Odysseus Lander: चांद के साउथ पोल पर उतरा अमेरिकी लैंडर, Chandrayaan-3 से है कितना अलग?
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Odysseus Lander: चांद के साउथ पोल पर उतरा अमेरिकी लैंडर, Chandrayaan-3 से है कितना अलग?

Odysseus Lander Vs Chandrayaan-3: कुछ दिन पहले अमेरिकी स्पेसक्रॉफ्ट ओडीसियस लूनर लैंडर ने सिग्नल भेजते हुए चंद्रमा के साउथ पोल पर कामयाब लैंडिंग की. ऐसे में कुछ लोग इसकी तुलना भारत के चंद्रयान-3 से कर रहे हैं. लेकिन क्या ऐसी तुलना करना सही है, आइए जानते हैं.

Odysseus Lander: चांद के साउथ पोल पर उतरा अमेरिकी लैंडर, Chandrayaan-3 से है कितना अलग?

Science News: अमेरिका अभी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया. नासा के मुताबिक ओडिसियस लैंडर चंद्रमा के साउथपोल पर मालापार्ट ए नाम के क्रेटर पर उतरा. इसके साथ नासा के वैज्ञानिक उपकरण गए हैं. ओडिसियस की लैंडिंग कामयाब रही, लेकिन कमजोर सिग्नल मिलने की जानकारी मिली है. सुपरपावर अमेरिका, भारत के बाद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा है, इसलिए कुछ लोग इसकी तुलना चंद्रयान-3 से कर रहे हैं. 

1. विदेशी तकनीक बेहतर या भारतीय?

अमेरिका की नासा और रूस की रॉसकॉसमॉस दुनिया की सबसे पुरानी स्पेस एजेंसी हैं. अमेरिकी ओडिसियस  लैंडर, 1972 में अपोलो-17 मिशन के बाद चंद्रमा पर पहुंचने वाला पहला अमेरिकी अंतरिक्षयान बन गया. भारत की स्पेस एजेंसी ISRO ने कई दशक बाद स्पेस मिशन शुरू किया. लेकिन अमेरिका से पहले चांद के साउथ पोल पर पहुंचा. भारत का पहला मून मिशन चंद्रयान-1 था. जो 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च हुआ. भले ही मिशन नाकाम रहा लेकिन इसरो ने हार नहीं मानी.

चांद के लिए भारत का दूसरा मिशन, चंद्रयान -2, 22 जुलाई 2019 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था. चंद्रयान-2 की नाकामी से देश को धक्का लगा. लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने हौसला बनाए रखा और मून मिशन की हर कमजोरी पर काम किया और चंद्रयान-3 की कामयाबी से इतिहास बना दिया. चंद्रयान- 3 ने पिछले साल 23 अगस्त को चंद्रमा के साउथ पोल के पास सॉफ्ट लैंडिंग की थी.  

2. सरकारी बनाम निजी प्रोजेक्ट

चंद्रयान-3 पूरी तरह से सरकारी प्रोजेक्ट  था. जिसका उद्देश्य भारत की स्पेस जरूरतों को पूरा करने के लिए अहम डेटा जुटाना और रिसर्च करना था. जबकि अमेरिकी लूनर प्रोजेक्ट प्राइवेट सेक्टर को रिप्रेजेंट करता है.

ओडिसियस लैंडर को जानिए

ओडिसियस एक प्राइवेट मिशन है, जो नासा के सहयोग से लॉन्च हुआ. जबकि चंद्रयान-3 पूरी तरह स्वदेसी यानी भारतीय तकनीक पर स्पेस पहुंचा. ओडिसियस एलोन मस्क के स्पेसएक्स द्वारा लॉन्च किया गया. इसे प्राइवेट स्पेस रिसर्च की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. NASA के साथ 118 मिलियन डॉलर के अनुबंध के तहत इस मिशन का टारगेट यानी चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग पूरी हुई. जबकि अमेरिका के पिछले सारे प्राइवेट मिशन लगातार नाकाम हो रहे थे. इंट्यूएटिव मशीन्स ने स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट पर अपने नोवा-सी श्रेणी के चंद्र लैंडर ओडीसियस को सफलतापूर्वक चांद पर उतारा. 

यह लॉन्च नासा के कमर्सियल लूनर पेलोड सर्विसेज (CLPS) पहल के दूसरे मिशन का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य सरकारी और वाणिज्यिक दोनों उद्देश्यों के लिए चंद्रमा पर नियमित कार्गो डिलीवरी की सुविधा प्रदान करना है. ओडीसियस लैंडर को लॉन्च करने में स्पेस एक्स ने कॉल्कन 9 रॉकेट का इस्तेमाल किया.

3. चंद्रयान-3 की स्ट्राइक रेट सौ फीसदी, ओडिसियस के नतीजे आना बाकी

इसरो की वेबसाइट के मुताबिक चंद्रयान-3 के तीन प्रमुख  उद्देश्य थे. चंद्र सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग प्रदर्शित करना. रोवर को चंद्रमा पर भ्रमण का प्रदर्शन करना और यथास्थित वैज्ञानिक प्रयोग करना. इस हिसाब से चंद्रयान 3 तीनों पैमानों पर कामयाब रहा.

चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने लैंडिंग के वक्त किया था कमाल

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर मॉड्यूल ने लैंड करते वक्त इजेक्टा हेलो उत्पन्न किया था. ISRO ने तब बताया था कि चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने लगभग 2.06 टन मून डस्ट को 108.4 वर्ग मीटर के क्षेत्र में विस्थापित किया था. विक्रम लैंडर ने 23 अगस्त, 2023 को साउथ पोल पर लैंडिंग की. फाइनल स्टेज में थ्रस्टर्स के कारण स्तह पर मौजूद मून डस्ट भारी मात्रा में विस्थापित हुई थी. जिसके चलते शानदार 'इजेक्टा हेलो' उत्पन्न हुआ. 

विक्रम लैंडर ने जो जानकारी दी उससे इसरो के मैन मिशन में होगी आसानी

हॉप एक्सपेरिमेंट के दौरान चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने खुद को 40 सेमी तक उठाया और करीब 30-40 सेमी दूर जाकर दोबारा लैंड हुआ. इस प्रयोग से पता चला था कि चंद्रयान-3 चांद की सतह से उठ सकता है. इससे ये अनुमान भी लगाए गया कि भविष्य के मिशन को भी इस तरह तैयार किया जा सकता है कि वे चांद की सतह से नमूने लेकर आएं. अब ये संभावनाएं जताई जा रही हैं कि विक्रम लैंडर का यह करतब भविष्य के लिए नई संभावनाएं तैयार कर सकता है. साथ ही यह चांद पर मानव मिशन में भी मददगार हो सकता है. 

चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने कहा था कि 14 दिनों (चांद पर 1 दिन के बराबर) की यात्रा के दौरान विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने कई अहम जानकारियां भेजी हैं. जो आगे के रिसर्च के लिए बेस का काम करेंगी. ऐसे में विक्रम और प्रज्ञान दो अगर दोनों लंबी और सर्द रात के बाद नहीं जागते हैं, तो भी मिशन को सफल मान जाएगा.

4. ओडिसियस और चंद्रयान-3 की प्रोजेक्ट लागत में अंतर

मस्क ने इस प्रोजेक्ट के लिए अरबों-खरबों की डील की थी. ओडीसियस लैंडर को NASA के कमर्शियल प्रोग्राम- लूनर पेलोड सर्विस के तहत बनाया गया. इसकी लॉन्चिंग के लिए नासा और इंटुएटिव मशीन्स के बीच 118 मिलियन डॉलर (करीब 980 करोड़ रुपए) की डील हुई. जबकि चंद्रयान-3 मिशन पर हुए खर्च की बात करें, तो ISRO ने शुरुआती लागत का अनुमान 600 करोड़ रुपये लगाया था. ये मिशन 615 करोड़ रुपये में फाइनल हो गया. यानी जितनी लागत में बॉलीवुड और हॉलीवुड की एक फिल्म बनती है, उससे कहीं कम लागत में हमारा स्पेसक्राफ्ट चांद पर पहुंच गया. 

जबकि अमेरिका का ये मून मिशन मात्र 16 दिनों का है. चांद की सतह पर लैंडिंग के बाद ये 7 दिनों तक जानकारी जमा करेगा. इसके डिटेल्ड नतीजे आने अभी बाकी हैं.

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