500 और 1000 रुपये के नोटों की तरह अगर 2000 रुपये के सभी नोट सिस्टम में लौट गए तो क्या होगा?
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500 और 1000 रुपये के नोटों की तरह अगर 2000 रुपये के सभी नोट सिस्टम में लौट गए तो क्या होगा?

सवाल यह है कि 2000 रुपये के सारे नोट अगर सिस्टम में फिर से लौट आते हैं तो फिर इसका मकसद क्या था? 

2000 का नोट बंद

2000 Rupee Note: 8 नवंबर 2016 को बड़ी नोटबंदी हुई और 500 के अलावा 1000 रुपये के नोट बैन कर दिए गए. एक छोटी नोटबंदी 19 मई 2023 को हुई, जिसमें 2000 रुपये के नोटों को सर्कुलेशन से हटाने का ऐलान किया गया. बड़ी नोटबंदी में तत्काल प्रभाव से फैसले लागू हुए तो मिनी नोटबंदी में इसके लिए 4 महीने तक का समय दिया गया है. अब सवाल है कि क्या बड़ी नोटबंदी का मकसद हासिल हुआ था और क्या 2000 रुपये के नोटों को हटाने का भी जो मकसद है, वो पूरा हो पाएगा?  

 

8 नवंबर 2016 को नोटबंदी के 21 महीने बाद 29 अगस्त 2018 को भारतीय रिजर्व बैंक ने 500 और 1000 रुपये के सिस्टम में वापस लौटने का आंकड़ा जारी किया था, जिसके बाद पहले से हमलावर विपक्ष ने नोटबंदी को फेल घोषित कर दिया था. आरबीआई ने तब जानकारी दी थी कि नोटबंदी से पहले प्रचलन में रहे 500 और 1000 रुपये के कुल नोटों में से 15 लाख 28 हजार करोड़ रुपये सिस्टम में वापस आ गए हैं. विपक्ष ने इस आधार पर इसे फेल घोषित कर दिया कि जिस कालाधन को रोकने के लिए नोटबंदी की गई, वो कालाधन सिस्टम में आकर व्हाइट मनी हो गया और नोटबंदी का मकसद पूरा नहीं हुआ. 

रिजर्व बैंक का कहना था कि नोटबंदी के बाद 1000 रुपये के 8.9 करोड़ रुपये सिस्टम में नहीं लौटे. इस आधार पर कुल 99 प्रतिशत नोट वापस सिस्टम में लौट गए थे. एक तरह से कह सकते हैं कि नोटबंदी से पहले का पूरा पैसा सिस्टम में वापस आ गया था. नोटबंदी पर पहले दिन से हमलावर रहे कांग्रेस नेता और देश के पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का कहना था- '500 और 1000 रुपये के 15.44 लाख करोड़ रुपये में से 16 हजार करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में वापस नहीं आए. यह केवल एक फीसदी का आंकड़ा है. आरबीआई को शर्म आनी चाहिए, जिसने नोटबंदी की सिफारिश की थी.' 

दूसरी ओर, कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सभी नोटों का सिस्टम में लौटना नोटबंदी का बड़ा मकसद होता है. यह तो उम्मीद थी ही कि पूरे पैसे वापस नहीं आएंगे. उसमें कितने नकली नोट आए और कितने नकली नोट सिस्टम से निकल गए, यह रिजर्व बैंक आगे जानकारी देगा तो काफी फायदेमंद साबित होगा. 

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वहीं नोटबंदी के बाद नए नोटों की प्रिंटिंग पर 8,000 रुपये खर्च हुए, जबकि इससे पहले का आंकड़ा 3420 करोड़ रुपये था. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नोटबंदी को इसलिए सफल कह सकते हैं कि इसने पूरे सिस्टम को झकझोरा है और लोगों की सोच बदली है. अब सवाल यह है कि 2000 रुपये के सारे नोट अगर सिस्टम में फिर से लौट आते हैं तो फिर इसका मकसद क्या था? नोटबंदी के बहुत सारे बिंदु होते हैं लेकिन प्राथमिक बिंदु कालाधन पर रोक लगाना है. 

अगर सारे नोट या पहले की तरह 99 प्रतिशत नोट वापस आ गए तो क्या इसका मकसद पूरा हो पाएगा? सभी नोट अगर सिस्टम में वापस आ गए तो फिर जिनलोगों ने कालाधन जमा कर रखा है, इसका मतलब तो यह बनता है कि उन्होंने भी अपने पैसे सफेद कर लिए. अगर पहले की तरह 2000 रुपये के नोटों के साथ भी ऐसा होता है तो रिजर्व बैंक पर फिर से सवाल उठेंगे.

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