खनन उद्योग से जुड़े कामगारों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता: राष्ट्रपति
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खनन उद्योग से जुड़े कामगारों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम अब भी नुकसान पूरी तरह खत्म कर पाने से दूर हैं. खनन कार्यों के स्तर में वृद्धि के साथ ही सुरक्षा के मुद्दों और जटिलताओं का संबंध है. भारतीय खदान उद्योग बदलाव की कगार पर है.''

राष्ट्रपति ने खनन कंपनियों से कहा कि वे कामगारों तथा उनके परिजनों के हित में उचित नीतियां तैयार करें. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने खनन उद्योग में कामगारों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए गुरुवार (17 अगस्त) कहा कि इससे समझौता नहीं किया जा सकता. उन्होंने देश को कामगार सुरक्षा के मामले में ‘प्रतिक्रिया की संस्कृति से निवारण की संस्कृति’ की तरफ मजबूती से बढ़ने का भी आह्वान किया.

  1. राष्ट्रपति ने कहा, जन सुरक्षा और जिंदगी हमेशा प्राथमिकता में रहनी चाहिए.
  2. खनन क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में 2.6 फीसदी योगदान देता है.
  3. खनन में रोजाना औसत आधार पर 10 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है.
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राष्ट्रपति ने यहां खनन क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा पुरस्कार वितरण समारोह को संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर उन्होंने कहा, ‘‘खनन क्षेत्र के कामगारों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता है और यह सबसे महत्वपूर्ण है. जन सुरक्षा और जिंदगी हमेशा प्राथमिकता में रहनी चाहिए. ये हमेशा सबसे ऊपर हैं. इसके लिए हमें प्रतिक्रिया की संस्कृति से निवारण की संस्कृति की तरफ अधिक मजबूती से बढ़ना होगा.’’ उन्होंने कहा कि भारत के पास प्रचुर खनिज संपदा है और यह क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2.6 फीसदी योगदान देता है. इस क्षेत्र में रोजाना औसत आधार पर 10 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है. यह आर्थिक विकास के लिए महत्पूर्ण है.

भारत के आर्थिक विकास के लिए खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों को महत्वपूर्ण बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए हमें खनिजों के शोधन और प्रबंधन की एकीकृत नीति बनानी होगी. उन्होंने उद्योग जगत से अपील की कि वे नुकसान को समाप्त करने का स्तर हासिल करने के लिए उच्चतम पेशेवर मानकों का लक्ष्य पाएं.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘अपने लंबे इतिहास में इससे पहले कभी भी भारतीय खनन उद्योग ने इस तरह का क्रांतिकारी बदलाव इतनी तेजी से नहीं देखा. यह महत्वपूर्ण है कि खदान कार्यों तथा कामगारों के सुरक्षा मानकों की दिशा में गति आये.’’ उन्होंने आगे कहा कि स्व-नियमन के सिद्धांत के अलावा सुरक्षा प्रबंधन और सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली में भी कामगारों की भागीदारी को खदान उद्योग में संस्थागत किये जाने की जरूरत है. अभी दुर्घटनाओं की दर में भी कमी आयी है और इसकी जानकारी होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘‘हम अब भी नुकसान पूरी तरह खत्म कर पाने से दूर हैं. खनन कार्यों के स्तर में वृद्धि के साथ ही सुरक्षा के मुद्दों और जटिलताओं का संबंध है. भारतीय खदान उद्योग बदलाव की कगार पर है. अधिक उत्पादन तथा मुनाफे के बीच का संतुलन तथा कामगारों की सुरक्षा जरूरी है.’’ खदान सुरक्षा महानिदेशालय द्वारा उठाये गये सुरक्षात्मक कदमों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने खनन कंपनियों से कहा कि वे कामगारों तथा उनके परिजनों के हित में उचित नीतियां तैयार करें. उन्होंने कहा कि इन प्रयासों में कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व की उपलब्धता से मदद मिल सकती है, लेकिन पैसे से अधिक यहां सही नियत और तरीके की जरूरत है.

उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि कामगारों तथा उनके परिजनों का स्वास्थ्य विशेषकर टीबी और सिलिकोसिस अभी भी चुनौती बना हुआ है. उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की बीमारियों का नियंत्रण और रोकथाम भी कामगारों की सुरक्षा की श्रेणी में आता है. टीबी और सिलिकोसिस की चुनौतियों से निपटना तथा चाहिए तथा कामगारों एवं उनके परिवारों के बीच रक्तदान शिविरों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. दुर्घटना तथा आपातकालीन स्थिति में खून की कमी की समस्या को दूर किया जाना चाहिए और इसके लिए खदान समूह को खुद भी तैयार रहना चाहिए.’’

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