बम से उड़ाना चाहता था मस्जिद, लेकिन फिर हुआ कुछ ऐसा कि बन गया मुसलमान
American Ex-Soldier who accepted Islam: आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने वाले हैं जो मुसलमानों से इतनी नफरत करता था कि मस्जिद में बम ब्लास्ट करने का प्लान कर लिया. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि वह खुद मुसलमान बन गया.
Stranger at the Gate: किसी ने सही कहा है कि नफरत पर हमेशा मोहब्बत जीत पा लेती है. इस बात की गवाही दे रहे हैं अमेरिका के रिचर्ड मैकिनी. बता दे मैकिनी एक मस्जिद में ब्लास्ट कर के सभी नामाज़ियों को खत्म करना चाहते थे. लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ जिससे उनकी पूरी जिंदगी बदल गई. मैकिनी पर एक डॉक्युमेंट्री भी बन चुकी है. जिसका नाम 'Stranger at the Gate' है.
मुसलमानों के खिलाफ नफरत क्यों पैदा हुई?
मैकिनी ने 25 साल मरीन फोर्स में बिताए. इस दौरान उनकी पोस्टिंग खाड़ी के देशों में भी हुई. जहां उनको लगने लगा कि मुसलमान घातक दुशमन होते हैं. जिस वक्त वह अमेरिका के इंडियाना देश वापस पहुंचे तो उनकी नफरत खत्म नहीं हुई. बल्कि उनकी मुसलमानों के खिलाफ ये नफरत इतनी बढ़ गई कि अगर उन्हें कोई मुस्लिम शख्स रास्ते में मिल भी जाता तो वह अपना रास्ता बदल लेते. उनकी इसी नफरत को देखते हुए उनकी पत्नी ने भी उन्हें छोड़ दिया.
मैकिनी डॉक्युमेंट्री में बताते हैं कि वह जब भी अपने शहर आते थे तो उन्हें मजबूरन मुसलमानो को देखना पड़ता था. मैकिनी की नफरत यहां तक पहुंच गई कि एक दिन उन्होंने लोगों को नुकसान पहुंचाने का प्लान बना लिया.
मस्जिद में ब्लास्ट का प्लान
मैकिनी ने प्लान बनाया कि मस्जिद में ब्लास्ट किया जाए. इसके लिए उन्होंने जुमा का दिन चुना. इसके पीछे कारण था कि जुमा के दिन मस्जिद में लोग ज्यादा इकट्ठा होते हैं. मैकिनी ने सोचा था कि उनके किए गए ब्लास्ट में लगभग 200 लोग मारेंगे और घायल होंगे.
सब कुछ चल रहा था प्लान के हिसाब से
मैकिनी ने जैसा प्लान किया था वैसे ही चल रहा था. मैकिनी जैसे ही मस्जिद के गेट से गुजर रहे थे तो वहां मौजूद अफगान रिफ्यूजी डॉक्टर साबिर बहरमी ने उन्हें आवाज़ थी. डॉक्टर के साथ उनकी पत्नी बीबी बरहमी और एक स्थानीय शख्स जोमो विलियम था. इन लोगों के बर्ताव के मैकिनी इतने मुतास्सिर हुए है कि उनके मन में जो गलत सोच के बाद छाए हुए थे वह छटने लगे.
रोजाना जाने लगे मस्जिद
मैकिनी कहते हैं कि वह लोग काफी सादे और खुशमिजाज़ थे. वह अमेरिका रहते हुए भी काफी खुश दिखाई दे रहे थे. वह मुझसे काफी बाते करना पसंद कर रहे थे. इस एक्सपीरियंस से मेरी सोच बदली और मैंने रोजाना मस्जिद जाना शुरू कर दिया. जिसके 8 सप्ताह बाद इस्लाम कुबूल कर लिया. जानकारी के लिए बता दें मैकिनी इसके बाद मुन्सी इस्लामिक सेंटर के दो साल अध्यक्ष भी रहे.