क्या टाटा की नैनो का 'वजूद' खत्म होने की ओर अग्रसर है?
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क्या टाटा की नैनो का 'वजूद' खत्म होने की ओर अग्रसर है?

टाटा की छोटी कार नैनो रतन टाटा के लिए एक ख्वाब की तरह थी। रतन टाटा चाहते थे हर खाते-कमाते परिवार को टू-व्हीलर ओनर से कार ओनर यानी उसका मालिक बनाया जाए। वह चाहते थे कि मोटर साइकिल खरीद सकने की हैसियत वाले लोग भी किस्तों में कार के मालिक बन जाएं। लोअर मिडिल क्लास की बड़ी आबादी को देखते हुए रतन टाटा का 1 लाख रुपए में नैनो कार का यह प्रोजेक्ट गेम चेंजर माना जा रहा था। नैनो न केवल एक सस्ती कार थी, बल्कि एक सोशल मिशन और इनोवेशन की मिसाल भी थी। लेकिन ज़ी मीडिया को मिली एक्सक्लूसिव खबर के मुताबिक 2 साल में बिक्री नहीं सुधरने पर टाटा मोटर्स नैनो को बाय-बाय कह सकती है।

फाइल फोटो

मुंबई: टाटा की छोटी कार नैनो रतन टाटा के लिए एक ख्वाब की तरह थी। रतन टाटा चाहते थे हर खाते-कमाते परिवार को टू-व्हीलर ओनर से कार ओनर यानी उसका मालिक बनाया जाए। वह चाहते थे कि मोटर साइकिल खरीद सकने की हैसियत वाले लोग भी किस्तों में कार के मालिक बन जाएं। लोअर मिडिल क्लास की बड़ी आबादी को देखते हुए रतन टाटा का 1 लाख रुपए में नैनो कार का यह प्रोजेक्ट गेम चेंजर माना जा रहा था। नैनो न केवल एक सस्ती कार थी, बल्कि एक सोशल मिशन और इनोवेशन की मिसाल भी थी। लेकिन ज़ी मीडिया को मिली एक्सक्लूसिव खबर के मुताबिक 2 साल में बिक्री नहीं सुधरने पर टाटा मोटर्स नैनो को बाय-बाय कह सकती है।
 
नैनो की लड़खड़ाती बिक्री और प्रोजेक्ट के घाटे में होने की वजह से अब प्रोजेक्ट पर ताला लगने का खतरा मंडरा रहा है। ज़ी मीडिया को मिली एक्सक्लूसिव खबर के मुताबिक टाटा संस के चेयरमैन साइरस मिस्त्री ने इस बारे में टाटा मोटर्स को अल्टीमेटम दे दिया है। सूत्रों के मुताबिक साइरस ने चेतावनी दी है कि अगर नैनो प्रोजेक्ट 2 साल में मुनाफे में नहीं लौटता है तो इसे बंद कर दिया जाए। हालांकि टाटा मोटर्स को इस बचे दो साल में नैनो को रिवाइव करने के लिए मौका दिया जाएगा। रिवाइवल के लिए नैनो के नए और बेहतर वर्जन लाने का मौका होगा। वहीं, इस संबंध में टाटा मोटर्स की ओर से एक टिप्‍पणी में में कहा गया कि नैनो हमारे प्रोडक्‍ट पोर्टफोलिया का एक अहम हिस्‍सा बना रहेगा। भविष्‍य की प्रोडक्‍ट योजनाओं के संबंध में हम कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।

दरअसल सस्ती होने और टाटा के नाम के भरोसे के बावजूद भी नैनो की बिक्री कभी भी संतोषजनक नहीं रही। नैनो की बिक्री कभी भी टाटा मोटर्स के प्लान के मुताबिक लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई। नैनो के साणंद प्लांट की सालाना क्षमता ढाई लाख यूनिट है। लेकिन बीते पांच साल में कभी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई। साइरस मिस्त्री अब इस प्रोजेक्ट को और ज़्यादा मोहलत देने के मूड में नहीं हैं। अगर अगले दो साल में नैनो की बिक्री नहीं सुधरी तो प्रोजेक्ट पूरी तरह रद्द कर मौजूदा प्लांट में ही दूसरी छोटी कार लाने के उत्पादन पर विचार किया जाएगा। दरअसल टाटा संस के मौजूदा चेयरमैन साइरस मिस्त्री हर उस प्रोजेक्ट से निकलना चाहते हैं जो अच्छा नहीं कर रह है। ऐसे में मुमकिन है कि टाटा ग्रुप के कई ऐसे प्रोजेक्ट पर गाज गिरे भले ही वो रतन टाटा का ही प्लान क्यों न रहा हो।

टाटा नैनो सस्ती होने के बावजूद मार्केट क्यों नहीं बना पाई?
 
टाटा नैनो सबसे सस्ती कार होने के बावजूद आखिर मार्केट क्यों नहीं बना पाई। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब अब भी टाटा मोटर्स के पास नहीं है। क्या नैनो का सबसे सस्ता होना ही इसके ब्रैंड बनने में रोड़ा बन गई या फिर इसकी कीमत पर कंपीटीटर्स के दूसरे प्रोडक्ट बाजी मार ले गए। या फिर आग लगने की कुछ शुरुआती घटनाएं हीं नैनो के लिए अपशकुन साबित हो गईं। मार्केटिंग की तमाम कोशिशों और री-लॉन्चेज़ के बाद भी नैनो की बिक्री रफ्तार नहीं पकड़ पाई।
 
नैनो के ड्राइंग बोर्ड से निकलकर शोकेस की स्थिति में आने के बाद प्रोजेक्ट की लागत बढ़ने के बावजूद भी रतन टाटा ने अपना वादा निभाया। लॉन्च तक कार की कीमत एक लाख रुपए सीमित रखी गई। सबसे सस्ती कार और इनोवेटिव प्रोडक्ट होने के बाद भी आखिरकार नैनो को उतनी कामयाबी नहीं मिली जितनी उम्मीद थी। शायद दुनिया की सबसे सस्ती कार का तमगा ही नैनो की राह का रोड़ा बन गया। ग्राहक शायद स्टेटस सिंबल की वजह से नैनो से दूर हो गए।

नैनो की मार्केटिंग एक ऐसे कार के तौर पर की गई जो महीने में 15-20 हजार रुपए कमाने वाला हर कोई खरीद सकता था। घर-घर तक कार पहुंचाने की कोशिश में जुटी रतन टाटा और उनकी टीम की ये सबसे बड़ी चूक साबित हो गई। कई और घटनाओं ने भी नैनो की मुश्किल बढ़ाई। टाटा नैनो को वर्ष 2008 के दिल्ली ऑटो एक्सपो में दिखाने के बाद कार को लेकर बाजार में काफी चर्चा हुई। टाटा मोटर्स ने इस कार के लिए जमकर माउथ पब्लिसिटी का सहारा लिया। लेकिन सिंगूर विवाद की वजह से टाटा को प्लांट शिफ्ट करना पड़ा जिससे नैनो को लेकर जो यूफोरिया बना उसका फायदा कंपनी नहीं उठा पाई। 2009 में जब कार बिक्री के लिए बाज़ार में आई तब तक उत्साह कम हो चुका था।

सालाना दस लाख तक नैनो बिक्री की योजना बनाने वाली टाटा मोटर्स को आखिरकार साणंद में ढाई लाख यूनिट क्षमता का प्लांट लगाकर संतोष करना पड़ा। नैनो के रास्ते में कई और भी चुनौतियां आईं। लागत बढ़ने की वजह से एक लाख रुपए की तय कीमत वाली नैनो के सबसे सस्ते वर्जन की ही कीमत बढ़कर सवा दो लाख रुपए तक पहुंच गई। जानकारों के मुताबिक इतनी कीमत में ग्राहक ऐसी कार नहीं खरीदना चाहते जिसके साथ सबसे सस्ती कार का टैग लगा हो। साथ ही जिसकी मार्केट में री-सेल वैल्यू बहुत कम हो और जो पूरी तरह एक सिटी कार हो।
 
टाटा मोटर्स ने पुरानी गलतियों को सुधारने के लिए नैनो के कई वर्जन लॉन्च किए। सबसे सस्ती कार के बजाय स्मार्ट सिटी कार के तौर पर भी नैनो को प्रोजेक्ट किया। माउथ पब्लिसिटी पर ही निर्भर रहने के पुराने वादे के बजाय जमकर विज्ञापन भी किए। लेकिन न नैनो की बिक्री संभली और न ही कार की इमेज। 

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