सरकार ने किया 'ओआरओपी' का ऐलान, रक्षा मंत्री के स्पष्टीकरण के बाद संतुष्ट हुए पूर्व सैन्यकर्मी
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सरकार ने किया 'ओआरओपी' का ऐलान, रक्षा मंत्री के स्पष्टीकरण के बाद संतुष्ट हुए पूर्व सैन्यकर्मी

सरकार ने लंबे समय से चली आ रही वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) की मांग को शनिवार को स्वीकार कर लिया, लेकिन आंदोलन कर रहे पूर्व सैन्यकर्मियों ने इस फैसले के प्रमुख ब्यौरों को हालांकि पहले खारिज कर दिया लेकिन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के आश्वासन पर वे संतुष्ट हुए। पूर्व सैन्यकर्मियों ने कहा कि वह अपने आंदोलन के बारे में फैसला बाद में करेंगे।

सरकार ने किया 'ओआरओपी' का ऐलान, रक्षा मंत्री के स्पष्टीकरण के बाद संतुष्ट हुए पूर्व सैन्यकर्मी

नई दिल्ली : सरकार ने लंबे समय से चली आ रही वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) की मांग को शनिवार को स्वीकार कर लिया, लेकिन आंदोलन कर रहे पूर्व सैन्यकर्मियों ने इस फैसले के प्रमुख ब्यौरों को हालांकि पहले खारिज कर दिया लेकिन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के आश्वासन पर वे संतुष्ट हुए। पूर्व सैन्यकर्मियों ने कहा कि वह अपने आंदोलन के बारे में फैसला बाद में करेंगे।

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने ऐलान किया सरकार ने ओआरओपी के क्रियान्वयन का फैसला किया है जिसके तहत हर पांच साल पर पेंशन में संशोधन किया जाएगा, जबकि पूर्व सैन्यकर्मी दो साल के अंतराल पर पेंशन में संशोधन की मांग कर रहे हैं।

पर्रिकर ने कहा कि ओआरओपी के आकलन के लिए साल 2013 बुनियादी वर्ष होगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेने वाले पूर्व सैन्यकर्मी इस योजना का लाभ उठाने के हकदार नहीं होंगे।

उन्होंने कहा कि सरकार ओआरओपी के क्रियान्वयन के विवरण पर काम करने के लिए एक सदस्यीय न्यायिक समिति का गठन कर रही है जो छह महीने में रिपोर्ट देगी।

सरकार के ऐलान पर प्रतिक्रिया देते हुए आंदोलनकारी पूर्व सैन्यकर्मियों के नेता मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सतबीर सिंह ने कहा कि पूर्व सैन्यकर्मी ओआरओपी के क्रियान्वयन को लेकर सरकार के इरादे से संतुष्ट हैं, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया है कि लाभ के प्रस्तावित प्रावधान उनको स्वीकार्य नहीं हैं।

पूर्व सैन्यकर्मियों के नेताओं ने शनिवार रात रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाकात की और बाद में उन्होंने कहा कि सरकार समयपूर्व सेवानिवृत्ति लेने वालों को लेकर अपनी व्यावहारिकता पर स्पष्टीकरण के साथ सामने आ सकती है। पर्रिकर के साथ मुलाकात के बाद मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सतबीर सिंह ने कहा कि कोर कमिटी की बैठक के बाद आंदोलन को जारी रखने के बारे में फैसला किया जाएगा। पूर्व सैन्यकर्मियों का आंदोलन आज 84वें दिन में प्रवेश कर गया।

सिंह ने संवाददाताओं से कहा, ‘रक्षा मंत्री ने पुष्टि की है कि रक्षा सेवाओं में कोई वीआरएस नहीं है और इसलिए ओआरओपी पीएमआर (समयपूर्व सेवानिवृत्ति) में लागू होगा। प्रधानमंत्री के साथ बातचीत के बाद आधिकारिक नोट एक या दो दिनों में दिया जाएगा। पर्रिकर ने पुष्टि की है कि वह कल शाम या परसों स्पष्टीकरण देंगे।’ उन्होंने कहा कि वह रक्षा मंत्री के बयान से ‘संतुष्ट’ हैं, हालांकि सिंह ने यह भी कहा, ‘कई दूसरे मुद्दे भी हैं जिनको देखना है लेकिन बड़ा मुद्दा पीएमआर का है, जो अनावश्यक रूप से शामिल किया गया। इसको नोट का हिस्सा बनाने की जरूरत नहीं थी। यह कैसे आया हम यह नहीं जानते।’

इसके पहले पेंशन में हर पांच साल में संशोधन किए जाने और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) वीआरएस लेने वालों को इस योजना से बाहर रखे जाने के प्रावधानों को खारिज करते हुए सिंह ने कहा, ‘हमारे अनुसार सरकार ने हमारी एक मांग को स्वीकार कर लिया और छह को खारिज कर दिया।..फिलहाल हम इन ब्यौरों के आधार पर आंदोलन वापस नहीं ले सकते।’ रक्षा मंत्रालय के शीर्ष सूत्रों ने कहा कि घायल या चोटिल होने के कारण वीआरएस लेने वाले सैन्यकर्मियों के हितों की रक्षा की जाएगी।

संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पर्रिकर ने कहा, ‘ओआरओपी जटिल मुद्दा है। विभिन्न समय में और विभिन्न रैंक से सेवानिवृत्त हुए लोगों के हितों की पूरी पड़ताल करने की जरूरत है। तीन सैन्य बलों की अंतर-सेवा के मुद्दे पर विचार की जरूरत है। यह सिर्फ प्रशासनिक मामला नहीं हैं।’ ओआरओपी के तहत सरकार की ओर से प्रस्तावित लाभ के कदमों को लेकर असंतोष जताते हुए सिंह ने कहा, ‘हम इस फैसले को स्वीकार नहीं करते हैं कि जिन लोगों ने समय पूर्व सेवानिवृत्ति ले ली है उनको ओआरओपी के लाभ नहीं मिलेंगे। हम एक सदस्यीय न्यायिक समिति के गठन को भी अस्वीकार करते हैं।’ कई मुद्दों पर स्पष्टीकरण की जरूरत पर जोर देते हुए सिंह ने कहा कि आंदोलन जारी रहेगा और आगे के कदम के बारे में जल्द फैसला किया जाएगा।

इस बीच, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने सरकार के ऐलान को ‘बड़ी निराशा’ करार देते हुए आरोप लगाया कि सरकार ओआरआपी के मुद्दे पर राजनीति कर रही है और उसने इस योजना के प्रावधानों को मूलत: कमजोर कर दिया है।

पर्रिकर के अनुसार इस योजना के क्रियान्वयन पर 8,000-10,000 करोड़ रुपये का अनुमानित खर्च आएगा। बकाये के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि बकाये की राशि का भुगतान छह-छह महीनों की चार किश्तों में किया जाएगा। बहरहाल, यु्द्ध में शहीदों की पत्नियों तथा दूसरे दिवंगत सैन्यकर्मियों की पत्नियों को बकाये की राशि एक किश्त में दी जाएगी।

इस योजना के तहत करीब 26 लाख सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों तथा छह लाख से अधिक शहीदों की पत्नियों को लाभ होगा।

रक्षा मंत्री ने कहा कि पूर्व सैन्यकर्मियों को बकाये का भुगतान करने के लिए 10,000-12,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी।

उन्होंने कहा, ‘समान रैंक से और सेवा की समान अवधि के साथ सेवानिवृत्त होने वाले सभी पेंशनभोगियों के लिए साल 2013 में न्यूनतम और अधिकतम पेंशन के औसत के तौर पर पेंशन को फिर से तय किया जाएगा।’ संवाददाता सम्मेलन में पर्रिकर के साथ सेना के तीनों अंगों के प्रमुख एवं रक्षा सचिव भी मौजूद थे। रक्षा मंत्री ने पत्रकारों के कोई सवाल का जवाब नहीं दिया।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार एक महीने के भीतर ओआरओपी पर एक विस्तृत आदेश के साथ आएगी।

पर्रिकर ने कहा कि सरकार ने विशेषज्ञों के साथ गहन विचार-विमर्श किया है तथा भारी वित्तीय बोझ के बावजूद ओआरओपी लागू करने का फैसला किया। उन्होंने कहा, ‘पूर्व की सरकार ने अनुमान लगाया था कि ओआरओपी को 500 करोड़ रुपये के बजट के प्रावधान के साथ लागू किया जाएगा। वास्तविकता यह है कि ओआरओपी के क्रियान्वयन पर कुल 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये का अनुमानित खर्च आएगा और भविष्य में आगे बढ़ता रहेगा।’ रक्षा मंत्री ने कहा कि ओआरओपी का मुद्दा करीब चार दशक से लंबित है और पूर्व की संप्रग सरकार ने इसे 2014-15 से लागू करने का ऐलान किया था, लेकिन उसने यह स्पष्ट नहीं किया था कि यह योजना क्या होगी।

उन्होंने कहा, ‘यह दुख का विषय है कि कई सरकारों ने ओआरओपी के मुद्दे पर दोहरी सोच बनाए रखी।’

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