16 दिसंबर मामला: दोषियों को लूट के मामले में 10 साल की सजा
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16 दिसंबर मामला: दोषियों को लूट के मामले में 10 साल की सजा

दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 की सामूहिक बलात्कार की घिनौनी वारदात के चार दोषियों को एक स्थानीय अदालत ने आज लूट के एक अन्य मामले में 10 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि ये लोग किसी नरमी के हकदार नहीं हैं।

नई दिल्ली : दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 की सामूहिक बलात्कार की घिनौनी वारदात के चार दोषियों को एक स्थानीय अदालत ने आज लूट के एक अन्य मामले में 10 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि ये लोग किसी नरमी के हकदार नहीं हैं।

अदालत ने अक्षय कुमार सिंह, मुकेश, पवन गुप्ता और विनय शर्मा को भारतीय दंड संहिता की धारा 395 (डकैती) और 412 (बेइमानी से चोरी की संपत्ति हो यह जानते हुए हासिल करना कि वह डकैती से मिली है) तथा कुछ दूसरी धाराओं के तहत सजा सुनाई। अदालत ने हर दोषी पर 1.01 लाख रूपये का जुर्माना भी लगाया। सजा सुनाए जाने के वक्त ये दोषी अदालत में मौजूद थे।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रीतेश सिंह ने कहा, ‘दोषियों द्वारा अंजाम दिए गए अपराध और जनता पर इस घटना के असर को देखते हुए मैं दोषियों के वकील की ओर से दी गई इन दलीलों से सहमत नहीं हूं कि उनकी उम्र, आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि अथवा उनके परिवार की हालत को देखते हुए नरमी बरती जाए।’ सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सरकारी अभियोजक जितेंद्र शर्मा ने दोषियों के लिए कड़ी सजा की मांग करते हुए कहा कि उनकी ओर से किया गया अपराध काफी गंभीर किस्म का है।

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की घटनाएं सरकारी परिहवन सेवा पर लोगों का विश्वास हिला देती हैं। दोषियों को संबद्ध कानून में उल्लिखित अधिकतम सजा दी जाए।’ दोषियों की पैरवी कर रहे वकील एपी सिंह ने कहा कि ये लोग अपने परिवार में कमाने वाले अकेले व्यक्ति हैं लिहाजा उनके साथ नरमी बरती जाए। उन्होंने आगे कहा कि दोषियों को सुधरने करने का मौका दिया जाना चाहिए।

एक किशोर सहित छह लोगों ने 16 दिसंबर, 2012 की रात 23 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घिनौनी वारदात को अंजाम देने से पहले राम आधार नामक एक बढ़ई की पिटाई करके उसके साथ लूटपाट की थी। सामूहिक बलात्कार की पीड़िता ने 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। सामूहिक बलात्कार के मामले में मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई । बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसकी पुष्टि की। उनकी अपीलें अभी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हैं।

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