आर्थिक सर्वे 2015 : आठ फीसदी से अधिक विकास दर का अनुमान, सुधारों को आगे बढ़ाने पर जोर
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आर्थिक सर्वे 2015 : आठ फीसदी से अधिक विकास दर का अनुमान, सुधारों को आगे बढ़ाने पर जोर

वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को संसद में साल 2015-16 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया। लोकसभा में आज पेश इस आर्थिक सर्वे में साल 2015-16 के लिए 8 फीसदी से अधिक विकास दर का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा, बड़े स्‍तर के सुधारों की गुंजाइश का लक्ष्‍य तय किया गया है।

आर्थिक सर्वे 2015 : आठ फीसदी से अधिक विकास दर का अनुमान, सुधारों को आगे बढ़ाने पर जोर

नई दिल्‍ली : वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को संसद में साल 2015-16 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया। लोकसभा में आज पेश इस आर्थिक सर्वे में साल 2015-16 के लिए 8 फीसदी से अधिक विकास दर का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा, बड़े स्‍तर के सुधारों की गुंजाइश का लक्ष्‍य तय किया गया है।

आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाये जाने, कच्चे तेल की कीमत में नरमी तथा नीतिगत ब्याज दर में कटौती से देश की आर्थिक वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में 8.1 से 8.5 प्रतिशत रहेगी और आने वाले वर्षों में दहाई अंक तक चली जाएगी। केंद्रीय बजट से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से संसद में रखे गए 2014-15 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘सुधारों के आगे बढ़ने, तेल कीमतों में गिरावट, मुद्रास्फीति में नरमी के साथ नीतिगत ब्याज दर में कमी तथा 2015-16 में मानसून सामान्य रहने के प्रभावों से वृद्धि को गति मिलेगी।’ चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो 2013-14 के 6.9 प्रतिशत से ऊंचा है।

समीक्षा के अनुसार 2014-15 के लिये नये अनुमान के आधार के तहत स्थिति मूल्य पर जीडीपी वृद्धि दर 2015-16 में 8.1 प्रतिशत से 8.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। इसमें कहा गया है कि आने वाले वर्ष में बाजार मूल्य पर जीडीपी वृद्धि दर 2014-15 के मुकाबले 0.6 प्रतिशत से 1.1 प्रतिशत अंक अधिक रहने का अनुमान है। 2014-15 की आर्थिक समीक्षा में संकेत दिया गया है कि सुधारों के लिये स्पष्ट राजनीतिक जनादेश तथा बाह्य माहौल बेहतर होने से देश की आर्थिक वृद्धि दर दोहरे अंक में जाने की उम्मीद है। इसमें कहा गया है कि मुद्रास्फीति में गिरावट तथा इसके कारण नीतिगत ब्याज दर में कमी से ब्याज से संबद्ध क्षेत्रों में घरेलू खर्च बढ़ने तथा कंपनियों के ऋण में कमी एवं इससे उनके बही-खाते मजबूत होने के कारण वृद्धि को गति मिलेगी। इसके अलावा इस साल पिछले वर्ष के मुकाबले मानसून बेहतर रहने के अनुमान से भी आर्थिक वृद्धि उंची रहने की संभावना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सरकार ने कई क्षेत्रों में डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने, विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढ़ाने आदि जैसे आर्थिक सुधार किए हैं। समीक्षा में कहा गया है कि सुधारों को बढ़ाने के लिये स्पष्ट जनादेश और अनुकूल बाह्य परिवेश से, अब भारत के दहाई वृद्धि के दायरे में पहुंचने की उम्मीद बढ़ गई है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार पिछले साल मई में हुये आम चुनाव के बाद स्पष्ट जनादेश के साथ सत्ता में आई है। समीक्षा में सुधारों को बढ़ाने की पहल के तहत जिन क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है उनमें श्रम कानूनों में सुधार, ढांचागत सुविधाओं को बढ़ाने और भारत में कारोबार करने की लागत में कमी के लिये बेहतर परिवहन एवं संपर्क सुविधा पर जोर दिया गया है।

समीक्षा में कहा गया है कि अगले कुछ समय में कच्चे तेल के दाम घटने, निम्न मुद्रास्फीति को देखते हुये मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में संभावित गिरावट और मुद्रास्फीतिक धारणा में नरमी के साथ साथ मानसून सामान्य रहने की भविष्यवाणी से आर्थिक वृद्धि को जरूरी प्रोत्साहन मिल सकता है। समीक्षा के अनुसार कृषि उत्पादन बेहतर रहने से चालू वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि आठ प्रतिशत तक पहुंच सकती है हालांकि, केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के इस महीने की शुरआत में जारी आंकड़ों के अनुसार जीडीपी वृद्धि 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसमें कहा गया है, कई सुधारों को आगे बढ़ाया गया है और कई सुधार जल्द शुरू होंगे। वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू होने तथा प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरिण (डीबीटी) योजनायें पासा पलटने वाली साबित होंगी।

राजग सरकार ने सत्ता में आने के बाद पिछले दस महीनों के दौरान जिन अहम् सुधारों को आगे बढ़ाया उनमें डीजल मूल्य सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना, घरेलू एलपीजी सब्सिडी का प्रत्यक्ष हस्तांतरण, रक्षा और बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सीमा बढ़ाना तथा कोयला क्षेत्र में खान आवंटन के लिये अध्यादेश जारी किया है। समीक्षा के अनुसार चालू वित्त वर्ष के दौरान देश में वृहद आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया है लेकिन निर्यात, निर्माण और खनन क्षेत्र की गतिविधियों में वृद्धि के रझान को लेकर चिंता जताई गई है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि देश को अगले एक-दो साल की मध्यम अवधि में सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले तीन प्रतिशत राजकोषीय घाटे को पाने के लक्ष्य का अवश्य अनुसरण करना चाहिये। इसमें कहा गया है कि ऐसी स्थिति बनने से घरेलू अर्थव्यवस्था को भविष्य के झटकों में संभालने और दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के वित्तीय प्रदर्शन के करीब पहुंचने में मदद मिलेगी। इसमें कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ऐसा लगता है कि अब सुस्ती, लगातार उंची मुद्रास्फीति, उंचे राजकोषीय घाटे, कमजोर पड़ती घरेलू मांग, बाह्य खाते में असंतुलन और रुपये की गिरती साख जैसी स्थिति से आगे निकल चुकी है।

मुद्रास्फीति की रफ्तार अप्रैल से दिसंबर की अवधि में गिरावट में रही है। समीक्षा अगले वित्त वर्ष 2015-16 में मुद्रास्फीति 5 से 5.5 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान है। गिरती मुद्रास्फीति और चालू खाते के घाटे (कैड) में उल्लेखनीय सुधार आने से भारत अब एक आकषर्क निवेश स्थल के तौर पर बन गया है। अगले वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा घटकर जीडीपी का एक प्रतिशत रहने का अनुमान है।

पर्यावरण चुनौतियों से निपटने और उर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास पर विशेष जोर के साथ भारत ने 2022 तक सौर और पवन उर्जा समेत अक्षय उर्जा के विभिन्न स्रोतों की स्थापित क्षमता 170,000 मेगावाट तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। साथ ही नवीकरणीय उर्जा के क्षेत्र में एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी स्थापित करने की योजना बनायी गयी है। संसद में पेश 2014-15 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2022 तक सौर ऊर्जा मिशन के तहत लक्ष्य पांच गुना बढ़ाकर 1,00,000 मेगावाट किया गया है। कुल मिलाकर 2022 तक अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में संयुक्त स्थापित क्षमता 170,000 मेगावाट करने का लक्ष्य रखा गया है।

 

आर्थिक समीक्षा में 'मेक इन इंडिया' और स्किलिंग इंडिया में संतुलन की जरूरत पर जोर  

आर्थिक समीक्षा 2014-15 में “मेक इन इंडिया” को नई सरकार की अग्रगामी पहलकदमी और प्रमुख नीतिगत उद्देश्य के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। समीक्षा में इस बात पर विचार किया गया कि भारत को क्या करना चाहिए? – विनिर्माण या सेवा। समीक्षा कहती है कि भूमिका के तौर पर, विस्तार और संरचनात्मक बदलावों के विस्तार के लिए भारत को अपने विस्तृत अकुशल श्रम को उपयोग में लाना चाहिए।समीक्षा, पंजीकृत विनिर्माण (औपचारिक क्षेत्र) को सामान्य विनिर्माण से अलग करती है जिसमें अनौपचारिक क्षेत्र भी शामिल है। आर्थिक समीक्षा पंजीकृत विनिर्माण को संरचनात्मक बदलाव की संभावना से भरपूर मानती है। साथ ही यह भी कि पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से ज्यादा उत्पादकता प्रदर्शित करता है।

हालांकि आर्थिक समीक्षा यह महसूस करती है कि भारत में विनिर्माण उत्पादकता, बाकी देशों से बहुत कम है। समीक्षा पहचान करती है कि सभी राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र के हिस्से में कमी आई है।  इसके साथ ही समीक्षा यह भी देखती है कि पंजीकृत विनिर्माण का क्षेत्र विभिन्न क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने में सक्षम नहीं है। साथ ही पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र की पहचान कौशल उन्मुख क्षेत्र के रूप में हुई है जो कि भारत की बड़ी अकुशल श्रमिक फौज के उपयोग के विचार से मेल नहीं खाती।

आर्थिक समीक्षा, आर्थिक वृद्धि के इ्ंजन के रूप में, विनिर्माण को बढ़ावा न देने की चार वजहों को चिन्हित करता है –

· श्रम बाजार में विकृति

· वित्त बाजार में विकृति

· भूमि बाजार में विकृति

·तुलनात्मक रूप से अकुशल श्रमिक बाजार के फायदे की विशेषज्ञता का अभाव

सेवाओं के कुछ उपक्षेत्र जैसे वित्तीय सेवाएं और व्यावसायिक सेवाएं, पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र के मुकाबले अधिक उत्पादकता प्रदर्शित करते हैं। हालांकि समीक्षा में यह कहा गया है कि सेवा क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में घरेलू वृद्धि की क्षमता है।इसलिए समीक्षा विनिर्माण बनाम सेवा के प्रश्न पर पुनः विचार करना चाहती है। यह कहती है कि वास्तविक प्रश्न यह होना चाहिए कि क्या हम अकुशल श्रम उन्मुख क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं या कौशल आधारित क्षेत्र का विकास । आर्थिक समीक्षा इस निर्णय पर पहुंची है कि भारत को कम कुशल श्रम के साथ कौशल विकास की उपलब्धता में संतुलन रखना चाहिए। अकुशल श्रम की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र को निश्चय ही विस्तार करना चाहिए ताकि उसका लाभ लिया जा सके। हालांकि “मेक इन इंडिया” को एक प्रमुख लक्ष्य के तौर पर प्रमुखता मिली है तो भी भारतीय विकास के भविष्य की राह “मेक इन इंडिया” और “स्किलिंग इंडिया” दोनो पर निर्भर होगी।

मुद्रास्फीति संबंधी प्रक्रिया में संरचनात्मक परिवर्तन

आर्थिक समीक्षा 2014-15 के अनुसार अर्थव्यवस्था से भारतीय रिजर्व बैंक का मुद्रास्फीति लक्ष्य 0.5 से 1 प्रतिशत तक प्रभावित होने की संभावना है जिससे आर्थिक नीति को और अधिक सरल बनाया जा सकेगा। मुद्रास्फीति की गति ने बाजार भागीदारों और नीति निर्माताओं के साथ-साथ भारतीय रिजर्व बैंक को भी चकित कर दिया है।

तिमाही औसत के आधार पर मापी गई वृद्धि 15 प्रतिशत से घटकर 5 प्रतिशत से भी कम हो गई है जो समग्र मुद्रास्फीति के स्तर से नीचे हैं। तेल की कीमत 2014-15 की तुलना में 2015-16 के दौरान लगभग 29 प्रतिशत कम रहेंगी। विश्व अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में धीमे विकास के कारण मांग कमजोर रहने की संभावना है। तेल की कीमतों के अलावा भारत की मुद्रास्फीति कृषि,विदेशी और घरेलू दबाव से निर्धारित होगी। वैश्विक कृषि कीमतें कम रहेंगी जिसमें वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2015 4.8 प्रतिशत की कमी हो सकती है। तिलहनों और दलहनों का घरेलू उत्पादन लक्ष्य से कम हो सकता है किन्तु अधिक आयात से इस क्षेत्र की मुद्रास्फीति से संबंधित कमी या अधिकता को कम करने में सहायता मिलेगी। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जो 2014-15 में 6.5 प्रतिशत मुद्रण होने की संभावना है वह और भी नीचे आ सकती है।

मुद्रास्फीति संबंधी स्थितियों को सरल बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने 2015 में पॉलिसी रेपो रेट में 25 आधार अंक को 7.95 प्रतिशत तक किया था जिससे पॉलिसी दर को बाजार दरों के अनुसार किया जा सकता है। नगदी स्थितियां 2014-15 तक सामान्य रूप से संतुलित रही। वित्तीय घाटे के नियंत्रण में रहने और नए नगदी प्रबंधन ढांचे से 2015-16 में नगदी स्थितियां अनुकूल रहने की संभावना है।

आर्थिक अर्थव्यवस्था की स्थिति- सिंहावलोकन

·        भारत निराशा और अनिश्चितता के माहौल में कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच उज्जवल संभावनाओं के साथ उभरा है। अनेक विकसित और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं निराशा और अनिश्चिताओं की चपेट में हैं।

·        अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी, निरंतर मुद्रास्फीति, बढ़ते हुए राजकोषीय घाटे, घटती हुई घरेलू मांग, विदेशी खाता असंतुलनों और रूपए की घटती कीमत से जुड़ी असुरक्षाओं से काफी हद तक मुक्त हो गई है।

·        केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने राष्ट्रीय लेखा का आधार वर्ष 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया है। इसमें कारपोरेट कार्य मंत्रालय के एमसीए डाटा बेस से कारपोरेट क्षेत्र में विनिर्माण और सेवाओं में व्यापक जानकारी प्रणाली गत परिवर्तन कवरेज शामिल है। इसके परिणामस्वरूप सकल मूल्य योजित जीवीए के सकल और क्षेत्रवार-स्तरों पर अनुभागों का संशोधन हुआ है। नई प्रणाली के अधीन सकल घरेलू उत्पाद द्वारा मुख्य वृद्धि दर घटक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद के बजाए स्थिर बाजार मूल्यं पर आंकी जाती है।

·        घटक लागत पर जीवीए द्वारा आंका गया सेवाओं का हिस्सा वर्ष 2011-12, 2012-13 और 2013-14 के दौरान क्रमशः 55 प्रतिशत, 56.2 प्रतिशत और 57 प्रतिशत रहा है जबकि पूर्व संशोधन के अऩुसार (2004-05) इसे नई श्रृंखला (2011-12) के अधीन इसे क्रमशः 48.2 प्रतिशत, 49.6 प्रतिशत और 51 प्रतिशत संशोधित किया गया है जबकि औद्योगिक क्षेत्र के हिस्से में संशोधित करके बढ़ोत्तरी की गयी है।

·        वर्ष 2012-13 में स्थिर बाजार मूल्य (2011-12) पर सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 5.1 प्रतिशत थी जो 2013-14 में बढ़कर 6.9 प्रतिशत हो गई। इस दर का 2014-15 में बढ़कर 7.4 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है (अग्रिम अनुमान) ।

·        वर्ष 2014-15 की पहली तीन तिमाही में (2011-12 मूल्यों पर) स्थिर आधार मूल्यों पर जीवीए द्वारा आंकी गई वृद्धि क्रमशः 7 प्रतिशत, 7.8 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत है।

·        चालू वर्ष में अर्थव्यवस्था में (स्थिर मूल्यों पर व्यक्त) अंतिम खपत व्यय में वृद्धि मजबूत हुई है।

·        वर्ष 2014-15 में वृद्धि मुख्य रूप से घरेलू मांग के कारण हुई है। 2014-15 में मुश्किल से कोई बाह्य समर्थन सहायता मिली है क्योंकि निर्यात वृद्धि केवल 9 प्रतिशत लक्षित है और आयात की वृद्धि दर लगभग (-0.5) प्रतिशत है। चालू वर्ष में आयात में कमी की अंतर्राष्ट्रीय तेल मूल्यों में तेजी से हुई गिरावट से महत्वपूर्ण पूर्ति हुई है जिससे तेल का आयात बिल कम हुआ है।

·        सकल घरेलू बचत दर में गिरावट आई है जो 2011-12 में सकल घरेलू उत्पाद की 33.9 प्रतिशत थी। 2012-13 में घटकर 31.8 प्रतिशत हो गई। 2013-14 में यह और घटकर 30.6 प्रतिशत हो गई। इस का मुख्य कारण परिवार वस्तुगत बचत रेट में तेजी से गिरावट आना रहा है।

·        सकल पूंजी निर्माण जीसीपीएफ द्वारा सकल घरेलू उत्पाद प्रतिशत के रूप में आंकी निवेश दर जो 2011-12 में 38.2 प्रतिशत थी 2012-13 में घटकर 36.6 प्रतिशत और 2013-14 में और कम होकर 32.3 प्रतिशत हो गई।

·        कृषि में आधार मूल्यों पर सकल मूल्य योजित (जीवीए) में वृद्धि दर 2013-14 में घटकर 3.7 करने का लक्ष्य था, जो बारिश की दृष्टि से बहुत अच्छा वर्ष रहा है, इसके 2014-15 में घटकर 1.1 प्रतिशत होने का अनुमान है। यह वर्ष मानसून की दृष्टि से ज्यादा अच्छा नहीं है।

·        विनिर्माण क्षेत्र ने 6.2 प्रतिशत आधार मूल्यों पर जीवीए में वर्ष 2013-14 के दौरान क्रमशः 6.2 और 5.3 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की है। 2014-15 में 6.8 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ यह गति बने रहने का अनुमान है।

·        सेवा क्षेत्र में 2014-15 के दौरान वृद्धि दर की गति जारी रही जो 10.6 रहने का अनुमान है। 2013 में 9.8 प्रतिशत बढ़ोत्तरी से यह अधिक है।

·        वर्तमान मूल्यों पर प्रतिव्यक्ति निवल राष्ट्रीय आय 2014-15 के दौरान 88533 रूपये के स्तर पर रहने का अनुमान है। वर्ष 2013-14  में यह 80388 रूपये थी।

14वें वित्त आयोग (एफएफसी) भारत में राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देगाः आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार ‘सभी राज्य एफएफसी अंतरणों से समग्र संदर्भ में लाभांवित होते हैं।‘ सर्वेक्षण में कहा गया है कि चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों से सहयोगात्मक और प्रतिस्पर्धी संघवाद को बढ़ावा मिलेगा।

सामान्य श्रेणी के राज्यों के अंतर्गत समग्र संदर्भों में सबसे ज्यादा लाभांवित होने वाले राज्य- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं, जबकि विशेष श्रेणी वाले राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और असम सबसे ज्यादा लाभांवित होने वाले राज्य हैं।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि एफएफसी की सिफारिशों से राज्यों के बजट की व्यय क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि होने की संभावना है।

सर्वेक्षण में एफएफसी की सिफारिशों को प्रगतिशील बताया गया है। कम प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद (एनएसडीपी) वाले राज्य अपेक्षाकृत अधिक अंतरण प्राप्त करते हैं।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि ‘राज्यों की बढ़ी हुई राजकोषीय स्वायत्तता को केन्द्र की राजकोषीय गुंजाइश बनाए रखने के साथ संतुलित करने में राज्यों को केन्द्रीय सहायता अंतरणों में कटौती किया जाना शामिल है।‘

आर्थिक सर्वेक्षण में निष्कर्ष के रूप में कहा गया है कि एफएफसी की सिफारिशें-

• व्यापक राजकोषीय संघवाद लाएगी

• राज्यों को किए जाने वाले अन्य केन्द्रीय अंतरणों में कमी लाएगी

• राजस्व और खर्च पर राज्यों को ज्यादा व्यापक स्वायत्तता मिलेगी

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