तो क्या NOTA मतों की संख्या जीत के अंतर से ज्यादा होने पर फिर से होगा चुनाव!
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तो क्या NOTA मतों की संख्या जीत के अंतर से ज्यादा होने पर फिर से होगा चुनाव!

नोटा (नन ऑफ द एबव) मतदाता को यह अधिकार देता है कि वह किसी खास सीट से चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार के लिये मतदान नहीं करे.

भारत में ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट निर्वाचन प्रणाली’ अब अपनी उपयोगिता खत्म कर चुकी है. (फाइल फोटो)

हैदराबाद: पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव कराने की वकालत की है जहां जीत का अंतर नोटा मतसंख्या की तुलना में कम रही और विजयी उम्मीदवार एक तिहाई मत जुटाने में भी नाकाम रहे. उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि भारत में ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट निर्वाचन प्रणाली’ अब अपनी उपयोगिता खत्म कर चुकी है. कृष्णमूर्ति ने बताया, ‘‘मेरे विचार में नोटा बहुत बेहतर है. हमें यह कहना चाहिए कि अगर नोटा मतों के कुछ निश्चित प्रतिशत को पार कर जाता है जैसे अगर विजेता एवं पराजित उम्मीदवार के बीच मतों का अंतर नोटा मतों से कम होता है, तो आप कह सकते हैं कि हमें दूसरी बार चुनाव कराना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि इस उपाय को लागू करने के लिये कानून बनाने की जरूरत है.

  1. गुजरात में विधानसभा चुनावों में 5.5 लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा बटन दबाया था. 
  2. वहां कई विधानसभा क्षेत्रों में जीत का अंतर नोटा मतों की संख्या से कम था. 
  3. नोटा मतों की संख्या कांग्रेस, भाजपा को छोड़कर अन्य पार्टी के मतों की संख्या से अधिक थी.

नोटा (नन ऑफ द एबव) मतदाता को यह अधिकार देता है कि वह किसी खास सीट से चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार के लिये मतदान नहीं करे. गुजरात में हालिया विधानसभा चुनावों में 5.5 लाख से अधिक या 1.8 प्रतिशत मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर नोटा बटन दबाया था. वहां कई विधानसभा क्षेत्रों में जीत का अंतर नोटा मतों की संख्या से कम था. गुजरात विधानसभा चुनावों में नोटा मतों की संख्या कांग्रेस एवं भाजपा को छोड़कर किसी भी अन्य पार्टी के मतों की संख्या से अधिक थी.

(इनपुट एजेंसी से भी)

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