Trending Photos
नई दिल्ली : फिल्म 'शोले' को रिलीज हुए शनिवार को 40 साल हो जाएंगे। हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई यह फिल्म 15 अगस्त 1975 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का हर पहलू अपने आप में बेजोड़ है। इस शानदार फिल्म के निर्माण से लेकर प्रदर्शन तक कई ऐसे रोजक किस्से हैं जिन्हें जानने में आपको दिलचस्पी हो सकती है। आइए जानते हैं इस सुपर-डुपर फिल्म से जुड़ी कुछ रोचक बातें-
1-फिल्म सीता और गीता (1972) की शानदार सफलता की पार्टी जीपी सिप्पी के घर की छत पर दी गई थी। उसमें पिता जीपी और बेटे रमेश सिप्पी ने तय किया था कि इससे भी चार कदम आगे चलकर एक बड़े बजट की भव्य एक्शन फिल्म बनाई जाए। यहीं से 'शोले' के निर्माण का आइडिया आया।
2-फिल्म 'शोले' में गब्बर के किरदार के लिए डैनी ही निर्देशक रमेश सिप्पी की पहले पसंद थे लेकिन डेट्स न मिल पाने की वजह से वह किरदार अमजद खान को पेश किया गया।
3-जय के रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा का नाम फाइनल था। मगर सलीम-जावेद तथा धर्मेन्द्र ने अमिताभ का नाम सुझाया था।
4-इस फिल्म को लेकर सबसे खास बात तो यह थी अभिनेत्री हेमा मालिनी फिल्म शोले में बसंती तांगेवाली का रोल करने को तैयार नहीं थी। इसके पीछे फिल्म अंदाज तथा सीता और गीता की जबरदस्त सफलता थी लेकिन रमेश सिप्पी के समझाने के बाद वह इस रोल को करने के लिए तैयार हो गईं।
4- इस फिल्म के चर्चित डॉयलाग्स-'ये हाथ हमको दे दे ठाकुर', 'जो डर गया, समझो मर गया', 'कितने आदमी थे', 'तुम्हारा नाम क्या है, बसंती', 'चल धन्नो, आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है', 'अब तेरा क्या होगा, कालिया', 'इतना सन्नाटा क्यों है, भाई' 'अरे ओ, सांभा' आज भी लोगों के दिलो-दिमाग पर छाए हुए हैं।
5-मंगलौर-बंगलौर और कोचीन जगह की जानकारी मिलने पर रमेश सिप्पी सिनेमाटोग्राफर द्वारका दिवेचा के साथ हवाई जहाज उसे देखने गए। यहां की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग साइज की चट्टानें बीहड़, सूखे पेड़, उबड़-खाबड़ रास्ते वाले इलाके रामनगरम् को डिसाइड कर लिया था। रामनगरम् के सेट को तैयार करने में करीब 100 लोग जुटे थे।
6-सबसे खास बात तो यह है कि रामनगरम् में यूनिट के लोगों को खाने की दिक्कतें न आएं इसके लिए वहीं एक किचन तैयार हुआ। वहां पर राशन-फल-सब्जी के लिए एक बड़ा सा भंडारघर बनवाया गया। इतना ही फिल्म में शामिल घोड़ों के लिए तबेले का इंतजाम और बंगलौर हाई-वे से रामनगरम् तक एक सड़क का निर्माण भी हुआ। इसके लिए फिल्मी पूरी यूनिट ने भी काफी मेहनत की।
7-फिल्म शोले की शूटिंग में हेमा मालिनी के साथ रोमांटिक सीन करते समय धर्मेन्द्र जानबूझ कर गलतियां करते थे,ताकि उनका सीन रीटेक। इसके लिए वह यूनिट मेंबर्स को पैसे भी देते थे। इस सबके पीछे धर्मेन्द्र का मकसद होता था संजीव कुमार को हेमा से दूर रखना। धमेंद्र को पता था कि संजीव हेमा पर लट्टू हैं और हेमा के पास आने का मौका ढूंढते हैं। इस बाद को संजीव कुमार भी जानते थे।
8-अपने रिलीज के पहले दिन 'शोले' फिल्म को अच्छी ओपनिंग नहीं मिली। रमेश सिप्पी ने प्रस्ताव रखा कि फिल्म का अंत बदला जाए। लोकेशन पर पहुंच कर वे नया अंत शूट कर लेंगे और बाद में फिल्म में जोड़ देंगे। सलीम- जावेद को नया अंत लिखने की जिम्मेदारी दी गई। सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी को सलाह दी कि जल्दबाजी करने के बजाय एक-दो दिन रूकना चाहिए। यदि फिल्म का फिर भी खराब रहता है तो वे नया अंत शूट कर लेंगे। उनकी बात मान ली गई। एक-दो दिन बाद फिल्म का प्रदर्शन बॉक्स ऑफिस पर सुधर गया और फिर बेहतर होता चला गया।
9-फिल्म में अमजद खान को गब्बर सिंह डाकू का जो नाम दिया गया, वह असली डाकू का नाम है। सलीम के पिता उन्हें डकैत गब्बर के बारे में बताया करते थे। वह पुलिस पर हमला करता और उनके कान-नाक काट कर छोड़ दिया करता था।
10-ठाकुर के रोल के लिए प्राण के नाम पर विचार किया गया जो सिप्पी फिल्म्स की कई फिल्में पहले कर चुके थे। लेकिन रमेश सिप्पी, संजीव कुमार की प्रतिभा के कायल थे। सीता और गीता में वे संजीव के साथ काम कर चुके थे। अत: परिणाम संजीव के पक्ष में रहा।