Swastik Ban in Australia: ऑस्ट्रेलिया के दो राज्यों में स्वास्तिक पर बैन लगा दिया गया है. साउथ वेल्स और विक्टोरिया में स्वास्तिक के निशान को किसी भी तरह से दिखाना जुर्म माना जाएगा. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड और तस्मानिया ने भी स्वास्तिक को बैन करने की बात कही है. इसके पहले जुलाई 2020 में फिनलैंड ने अपने एयरफोर्स के प्रतीक चिन्ह से स्वास्तिक के निशान को हटा दिया था. पिछले साल अमेरिका के मैरीलैंड में स्वास्तिक को बैन करने के लिए एक बिल पेश हुआ था. तब हिंदू संगठनों ने इसका कड़ा विरोध जताया था.


स्वास्तिक क्या है?


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स्वास्तिक शब्द संस्कृत भाषा के शब्द स्वास्तिका से बना है. यह एक क्रॉस की तरह आकृति है. इसकी चारों भुजाएं 90 डिग्री पर मुड़ी होती हैं. ये भुजाएं चारों ओर एक ही तरफ क्लॉकवाइज़ मुड़ती हैं. स्वास्तिक का हिंदी में अर्थ होता है सौभाग्य, यह एक ऐसा चिह्न है जिसे खुशहाली और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि इस चिह्न को भगवान श्रीगणेश, सूर्य और ब्रह्मांड का भी प्रतीक माना गया है. अब आप सोच रहे होंगे कि ये प्रतीक इतना शुभ है तो इसे बैन क्यो किया जा रहा है? दरअसल, बाकी देशों में ज़रूरत के मुताबिक इसके अलग-अलग मायने निकाले जाते हैं.


स्वास्तिक को बैन करने की वजह 


न्यू साउथ वेल्स के ज्यूइश बोर्ड ऑफ डेप्यूटीज के CEO डेरेन बार्क का कहना है कि स्वास्तिक नाज़ियों का प्रतीक है. यह हिंसा को दिखाता है. जिसके चलते इसे बैन किया गया है. 


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नाज़ियो का प्रतीक चिन्ह कैसे बना स्वास्तिक?


1920 में हिटलर अपनी सेना को ताकतवर बनाने के लिए एक ऐसा झंडा चाहता था जो जर्मन लोगों और उसकी सेनाओं का प्रतिनिधित्व कर सके. जिसे देखते ही नाज़ियों में जोश भर जाए. 1935 के दौरान हिटलर की सेना लाखों यहूदियों को बेरहमी से मारा था. इसके बाद इस चिन्ह को यहूदी-विरोधी, नस्लवादी और फासीवादी माना जाने लगा.



हिंदुओं और नाज़ियों के स्वास्तिक में क्या फर्क है?


हिंदुओं में इस्तेमाल होने वाले स्वास्तिक के चारों कोनों में चार बिंदुएं होती हैं. ये चार बिंदू चार वेदों के प्रतीक हैं. जबकि नाज़ियों के झंडे पर बने स्वास्तिक में कोई बिंदू नहीं होती है. हिंदुओं में स्वास्तिक पीला और लाल रंग का इस्तेमाल किया जाता है जबकि नाजी झंडे में सफेद रंग की गोलाकार पट्टी में काले रंग का स्वास्तिक बना है. जिसको ‘हकेनक्रेज’के नाम से जाना जाता है. नाज़ी संघर्ष के प्रतीक के तौर पर इसका इस्तेमाल करते थे. जबकि हिंदू धर्म में यह शुभ और तरक्की का प्रतीक माना जाता है.


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