मेडिकल रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि लीवर में होने वाले कैंसर की एक बड़ी वजह हेपेटाइटिस का वायरस है.
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नई दिल्ली: बचपन में बरती गई स्वास्थ्य संबंधी कुछ लापरवाहियों के चलते कई लोगों को भविष्य में घातक बीमारियों से जूझने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इन्हीं लापरवाहियों में एक लापरवाही हेपेटाइटिस के वैक्सिनेशन को लेकर भी है. अभिभावकों की लापरवाही के चलते हेपेटाइटिस के वैक्सिनेशन से महरूम रहे बच्चों को वयस्क अवस्था में कैंसर जैसी घातक बीमारी का सामना करना पड़ सकता है. जी हां, मेडिकल रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि लीवर में होने वाले कैंसर की एक बड़ी वजह हेपेटाइटिस का वायरस है.
ढलती उम्र के साथ लिवर में बढ़ता है कैंसर का प्रभाव
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. पीके दास ने जी-डिजिटल से बातचीत में बताया कि हेपेटायटिस का वायरस बेहद धीमी गति से लीवर को अपना शिकार बनाता है. युवा अवस्था में हेपेटाइटिस के वायरस का असर नजर नहीं आता है. क्योंकि, शरीर में मौजूद ताकत हेपेटाइटिस वायरस के प्रभाव को दबाकर रखती है. जैसे-जैसे शरीर की शक्ति क्षीर्ण होती है, वैसे-वैसे कैंसर की बीमारी लीवर को अपने गिरफ्त में लेता चला जाता है.
ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराने वालों को बरतनी होगी सावधानी
डॉ. पीके दास के अनुसार, जब-तक किसी शख्स को इस बीमारी के बाबत पता चलता है, तब-तक बहुत देर हो चुकी होती है. डॉ. पीके दास की सलाह है कि समय पर हेपेटाइटिस के वैक्सिनेशन के जरिए लिवर के कैंसर से बचा जा सकता है. वहीं किसी कारण से कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन की प्रक्रिया से गुजरने वाले लोगों को भी हेपेटाइटिस के वायरस के प्रति सचेत रहना चाहिए. एक निश्चित अंतराल में स्वास्थ्य परीक्षण के जरिए वह हेपेटाइटिस और लिवर के कैंसर के खतरे से बच सकते हैं.
सिरोसिस की अवस्था में बढ़ जाता है कैंसर का खतरा
जी- डिजिटल से बातचीत में डॉ.पीके दास ने बताया कि शरीर में मौजूद हेपेटाइटिस का वायरस सीधे लीवर पर अटैक करता है. जिसके चलते, लीवर में सूझन आ जाती है. युवा अवस्था में शरीर में मौजूद ऊर्जा के चलते ज्यादातर लोग इस पर ध्यान नहीं देते हैं. जिसके चलते, कई सालों तक वायरस के चलते लीवर में सूझन आने और सूझन खत्म होने की प्रक्रिया लगातार चलती रही है. इसी प्रक्रिया के चलते लीवर सिकुड़ जाता है. जिसे सिरोसिस की अवस्था बोलते है. यही सिरोसिर भविष्य में कैंसर में तब्दील हो जाता है.