साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद भारत में होने वाले चुनावों में एक क्रांतिकारी बदलाव आया. 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि बैलेट पेपर व ईवीएम में बदलाव लाते हुए नोटा का विकल्प शामिल किया जाए.
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नई दिल्ली: साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद भारत में होने वाले चुनावों में एक क्रांतिकारी बदलाव आया. 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि बैलेट पेपर व ईवीएम में बदलाव लाते हुए नोटा का विकल्प शामिल किया जाए. इस एक आदेश के साथ लोगों को चुनावों में वोटिंग के दौरान नोटा (नन ऑफ द अबव- उपर्युक्त में से कोई नहीं) का विकल्प भी मिलने लगा. इससे उन लोगों को सुविधा हुई जो अपने मताधिकार का उपयोग तो करना चाहते हैं लेकिन किसी पार्टी विशेष को वोट नहीं देना चाहते.
नोटा बटन का प्रावधान पहली बार छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, दिल्ली और मध्यप्रदेश के चुनावों में इस्तेमाल किया गया था. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेश्नल इलेक्शन वॉच (न्यू) चुनावों में कितनी बार नोटा का इस्तेमाल किया गया, इसके आंकड़ें पर नजर रखते हैं.
हिमाचल प्रदेश की तुलना में गुजरात में नोटा का बटन दबाने वाले मतदाताओं की संख्या अधिक रही
NOTA का 1.33 करोड़ बार इस्तेमाल