2002 बिलकिस बानो मामला: दोषी आईपीएस भगोरा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का जल्द सुनवाई से इनकार
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2002 बिलकिस बानो मामला: दोषी आईपीएस भगोरा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का जल्द सुनवाई से इनकार

न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई करने की कोई तात्कालिकता नहीं है क्योंकि दोषी अधिकारी पहले ही सजा काट चुका है.

पीठ ने आईपीएस अधिकारी की याचिका को जुलाई के दूसरे सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दिया. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2002 के सनसनीखेज बिलकिस बानो मामले में एक आईपीएस अधिकारी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने से मंगलवार (30 मई) को इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई करने की कोई तात्कालिकता नहीं है क्योंकि दोषी अधिकारी पहले ही सजा काट चुका है.

पीठ ने आईपीएस अधिकारी की याचिका को जुलाई के दूसरे सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दिया. गुजरात में सेवाएं दे रहे आईपीएस अधिकारी आर एस भगोरा और चार अन्य पुलिसकर्मियों को निचली अदालत ने दोषमुक्त करार दिया था, लेकिन हाल में बंबई उच्च न्यायालय ने उन्हें दोषी करार दिया था. भगोरा की तरफ से पेश हुए वकील ने कहा कि यदि दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जाती है तो सेवा के नियमानुसार उन्हें सेवा से निलंबित कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि न्यायालय को दोषसिद्धि पर रोक लगानी चाहिए.

बंबई उच्च न्यायालय ने चार मई को निचली अदालत के आदेश को पलट दिया था. निचली अदालत ने बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 लोगों (एक दोषी की मौत हो चुकी है) को दोषी करार दिया था और भगोरा एवं अन्य को दोषमुक्त करार दिया था.

उच्च न्यायालय ने पांच पुलिसकर्मियों के अलावा दो चिकित्सकों को भी दोषी करार दिया था. पीठ ने कहा था कि पांच पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों समेत सात लोगों को भारतीय दंड संहिता की धारा 218 (अपने कर्तव्य का निवर्हन न करना) और धारा 201 (साक्ष्यों से छेड़छाड़) के तहत दोषी ठहराया जाता है.

एक विशेष अदालत ने बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार करने और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के मामले में 11 लोगों को 21 जनवरी 2008 को दोषी ठहराया था. सामूहिक बलात्कार और हत्या का यह प्रकरण गोधरा दंगों के बाद हुआ था. अदालत ने पुलिसकर्मियों और चिकित्सकों समेत सात लोगों को दोषमुक्त करार दिया था. बाद में दोषी अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय पहुंचे और निचली अदालत का आदेश निरस्त करने और उसे दरकिनार करने की मांग की.

सीबीआई ने भी दोषी करार दिए गए लोगों में से तीन के लिए मौत की सजा की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी. यह मांग इस आधार पर की गई कि यही तीनों लोग अपराध के मुख्य साजिशकर्ता थे. अभियोजन पक्ष के अनुसार, गोधरा कांड के बाद के दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास रंधीकपुर गांव में तीन मार्च, 2002 को बिलकिस बानो के परिवार पर भीड़ ने हमला कर दिया था. इसमें बिलकिस के परिवार के सात सदस्य मारे गए थे.

उस समय बिलकिस पांच माह की गर्भवती थी. वहां उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. बिलकिस के परिवार के छह अन्य सदस्य भीड़ से बच निकलने में कामयाब रहे. मामले की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकिस ने यह आशंका जाहिर की थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और सीबीआई के साक्ष्यों से छेड़छाड़ की जा सकती है. उच्चतम न्यायालय ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया था.

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