बाजार में ऑक्सिटोसिन की किल्लत, बढ़ सकती है काला बाजारी
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बाजार में ऑक्सिटोसिन की किल्लत, बढ़ सकती है काला बाजारी

 केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से 27 अप्रैल, 2018 को ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन की सार्वजनिक बिक्री पर बैन के लिए एक नोटिस जारी हुआ था. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

सुमन अग्रवाल, नई दिल्ली: ऑक्सिटोसिन पर अचानक बैन लगने से अस्पताल, दवा कंपनी और डॉक्टरों में एक हलचल सी मच गई है. आने वाले दिनों में अस्पतालों में ऑक्सिटोसिन की काफी कमी देखने को मिल सकती है और इसकी काला बादारी भी बढ़ सकती है , ऐसे संकेत मिल रहे हैं !डिलीवरी के दौरान ऑक्सिटोसिन का कोई विकल्प अब तक नहीं बना है. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि बगैर किसी तैयारी और विकल्प के कैसे सरकार ने इसके इस्तेमाल, इंपोर्ट और मैन्यूफ्रेक्चरिंग पर रोक लगा दी और क्या एक कंपनी बाज़ार की मांग पूरी कर पाएगी ! क्योंकि केएपीएल (karnataka antibiotic pharmaceutical limited) ने बताया की उनके पास प्राइवेट अस्पतालों से अब तक एक भी आरडर नहीं आया है! 

दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से 27 अप्रैल, 2018 को ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन की सार्वजनिक बिक्री पर बैन के लिए एक नोटिस जारी हुआ था. जिसके तहत 1 जुलाई, 2018 को इस दवाई को बैन किया जाना था. हालांकि शासन ने सभी प्राइवेट स्टोर्स संचालकों को स्टॉक खत्म करने के अब एक सितंबर तक की मोहलत दे दी है. लेकिन जब हमने कुछ अस्पतालों से बात की तो पता चला कि उनके पास स्टॉक ज्यादा नहीं है और कर्नाटक की जिस कंपनी ने इसकी मैन्यूफ्रेक्चरिंग का काम लिया है वो जुलाई के मध्य से इसे बनाना शुरू कर चुकी है. लेकिन इस दौरान कई बड़े अस्पतालों में जहां गाईनी वार्ड है वहां इसकी किल्लत अभी से दिखने लगी है.

क्योंकि नई मैन्यूफ्रेक्चरिंग नहीं हो रही और जो स्टॉक पड़ा था वो कभी भी खत्म हो सकता है. सप्लाई और चेन में बड़ा ग़ैप होगा आने वाले दिनों में ! हेल्थकेयर एट होम के सीओओ डॉक्टर गौरव ठुकराल बताते हैं कि एक कंपनी कैसे 125 कंपनियों जितना प्रोडक्शन दे पाएगी. बाजार में इसका कोई विकल्प नहीं है और जितना भी स्टाक है वो कुछ महीनों के भीतर खत्म हो  जाएगा. उसके बाद क्या होगा, भले ही कंपनी ने प्रोडक्शन शुरू कर दिया है लेकिन सप्लाई और डिमांड का गैप जरूर होगा. गांव तक ये पहुंचने में बहुत वक्त लगेगा. 

ये है नया नियम
पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर्स के रजिस्टर्ड अस्पतालों और क्लीनिक्स में मैन्यूफैक्चर्स कंपनी से डायरेक्ट सप्लाई मंगवाई जाएगी. जनऔषधि केंद्र सीधे शासन से जुड़े हैं इसलिए इन सेंटर्स पर भी ऑक्सीटोसिन बेचने के लिए अनुमति मिलेगी.किसी भी नाम से ऑक्सीटोसिन को प्राइवेट कैमिस्ट नहीं बेच सकेंगे. सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों को भी यह इंजेक्शन मंगवाने के लिए कंपनी को वाजिब कारण और पूरा रिकार्ड देना होगा. केएपीएल ने प्रोडक्शन शुरू कर दी है ! अब तक 18 lakh ampules बन चुकी है अगस्त तक 50 lakh की उम्मीद है 

गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है
गर्भवती महिलाओं के लिए ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है. रक्तस्राव होने, बिना ऑपरेशन के डिलीवरी और असहाय दर्द के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसे गलत तरीके से इस्तेमाल पर यह सेहत के लिए नुकसान देह भी है. गाईनी डॉक्टर खुद कहते हैं कि पर्याप्त मात्रा में इसके इस्तेमाल से कोई नुकसान नहीं होता है. दरअसल ऑक्सीटोसिन की कई बार कुछ कम जानकार ज्यादा डोज दे देते हैं, जिनसे गर्भवती महिलाओं को खतरा होता है. एक एमएल की डोज को भी पांच हिस्सों में बांटकर और वह भी गर्भवती की लगातार मॉनिटरिंग के बाद ही दिया जाता है. यही नहीं साल 2016 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने भी डेयरी उत्पादों में इसके अवैध इस्तेमाल की वजह से इसपर रोक का आदेश दिया था.

डॉक्टर (गाईनी) रुबी सेहरा ने कहा कि इसके बगैर हम डिलीवरी रूम की कल्पना भी नहीं कर सकते हैँ. इसका इस्तेमाल अगल सही मात्रा में किया जाए तो ये गलत नहीं है. डेयरी में इसका गलत इस्तेमाल होता है. हमें ब्लिडिंग रोकने के लिए इसे यूज करना ही होता है. देश में करीब 125 निजी फार्मा कंपनियां ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन का निर्माण करती थीं. निजी कंपनियों को ऑक्सीटोसिन के निर्माण संबंधी रॉ मैटेरियल सप्लाई पर भी रोक लगा दी गई है. 

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