जम्मू कश्मीर में खंडित जनादेश के बीच PDP सबसे बड़ी पार्टी, झारखंड में भाजपा-आजसू गठबंधन को मिला जनादेश
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जम्मू कश्मीर में खंडित जनादेश के बीच PDP सबसे बड़ी पार्टी, झारखंड में भाजपा-आजसू गठबंधन को मिला जनादेश

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आया है, जिसमें पीडीपी (28 सीट) सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है और सरकार बनाने की बहुत सी संभावनाएं उसके लिए खुली हैं, जबकि झारखंड में भाजपा अपने सहयोगी दल आजसू के साथ (37+5) मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में है।

जम्मू कश्मीर में खंडित जनादेश के बीच PDP सबसे बड़ी पार्टी, झारखंड में भाजपा-आजसू गठबंधन को मिला जनादेश

श्रीनगर/रांची : जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आया है, जिसमें पीडीपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है और सरकार बनाने की बहुत सी संभावनाएं उसके लिए खुली हैं, जबकि झारखंड में भाजपा अपने सहयोगी दल आजसू के साथ मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में है।

पीडीपी 28 सीटों के साथ सरकार बनाने की होड़ में सबसे आगे है और ऐसा लगता है कि पार्टी ने सभी विकल्प खुले रखे हुए हैं। कमोवेश यही स्थिति भाजपा की है, जिसे 25 सीटें मिली हैं, जो सभी जम्मू क्षेत्र से हैं। पार्टी ने राज्य में अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया है।

इस वर्ष के लोकसभा चुनाव में शानदार जीत, उसके बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा में जीत के बाद झारखंड की इस जीत ने भाजपा के विजय इतिहास में एक और सफा जोड़ दिया है। जम्मू कश्मीर की 87 सदस्यीय विधानसभा के लिए भाजपा ने मिशन 44प्लस को लेकर ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया था और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां जमकर प्रचार किया, लेकिन घाटी और लद्दाख के मतदाताओं को लुभाने में मोदी नाकाम रहे, जहां की 50 सीटों पर पार्टी के हाथ कुछ नहीं लगा।

हालांकि पार्टी ने 2008 की 11 सीटों के मुकाबले 25 सीटें जीतीं और उसके लिए सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने की संभावनाएं खुली हैं। पीडीपी की सीटों की संख्या 21 से बढ़कर 28 हो गई। सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस को चुनाव परिणामों से तगड़ा झटका लगा। पार्टी को पिछले चुनाव में 28 सीटें मिली थीं, जो घटकर 19 रह गईं। मुख्यमंत्री और एनसी के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला सोनावार सीट से चुनाव हार गए और बीरवाह सीट जैसे-तैसे बचाने में कामयाब रहे जहां उन्हें 1000 से कुछ अधिक वोट से जीत मिली।

जम्मू कश्मीर में एनसी के साथ सत्ता में भागीदार कांग्रेस 12 सीटों के साथ चौथे स्थान पर सरक गई है। पार्टी के पास पिछली विधानसभा में 17 सीटें थीं। पूर्व पृथकतावादी सज्जाद लोन की जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस ने दो सीटें जीती हैं, जबकि जेकेपीडीएफ (सेक्यूलर) और सीपीआईएम को एक-एक सीट मिली है। निर्दलीय उम्मीदवार तीन स्थानों पर विजयी रहे हैं। नतीजों के बाद विभिन्न दलों की स्थिति साफ हो गई है और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि ‘सरकार बनाने का विकल्प, सरकार को समर्थन देने का विकल्प और सरकार में शामिल होने का विकल्प, सभी खुले हैं।’

श्रीनगर में पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी सबको अटकलों के बीच छोड़ दिया। उन्होंने कहा, ‘हमारी प्राथमिकता जोड़-तोड़ करके सरकार बनाना नहीं है। संभावनाओं का पता लगाने और सरकार बनाने में समय लगेगा ताकि लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके। यह कहना मुश्किल है कि ऐसा कब होगा।’ निवर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी अपने पत्ते नहीं खोले और सिर्फ इतना दावा किया कि मौजूदा हालात में नेशनल कांफ्रेंस की अनदेखी नहीं की जा सकती। आने वाले कुछ दिनों में जम्मू और कश्मीर में जो कुछ भी होगा एनसी उसमें एक बड़ी खिलाड़ी होगी।

यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि जम्मू कश्मीर में वोटों के बंटवारे के लिहाज से भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। घाटी और लद्दाख में भले ही पार्टी का खाता नहीं खुल पाया, लेकिन पार्टी 23 प्रतिशत वोट लेकर सबसे आगे रही। पीडीपी को 22.7 प्रतिशत, नेशनल कांफ्रेंस को 20.8 प्रतिशत और कांग्रेस को 18 प्रतिशत वोट मिले।

14 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए राज्य झारखंड को पहली स्थायी सरकार मिलने जा रही है क्योंकि 81 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा और आजसू के गठबंधन को 42 सीटें मिल चुकी हैं और बहुमत के लिए 41 सीटों की जरूरत थी। इसमें आजसू की पांच सीटें हैं। राज्य में पिछले 14 साल में नौ सरकारें बनी और इस दौरान तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया। इस बार राज्य ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास के नारे पर भरोसा करते हुए निर्णायक जनादेश दिया है। भाजपा के सहयोगी आजसू को बड़ा झटका लगा जब उसके प्रमुख और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो अपने गृह क्षेत्र सिल्ली से चुनाव हार गए जहां से वह पिछले 15 वर्ष से विधायक थे। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 19 सीटें जीती हैं, जबकि सरकार में उसकी भागीदार कांग्रेस को छह सीटें हासिल हुई हैं।

भाजपा ने जहां 2009 में मिली 18 सीटों को 37 तक पहुंचाया वहीं जेएमएम की सरकार भले ही चली गई, लेकिन उसकी सीटें 18 से बढ़कर 19 हो गईं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बरहेट से 24,087 वोट से जीते, जबकि दुमका में उन्हें 5,262 वोट से हार का मुंह देखना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के नेतृत्व वाले जेवीएम (पी) ने आठ सीटें जीतीं। मोर्चे ने पिछले चुनाव में 11 सीटों पर विजय हासिल की थी। भाजपा वोट बंटवारे में भी अव्वल रही। उसे कुल 31.4 प्रतिशत वोट मिले, जबकि जेएमएम को 20.5 प्रतिशत, कांग्रेस को 10.3 प्रतिशत और जेवीएम (पी) को 10 प्रतिशत वोट मिले।

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