नई दिल्ली/लंदनः भारत में एक प्रसिद्ध कहावत है कि सांपों को दूध पिलाने वाला इंसान कभी उससे अमृत की उम्मीद नहीं कर सकता है. पाकिस्तान के साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ है, क्योंकि  ’अच्छे आतंकवादी और बुरे आतंकवादी’ की नीति अब पाकिस्तान के लिए उल्टी पड़ती जा रही है. भारत में आतंकवाद को शह देने वाला  पाकिस्तान अब खुद को ही आतंकवाद का शिकार बता रहा है. पिछले कुछ दिनों में सरकार ने आतंकवादियों से संघर्ष विराम समझौता खत्म होने के बाद लगातार आतंकवादियों का सफाया कर रही है. सरकार ने खुलकर आतंकवादियों का विरोध और उनके खिलाफ रणनीति बनाने का ऐलान कर दिया है. 

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देश के लिए गंभीर सुरक्षा खतरा पैदा करने लगे हैं आतंकवादी  
इस मामले में ब्रिटेन के राजनीतिक विश्लेषक क्रिस ब्लैकबर्न कहते हैं, पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन,  हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी जैसे सभी समूह अल-कायदा से जुड़े हुए हैं. यह संगठन न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरनाक हैं. कई जिहादी संगठन जो हमेशा से पाकिस्तानी सरकार और सेना की अमूल्य संपत्ति रहे हैं, अब इस्लामाबाद के लिए एक गंभीर सुरक्षा खतरा पैदा करने लगे हैं. 

स्कूल पर हमला कर पहली बार आतंकवादियों ने दी थी चुनौती 
पाकिस्तान में इस संभावित खतरे की पहचान पहली बार आठ साल पहले की गई थी, जब तहरीक ए तालिबान (टीटीपी) द्वारा पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर किए गए हमले ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था. इस महले में सैंकड़ों बच्चे मारे गए थे. पाकिस्तान ने तब से शैक्षणिक संस्थानों पर कई और हमले देखे हैं - जैसे 2016 में बाचा खान विश्वविद्यालय पर हमला और 2018 में गिलगित बाल्टिस्तान के दियामेर जिले में स्कूलों में आग लगाने की घटना. इस सभी घटनाओं के पीछे टीटीपी सहित पाकिस्तान के कई दूसरे इस्लामी चरमपंथी समूह शामिल थे. 

आतंकवादी समूहों को दी जा रही रियायत से बिगड़ी हालत 
टीटीपी द्वारा देश में आतंकवादी हमलों में वृद्धि किए जाने के बाद पाकिस्तानी सरकार उनके साथ समझौते करने की कोशिश में है. हालांकि, पिछले महीने, टीटीपी ने पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ महीने भर चले संघर्ष विराम समझौते को खत्म कर दिया था और पूरे देश में फिर से आतंकवादी हमले शुरू कर दिए हें. पाकिस्तान के अंदर और बाहर के कई विश्लेषकों ने टीटीपी को “रियायतें देने“ के लिए पाकिस्तानी सरकार की आलोचना की है. इन विश्लेषकों का मानना है कि कट्टरपंथी समूहों के साथ बातचीत करने की पाकिस्तान की नैतिक रूप से अव्यावहारिक प्रथा आतंकवादी उद्देश्यों को वैध बनाती है.

पाला हुआ सांप सिर्फ पड़ोसी को नहीं काटता है 
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राज्य अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के बयान का हवाला देते हुए हाल ही में कहा था, “अगर आपके पिछवाड़े में सांप हैं, तो आप उनसे सिर्फ अपने पड़ोसियों को काटने की उम्मीद नहीं कर सकते है. आखिरकार, वे उन लोगों को भी कभी न कभी काटेंगे जो उन्हें पालते हैं." दुर्भाग्य से, पाकिस्तान ने जयशंकर की सलाह पर ध्यान नहीं दिया और आज उसका नतीजा भुगत रहा है.

शुद्धतावादी इस्लाम की स्थापना चाहते हैं आतंकवादी 
उल्लेखनीय है कि पाकितान में शुरू से ही वहां की सरकारें  धार्मिक कट्टरपंथियों के साथ अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूहों के विकास में सहायता करती रही हैं. ये आतंकवादी समूह अब दो श्रेणियों में बंट गए हैं. एक विंग भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे लोकतंत्रों को निशाना बनाता है, जबकि दूसरा पाकिस्तान में ही एक शुद्धतावादी इस्लाम की स्थापना के लिए हिंसा का सहारा लेता है. सभ्य पाकिस्तानी समाज ने इनकी करतूतों की वजह से हजारों जानें गंवाई हैं, लेकिन फिर भी देश ने अपनी रणनीति नहीं बदली है.

पड़ोसी देशों को अस्थिर करना चाहता है पाकिस्तान 
इस मामले में पूर्व रक्षा विशेषज्ञ, ब्रिगेडियर राहुल भोंसले कहते हैं,  
“पाकिस्तान हमेशा से मानता रहा है कि पड़ोसी देश अस्थिर होना चाहिए. इस विश्वास को देखते हुए पाकिस्तान ने हमेशा सोचा है कि अगर अफगानिस्तान के तालिबान काबुल में सत्ता में आते हैं, तो उसे उसी से फायदा होगा. हालांकि, अभी तक पाकिस्तान ने यह महसूस नहीं किया है कि अगर आप पड़ोसी देशों में अस्थिरता पैदा करते हैं, तो इसका असर पाकिस्तान पर भी पड़ सकता है.’’ 
भोंसले कहते हैं, ’’संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों के कई नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में पाकिस्तान नाकाम रहा है. पाकिस्तान लंबे समय से देश के भीतर और बाहर आतंकवाद से निपटने के लिए उचित कार्रवाई करने में विफल रहा है. देश अब अपनी निष्क्रियता के नतीजों को भुगत रहा है, और इन सबका सबसे ज्यादा पीड़ित शांति और अमन पसंद पाकिस्तानी नागरिक हैं.


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