'समाज के दमनकारी नियमों को तोड़ती है लिपस्टिक अंडर माय बुर्का'
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'समाज के दमनकारी नियमों को तोड़ती है लिपस्टिक अंडर माय बुर्का'

फिल्मकार प्रकाश झा का कहना है कि उनकी नई फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' पुरानी विचारधारा के लिए एक झटके की तरह है। फिल्म भारत के एक छोटे से गांव की अलग-अलग उम्र की चार महिलाओं के गुप्त जीवन की कहानी है। वे अलग-अलग प्रकार की आजादी की तलाश में नजर आती हैं।

A still from Lipstick Under My Burkha

मुंबई : फिल्मकार प्रकाश झा का कहना है कि उनकी नई फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' पुरानी विचारधारा के लिए एक झटके की तरह है। फिल्म भारत के एक छोटे से गांव की अलग-अलग उम्र की चार महिलाओं के गुप्त जीवन की कहानी है। वे अलग-अलग प्रकार की आजादी की तलाश में नजर आती हैं।

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने फिल्म में दर्शाए गए यौन दृश्यों और अभद्र भाषा के प्रयोग का हवाला देते हुए 23 फरवरी को फिल्म को प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया था। 

झा ने इस बारे में कहा, "'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' एक खूबसूरत फिल्म है। यह समाज के उथले और दमनकारी नियमों को तोड़ती है, जिनके मुताबिक महिलाएं अपनी कल्पनाओं के बारे में खुलकर बात नहीं कर सकतीं। वे जिंदगी को केवल पुरुषों की मानसिकता के अनुसार देखने की आदी हैं और सीबीएफसी के पत्र से यही जाहिर होता है।"

अलंकृता श्रीवास्तव निर्देशित फिल्म कई फिल्म महोत्सवों में कई पुरस्कार जीत चुकी है और यह मियामी, एम्सटरडम, पेरिस और लंदन फिल्म महोत्सवों में भी दिखाई जाएगी।

झा ने कहा, "जहां अन्य देश इस आजादी को एक नए तरीके से स्वीकार कर रहे हैं और एक नए स्तर पर पहुंच रहे हैं, वहीं हमारे देश की पुरानी विचारधारा के लिए यह एक झटके की तरह है। वे यह नहीं जानते कि प्रमाणपत्र देने से इंकार करके वे इस सोच का दमन नहीं कर सकते।"

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