संसदीय समिति ने कहा- प्रधान न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीशों के न्यूनतम कार्यकाल तय होने चाहिए
Advertisement

संसदीय समिति ने कहा- प्रधान न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीशों के न्यूनतम कार्यकाल तय होने चाहिए

अदालतों में रिक्त स्थान बढ़ने को लेकर सरकार और न्यायपालिका के एक दूसरे के खिलाफ तल्ख टिप्पणियां किये जाने की पृष्ठभूमि में संसद की एक समिति ने आज कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ाई जाये और प्रधान न्यायाधीश एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के लिए ‘न्यूनतम कार्यकाल’ तय किया जाए ताकि न्यायाधीशों की कमी को कम किया जा सके।

संसदीय समिति ने कहा- प्रधान न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीशों के न्यूनतम कार्यकाल तय होने चाहिए

नई दिल्ली : अदालतों में रिक्त स्थान बढ़ने को लेकर सरकार और न्यायपालिका के एक दूसरे के खिलाफ तल्ख टिप्पणियां किये जाने की पृष्ठभूमि में संसद की एक समिति ने आज कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढ़ाई जाये और प्रधान न्यायाधीश एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के लिए ‘न्यूनतम कार्यकाल’ तय किया जाए ताकि न्यायाधीशों की कमी को कम किया जा सके।

विधि एवं कार्मिक मामले की संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट आज पेश की गई। समिति ने उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को भरने के लिए समयसीमा पर कायम नहीं रहने को लेकर सरकार और न्यायपालिका दोनों को लेकर आलोचनात्मक रूख दिखाया है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था को और पारदर्शी बनाने की पैरवी करते हुए समिति ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम को उन उम्मीदवारों को सूचित करना चाहिए जिनके नाम को उसने किसी कारणवश ठुकराया है।

उसने कहा, ‘सरकार भी बिना कोई स्पष्ट कारण बताये सिफारिशों को ठुकरा देती है..ऐसे व्यवहार नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ हैं और नियुक्ति प्रक्रिया में अस्पष्टता लाते हैं।’ उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 साल से बढ़ाकर 67 साल की के मुद्दे पर उसने कहा कि भारत के गणराज्य बनने के बाद से न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा में कोई बदलाव नहीं हुआ। साल 1963 में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु को 60 से बढ़ाकर 62 साल किया गया था।

प्रधान न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के अल्पकालिक कार्यकाल का हवाला देते हुए संसदीय समिति ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में 17 प्रधान न्यायाधीश नियुक्ति हुये जिनमें सिर्फ तीन लोगों का कार्यकाल दो दो साल से अधिक का रहा। समिति ने कहा, ‘इनमें से कई लोगों का कार्यकाल एक साल से भी कम का रहा।' उसने कहा कि उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को ज्यादातर दो साल से कम का कार्यकाल मिलता है। कुछ न्यायाधीशों को पदोन्नति मिलती है और वे उच्चतम न्यायालय में चले जाते हैं जिससे उच्च न्यायालयों में उनका कार्यकाल छोटो हो जाता है।

संसदीय समिति ने कहा कि न्यूनतम कार्यकाल सुनिश्चित होने से मुद्दे का समाधान हो सकता है और उसने विधि मंत्रालय से कहा कि वह ‘ऐसे रास्तों पर विचार करे ताकि उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश कुछ न्यूनतम कार्यकाल तक पद पर रहें।’

Trending news