देश की उड़ान - जुहू समुद्र तट की गीली मिट्टी पर लैंड हुआ था एयर इंडिया का पहला विमान
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देश की उड़ान - जुहू समुद्र तट की गीली मिट्टी पर लैंड हुआ था एयर इंडिया का पहला विमान

जेआरडी देश के पहले पायलट बनकर ही संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने आने वाले समय में अपने जीवन का ज्यादातर हिस्सा देश के लिए एक एयरलाइंस तैयार करने लगाया.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: भारत के प्रमुख उद्योगपति जेआरडी टाटा ने 15 साल की उम्र में एक सपना देखा था. ये सपना था पायलट बनने का. इसके ठीक नौ साल बाद जब मुंबई में पहला फ्लाइंग क्लब खुला, तो जिस व्यक्ति को हवाई जहाज उड़ाने का सबसे पहला लाइसेंस मिला, वो जेआरडी ही थे. लेकिन जेआरडी देश के पहले पायलट बनकर ही संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने आने वाले समय में अपने जीवन का ज्यादातर हिस्सा देश के लिए एक एयरलाइंस तैयार करने लगाया और वो एयरलाइंस थी आज की एयर इंडिया. 

  1. जेआरडी टाटा ने एयरलाइंस शुरू करना चाहते थे. 
  2. टाटा संस को इस प्रस्ताव में दिलचस्पी नहीं थी. 
  3. अंत में उन्हें इसके लिए सिर्फ दो लाख रुपये मिले.

टाटा संस से जुड़े रहे आरएम लाला अपनी किताब दि क्रिएशन ऑफ वेल्थ में लिखते हैं कि जेआरडी टाटा ने टाटा संस के सामने एक एयरलाइन्स शुरू करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन टाटा संस के चेयरमैन दोराब टाटा इस प्रस्ताव को लेकर जरा भी उत्साहित नहीं थे. अंत में उन्हें सिर्फ दो लाख रुपये दिए गए.

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बेहद कम पूंजी 
वो इतनी कम पूंजी में भारत की पहली एयरलाइंस शुरू करने जा रहे थे और उनके पास कोई तकनीकी सहायता नहीं थी. कोई रेडियो नहीं, संचालन या  उतरने का मार्गदर्शन नहीं. इतना ही नहीं उनके पास कोई हवाई अड्डा भी नहीं था. वो विमान उतारने के लिए मुंबई में जुहू के गीली मिट्टी के मैदान का इस्तेमाल करते थे. इसके बावजूद टाटा एविएशन सर्विसेज की कोई फ्लाइट कभी मिस नहीं हुई. कंपनी करांची-मुंबई-मद्रास रूट पर विमान का संचालन करती थी. ये विमान छोटे थे और सिर्फ डाक सेवा तक सीमित थे. 1936 तक टाटा एविएशन की कमाई आसमान छूने लगी. 

अब टाटा संस इस कंपनी पर ध्यान देने लगी थी. डाक से आगे बढ़कर यात्री सेवाओं का युग आ गया था. टाटा समूह को भारत सरकार से यूरोप सेवाओं की मंजूरी मिल गई. यूरोप उड़ान से पहले 1946 में एयर इंडिया की पहचान के तौर पर महाराजा को अपनाया गया. और फिर आठ जून को एयर इंडिया इंटरनेशनल ने अपने मशहूर महाराजा के साथ यूरोप की ओर पहली उड़ान भरी. एयरलाइन जल्द ही संसार की सबसे अच्छी एयरलाइंस में शामिल हो गई. हालांकि 1953 में सरकार ने देश की सभी एयरलाइंस के राष्ट्रीयकरण का फैसला लिया. 

इस तरह एविएशन क्षेत्र में टाटा की उड़ान थम गई. दूसरी ओर एयर इंडिया को आगे चलकर सरकारी नीतियों का खामियाजा उठाना पड़ा और आज वो दुनिया की बेहतरीन कंपनी से एक बीमारू कंपनी बन गई है. विडंबना ये है कि सरकार अब एक बार फिर उसका निजीकरण करना चाहती है, लेकिन उसे कोई खरीददार नहीं मिल रहा.

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