दोषियों के आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
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दोषियों के आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका पर केंद्र से जवाब तलब

दोषी लोगों के जिस प्रकार कार्यपालिका और न्यायपालिका में प्रवेश पर रोक है उसी प्रकार ऐसे लोगों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का केंद्र और चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा।

दोषियों के आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका पर केंद्र से जवाब तलब

नई दिल्ली : दोषी लोगों के जिस प्रकार कार्यपालिका और न्यायपालिका में प्रवेश पर रोक है उसी प्रकार ऐसे लोगों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का केंद्र और चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति पी सी पंत की पीठ ने सरकार और चुनाव आयोग को याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिका में चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम आयुसीमा निर्धारित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, ‘आतंकवाद और नक्सलवाद के अलावा हमारे देश की सबसे गंभीर समस्या है व्यापक भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण।’ 

याचिका में कहा गया है, ‘कार्यपालिका और न्यायपालिका का कोई व्यक्ति जब किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है तो उसे स्वत: निलंबित कर दिया जाता है और आजीवन सेवा पर रोक लगा दी जाती है। हालांकि, यह नियम विधायिका के दोषी व्यक्ति के मामले में अलग तरीके से लागू होता है।’ 

याचिका में कहा गया है, ‘दोषसिद्धि और सजा काट रहे होने के बावजूद कोई दोषी व्यक्ति अपना राजनैतिक दल बना सकता है और किसी भी राजनैतिक दल का पदाधिकारी बनने के योग्य है।’ याचिका में कहा गया है, ‘इसके अलावा दोषी व्यक्ति दोषसिद्धि की तारीख से छह साल बीतने के बाद चुनाव लड़ने के योग्य हो जाता है और वह विधायिका के सदस्य के साथ-साथ मंत्री बन सकता है।’ 

याचिका में चुनाव आयोग, विधि आयोग और संविधान की समीक्षा के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रस्तावित चुनाव सुधारों को लागू करने की मांग की गई है। उपाध्याय ने यह भी कहा है कि राजनीति को अपराधियों से मुक्त तब तक करना असंभव है जब तक कि दोषी लोगों के चुनावी राजनीति में आने पर आजीवन प्रतिबंध नहीं लगा दिया जाता, जैसा दोषी लोगों के साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका में किया जाता है।

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