वाजपेयी ने RSS को अपनी आत्‍मा कहा, लेकिन सामंजस्‍य कभी पूरी तरह नहीं रहा
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वाजपेयी ने RSS को अपनी आत्‍मा कहा, लेकिन सामंजस्‍य कभी पूरी तरह नहीं रहा

वाजपेयी की अगुआई वाली गठबंधन सरकार द्वारा पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाना, सरकारी कंपनियों के विनिवेश जैसे मुद्दों को लेकर आरएसएस के साथ उनके मतभेद पैदा हुए.

अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्‍त को निधन हो गया. (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच भले ही कभी-कभी सामंजस्य नहीं रहा हो लेकिन जिस संगठन ने उन्हें वैचारिक दृष्टि प्रदान की, वह हमेशा उनके दिल के करीब रहा. आरएसएस के पुराने स्वयंसेवकों ने यह बात कही. उनके अनुसार पूर्णकालिक प्रचारक रहे वाजपेयी ने सदैव कहा कि वह इस संगठन की उपज हैं जिसने उनके राजनीतिक करियर की बुनियाद रखी.

  1. वाजपेयी ने 1995 में एक आलेख में आरएसएस को अपनी आत्मा कहा
  2. संघ के साथ कई मुद्दों पर रहे वैचारिक मतभेद
  3. 2005 में आरएसएस प्रमुख ने कहा कि वाजपेयी को संन्‍यास ले लेना चाहिए

जिन मुद्दों पर रहे मतभेद...
वाजपेयी की अगुआई वाली गठबंधन सरकार द्वारा पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाना, सरकारी कंपनियों के विनिवेश जैसे मुद्दों को लेकर आरएसएस के साथ उनके मतभेद पैदा हुए. स्वदेशी जागरण और भारतीय मजदूर संगठन जैसे आरएसएस से जुड़े संगठनों ने कड़ी आलोचना की लेकिन वाजपेयी ने कभी आरएसएस से दूरी नहीं बनाई.

आरएसएस के पुराने स्वयंसेवकों के अनुसार वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उनके और आरएसएस के बीच कुछ मतभेद रहे लेकिन उसका चीजों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. वाजपेयी ने स्पष्ट कहा था कि उनकी सरकार उन खस्ताहाल कंपनियों में हिस्सेदारी बेच रही है जिनकी हालत सुधारना मुश्किल है. उन्होंने पाकिस्तान के साथ बातचीत की अपनी पहल भी जारी रखी.

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संघ के पदाधिकारियों के मुताबिक वाजपेयी बतौर प्रधानमंत्री स्वयंसेवक से कहीं ज्यादा नेता थे. उन्होंने विचारधारा पर राजनीति को तरजीह दी. उन्होंने संघ के नेताओं से मिलना-जुलना कभी बंद नहीं किया. पूर्व प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने कहा, ‘‘वाजपेयी और आरएसस नेताओं के बीच संबंध बहुत अच्छे थे और उन्होंने अपने सरकारी निवास सात, लोक कल्याण मार्ग पर कई बार उनके साथ बैठकें कीं और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की.’’

'वाजपेयी को राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए'

आम चुनाव हारने के एक साल बार 2005 में एक साक्षात्कार के दौरान आरएसएस प्रमुख के सुदर्शन ने कहा कि वाजपेयी को राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. वाजपेयी ने 1995 में साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर में एक आलेख में आरएसएस को अपनी आत्मा बताया था. उन्होंने लिखा, ‘‘‘आरएसएस के साथ लंबे जुड़ाव का सीधा कारण है कि मैं संघ को पसंद करता हूं. मैं उसकी विचारधारा पसंद करता हूं और सबसे बड़ी बात, लोगों के प्रति और एक दूसरे के प्रति आरएसएस का दृष्टिकोण मुझे भाता है और यह बस आरएसएस में मिलता है.’’

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उन्होंने लिखा, ‘‘व्यक्ति निर्माण ही आरएसएस का प्राथमिक कार्य है. चूंकि अब हमारे पास अधिक कार्यकर्ता हैं सो हम जीवन के हर क्षेत्र में समाज के सभी वर्गों में काम कर रहे हैं. सभी क्षेत्रों में परिवर्तन हो रहा है. लेकिन व्यक्ति निर्माण का कार्य नहीं रुकेगा, यह चलता रहेगा. यह जारी रहना चाहिए. यही आरएसएस का आंदोलन है.’’

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(इनपुट: एजेंसी भाषा)

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