ZEE जानकारी: हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात चुनाव पर क्या प्रभाव डाला ?
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ZEE जानकारी: हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात चुनाव पर क्या प्रभाव डाला ?

गुजरात चुनाव में राज्य के तीन लड़के.. हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की चर्चा सबसे ज्यादा रही. गुजरात के इन तीन लड़कों ने राहुल गांधी की कितनी मदद की ? इसका भी हमने विश्लेषण किया है. 

ZEE जानकारी: हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात चुनाव पर क्या प्रभाव डाला ?

गुजरात में नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बाद अगर सबसे ज़्यादा चर्चा किसी की हुई ? तो वो थे गुजरात के तीन लड़के.. हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी . गुजरात के इन तीन लड़कों ने राहुल गांधी की कितनी मदद की ? इसका भी हमने विश्लेषण किया है . पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के 3 समर्थकों को कांग्रेस ने टिकट दिया . इन तीन में से हार्दिक के 2 समर्थक जीते लेकिन 1 समर्थक की हार हुई. OBC से आने वाले अल्पेश ठाकोर और उनके 5 समर्थकों को भी कांग्रेस ने टिकट दिया . इन 6 सीटों में 3 सीटों पर जीत हुई और 3 पर हार . दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने वडगाम से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा . कांग्रेस ने जिग्नेश मेवाणी का समर्थन किया था . जिग्नेश मेवाणी चुनाव जीत गए .  अब इसका मतलब आपको समझाते हैं . कांग्रेस ने गुजरात के तीन लड़कों को कुल 9 सीटें दीं और एक सीट पर समर्थन किया . कुल मिलाकर इन 10 सीटों में से 6 सीटों पर जीत हुई और 4 सीटों पर हार . 

कांग्रेस ने Bhartiya Tribal Party के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. कांग्रेस गठबंधन ने कुल 80 सीटें जीती हैं इसमें से कांग्रेस ने 77 सीटें जीती हैं . बाकी 3 सीटें सहयोगियों की हैं और इसमें जिग्नेश मेवाणी की सीट भी शामिल है .  अब अगर इस 77 में से हम हार्दिक के समर्थकों और अल्पेश ठाकोर के साथिय़ों की 5 सीटें घटा दें . तो इसका मतलब ये है कि कांग्रेस ने अपनी मेहनत से सिर्फ 72 सीटें जीती हैं . 

लेकिन यहां हमें सौराष्ट्र के नतीजों को भी एक बार और देखना चाहिए . क्योंकि ये पटेल बहुल इलाका माना जाता है और यहां पर हार्दिक पटेल ने सबसे ज़्यादा ज़ोर लगाया था. सौराष्ट्र में कुल 54 सीटें हैं. वहां बीजेपी ने 23 सीटें जीती हैं . 2012 की तुलना में बीजेपी को 12 सीटों का नुकसान हुआ . कांग्रेस ने सौराष्ट्र में 30 सीटें जीती हैं . 2012 की तुलना में कांग्रेस को 14 सीटों का फायदा हुआ है . यही वो इलाका है जहां पर बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है . 

यहां एक खास बात आपको और गौर करनी चाहिए अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी खुद बतौर उम्मीदवार खड़े हो गए . लेकिन हार्दिक पटेल ने खुद चुनाव नहीं लड़ा बल्कि चुनाव लड़वाया . अगर इस तरह से देखें तो हम ये कह सकते हैं कि अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी बीजेपी को उतना नुकसान नहीं पहुंचा सके . जितना कि हार्दिक पटेल ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया. आप ये कह सकते हैं कि अगर बीजेपी और कांग्रेस के बीच... कांटे का मुकाबला हुआ तो इसके लिए हार्दिक पटेल का आरक्षण वाला दांव बहुत हद तक ज़िम्मेदार है . 

भारत में ये अकसर कहा जाता है कि बिना जाति और धर्म का कार्ड खेले बिना... कोई भी चुनाव जीता नहीं जा सकता. लेकिन ये बात गुजरात चुनाव पर लागू नहीं हुई. गुजरात में करीब 12 प्रतिशत पाटीदार और 10 प्रतिशत मुसलमान वोटर हैं. अगर इन दोनों समुदायों के वोटों को मिला दिया जाए तो ये आंकड़ा करीब 22 प्रतिशत हो जाता है. कांग्रेस को ये पूरी उम्मीद थी कि पाटीदार और मुसलमान वोटर उसके लिए Game Changer साबित हो सकता हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 

हांलाकि ये बात पहले से ही तय थी कि गुजरात में मुसलमान..... कांग्रेस के पारंपरिक वोटर हैं.....उनके पास कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेलने की कोशिश की... जिसमें उसे सफलता नहीं मिली. लेकिन आरक्षण के मसले पर एकजुट होने वाले पाटीदार समाज से वोट हासिल करने की कांग्रेस की कोशिशें फेल हो गईं. यानी राहुल गांधी और हार्दिक पटेल का 'याराना' कांग्रेस के काम नहीं आया...

गुजरात चुनावों में 49 सीटे ऐसी थीं जिन पर पाटीदार वोटर निर्णायक स्थिति में थे लेकिन ये मज़बूती कांग्रेस के काम नहीं आई. 49 सीटों में से 28 सीटें बीजेपी ने जीती हैं जबकि कांग्रेस ने इनमें से 20 सीट पर चुनाव जीता है यानी पाटीदार वोटर ने हार्दिक पटेल की बातों पर 100 फीसदी भरोसा नहीं किया. हार्दिक पटेल की सभाओं  में भारी भीड़ को देखकर कांग्रेस को ये गलतफहमी हो गई थी कि पटेल समुदाय का वोट उसकी जेब में है लेकिन इस मामले में कांग्रेस की जेब फटी हुई निकली 

इसके अलावा मुस्लिम समुदाय का वोट भी कांग्रेस को सत्ता दिलाने में काम नहीं आया.. क्योंकि मुसलमानों पर किसी का ध्यान नहीं था. कुल मिलाकर कहा जाए तो गुजरात चुनाव में कांग्रेस को ये संदेश मिल चुका है कि सिर्फ़ जातिवाद और तुष्टिकरण के हथियार से चुनाव नहीं जीता जा सकता, चुनाव जीतने के लिए सभी समुदायों का विश्वास पाना बहुत ज़रूरी है.  

गुजरात में आज के चुनावी नतीजों को देखते हुए आप ये भी कह सकते हैं कि कांग्रेस को NOTA ने हराया है. गुजरात के इन चुनावों में NOTA का कितना बड़ा रोल रहा है, इसे समझाने के लिए आपको उत्तर प्रदेश चुनावों का NOTA का आंकड़ा देखना होगा. इसी वर्ष जब मार्च के महीने में उत्तर प्रदेश में चुनाव हुआ था, तो उत्तर प्रदेश के 7 लाख 57 हज़ार 643 लोगों ने NOTA को चुना था. जो कुल पड़े वोट का 0.87% था. उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है और इतने बड़े राज्य के करोड़ों Voters में से ये Percentage बहुत कम है. जबकि गुजरात में 5 लाख 51 हज़ार 605 लोगों ने NOTA का बटन दबाया. 

गुजरात जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश से बहुत छोटा है, इसलिए इतने ज़्यादा लोगों का NOTA को वोट देना बहुत मायने रखता है. हमने जब गुजरात में विशेषज्ञों से बात की तो हमें ये भी पता चला कि इस बार के पाटीदार आंदोलन के बाद बहुत से लोग बीजेपी से नाराज़ थे. 

और जब युवा पाटीदार नेताओं ने कांग्रेस से हाथ मिलाया तो ये लोग उनसे भी नाराज़ हो गए. जब इन पाटीदार Voters से लोग वोट मांगने गए तो इन्होंने कांग्रेस को वोट देने से इनकार कर दिया. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी को भी वोट नहीं दिया, और NOTA का बटन दबाया. यानी एक तरह से पाटीदारों ने बीजेपी को भी एक बड़ा संदेश दिया है.

इस बार गुजरात के चुनाव में देश की राजनीति का Trend बदलता हुआ दिखा . ये बहुत बड़ी बात है कि इस बार देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों ने मुसलमानों को छोड़ दिया और सिर्फ हिंदुत्व पर अपना फोकस रखा. कांग्रेस और बीजेपी ने सिर्फ टीके की बात की.. टोपी को भूल गये. हमारे देश में अब तक हिंदू-मुसलमान, मंदिर मस्जिद, श्मशान-कब्रिस्तान.. के नाम पर ध्रुवीकरण होता रहा है... लेकिन इस बार गुजरात के चुनाव में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला . कांग्रेस ने अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति का त्याग कर दिया और इस बात पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जनेऊ धारी ब्राह्मण हैं . इसके अलावा राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार के बीच 27 मंदिरों के दर्शन भी किए. हालांकि उन्हें जीत का आशीर्वाद तो नहीं मिला... लेकिन भगवान सोमनाथ की कृपा राहुल गांधी पर खूब बरसी है .

राहुल गांधी ने सोमनाथ मंदिर में पूजा की थी . और सोमनाथ ज़िले की सभी 4 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी की जीत हुई है. हालांकि सवाल ये भी है कि आने वाले दौर में ध्रुवीकरण किस आधार पर होगा? क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने.. मुसलमानों को छोड़ दिया है.

गुजरात चुनावों के बीच हिमाचल प्रदेश की बात कम हो रही है. क्योंकि हिमाचल प्रदेश में नतीजा एकदम सीधा है. वहां बीजेपी ने 68 में से 44 सीटें जीती हैं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटें मिली हैं. लेकिन बड़ी बात ये है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल हार गए है. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं, और उन्हें लोगों ने खारिज कर दिया है.  वीरभद्र सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को बीजेपी ने मुद्दा बनाया था. और ऐसा लगता है कि बीजेपी का ये अभियान चुनाव में काम आया. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में गुड़िया गैंगरेप केस के बाद कानून व्यवस्था पर भी सवाल उठे थे.. इसका नुकसान भी कांग्रेस की सरकार को उठाना पड़ा. कुल मिलाकर फसलफा ये है कि हिमाचल प्रदेश की जनता ने पांच साल में ही कांग्रेस को बदल दिया. .जबकि गुजरात की जनता ने.. 22 साल में भी बीजेपी को नहीं बदला.  लेकिन इस बीच सवाल ये है कि बीजेपी की तरफ से हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन बनेगा? हमारे सूत्र बता रहे हैं कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश के नये मुख्यमंत्री हो सकते हैं. उनके नाम पर बीजेपी में विचार चल रहा है. 

अब अंत में देखते हैं कि इन चुनावों का सार क्या निकला सबसे पहले देखते हैं कि ये चुनाव बीजेपी के लिए क्या सबक लेकर आए हैं? 

गुजरात के ये चुनावी नतीजे बताते हैं कि बीजेपी को अब ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा Focus करने की ज़रूरत है. क्योंकि इस बार ग्रामीण इलाकों से बीजेपी को नहीं बल्कि कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले हैं. 

अगले साल 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. ये चुनाव पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में होंगे. और इन राज्यों में भी ज़्यादातर इलाक़े ग्रामीण हैं. ऐसे में बीजेपी को ये भी देखना होगा कि इन राज्यों में वो अपनी चुनावी रणनीति कैसे बनाएगी.

बीजेपी का हाल इस वक्त वैसा ही है, जैसा एक वक्त में भारतीय क्रिकेट टीम का होता था. यानी अगर सचिन तेंदुलकर चले तो मैच जीता, नहीं चले तो हार गए. इसी तरह से बीजेपी भी नरेन्द्र मोदी पर बहुत ज्यादा आश्रित है. बीजेपी को इस परिस्थिति से बाहर निकलना होगा. 

अब कांग्रेस की बात कर लेते हैं. गुजरात के चुनावी नतीजों में कांग्रेस के लिए बड़ी सीख ये है कि उसे अब शहरी इलाकों में फोकस करना होगा. 

कांग्रेस के साथ भी वही समस्या है. वो अपने लोकल मुद्दों पर लड़ने के बजाए राहुल गांधी के भरोसे ज्यादा दिखती है. पंजाब में ये साबित हो चुका है कि अगर कांग्रेस के लोकल संगठन में दम हो तो बीजेपी और उसके गठबंधन को हराया जा सकता है. 

गुजरात के चुनावों में कांग्रेस के पुराने नेता हारे हैं. इसका मतलब ये है कि कांग्रेस को अब अपने पुराने नेताओं को हटाना होगा. और नई पीढ़ी को मौका देना होगा. कांग्रेस को अब नये मुद्दे तलाशने होंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला करने के बजाए असली मुद्दे खोजने होंगे. 

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