजा मोहन सिंह 
खालिक के रिश्तेदार जावेद ने उनके हवाले से बताया कि हम अपने जज्बात को शब्दों में बयां नहीं कर सकते, लेकिन यह ईश्वर का आशीर्वाद है कि हम 75 साल बाद फिर से मिल गए. उन्होंने कहा कि सिंह अपने भतीजे के साथ लंबे अरसे तक रहने के लिए वीजा हासिल करने के बाद पाकिस्तान आ सकते हैं. सरवन सिंह के नाती परविंदर ने बताया कि विभाजन के वक्त मोहन सिंह छह साल के थे और वह अब मुस्लिम हैं, क्योंकि पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला-पोसा था. 

यूट्यूबर ने मिलाया दोनों को 
चाचा-भतीजे को 75 साल बाद मिलाने में भारत और पाकिस्तान के दो यूट्यूबर ने अहम भूमिका निभाई है. जंडियाला के यूट्यूबर ने बंटवारे से संबंधित कई कहानियों का दस्तावेज़ीकरण किया है और कुछ महीने पहले उन्होंने सरवन सिंह से मुलाकात की थी और उनकी जिंदगी की कहानी अपने यूट्यूब चैनल पर पोस्ट की. सीमा पार, एक पाकिस्तानी यूट्यूबर ने भी मोहन सिंह की कहानी बयान की थी, जो बंटवारे के वक्त अपने परिवार से बिछड़ गए थे. इत्तेफाक से, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले पंजाबी मूल के एक शख्स ने दोनों वीडियो को देखने के बाद उन दोनों रिश्तेदारों को मिलाने में मदद की.

इस तरह दोनों ने एक दूसरे को पहचाना 
सरवन ने एक वीडियो में बताया कि उनके बिछड़ गए भतीजे के एक हाथ में दो अंगूठे थे और जांघ पर एक बड़ा सा तिल था. परविंदर ने कहा कि पाकिस्तानी यूट्यूबर की तरफ से पोस्ट किए गए वीडियो में मोहन के बारे में भी ऐसी ही चीज़ें शेयर की गईं थी. बाद में, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले शख्स ने सरहद के दोनों तरफ दोनों परिवारों से राब्ता किया. परविंदर ने कहा कि नाना जी ने मोहन को उनके चिह्नों के जरिए पहचान लिया.

हिंसा में मारे गए थे परिवार के 22 सदस्य 
सरवन का खानदान गांव चक 37 में रहा करता था, जो अब पाकिस्तान में है, और उनके परिवार के 22 सदस्य बंटवारे के वक्त हिंसा में मारे गए थे. सरवन और उनके परिवार के सदस्य भारत आने में कामयाब रहे. मोहन सिंह हिंसा से तो बच गए थे, लेकिन परिवार से बिछड़ गए और बाद में पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला-पोसा. सरवन अपने बेटे के साथ कनाडा में रह रहे थे, लेकिन कोविड-19 की शुरुआत के बाद से वह जालंधर के पास सांधमां गांव में अपनी बेटी के यहां रुके हुए हैं.
 


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