उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन मामला: सुप्रीम कोर्ट ने तय किए 7 सवाल और केंद्र से मांगा जवाब
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उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन मामला: सुप्रीम कोर्ट ने तय किए 7 सवाल और केंद्र से मांगा जवाब

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन की मियाद बुधवार को खत्म हो रही है और इस मामले को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने आज उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने से जुड़े सात सवाल तय किए और केन्द्र से उनका जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक सवाल में पूछा, क्या राज्यपाल सदन में शक्ति परीक्षण के लिए अनुच्छेद 175 (2) के तहत मौजूदा तरीके से संदेश भेज सकते हैं।

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन मामला: सुप्रीम कोर्ट ने तय किए 7 सवाल और केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्‍ली : उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन की मियाद बुधवार को खत्म हो रही है और इस मामले को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने आज उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने से जुड़े सात सवाल तय किए और केन्द्र से उनका जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक सवाल में पूछा, क्या राज्यपाल सदन में शक्ति परीक्षण के लिए अनुच्छेद 175 (2) के तहत मौजूदा तरीके से संदेश भेज सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने के उद्देश्यों के लिए विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से विधायकों को अयोग्य ठहराया जाना प्रासंगिक मुद्दा है। शीर्ष कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि क्या राष्ट्रपति केन्द्रीय शासन लगाने के लिए विधानसभा की कार्यवाही पर गौर कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने इस सवाल का जवाब मांगा कि कब विनियोग विधेयक के संबंध में राष्ट्रपति की भूमिका की जरूरत होती है। कोर्ट ने पूछा, क्या सदन में शक्ति परीक्षण में विलंब राष्ट्रपति शासन लगाने का एक आधार है।

नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केन्द्र की अपील पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मौजूदा मामले से उत्तराखंड के मुख्य सचिव का कोई लेना-देना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा का मुखिया होता है।

कोर्ट ने पिछली सुनवाई में केंद्र की अर्जी पर 27 अप्रैल तक उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के राष्ट्रपति शासन हटाने के फ़ैसले पर बुधवार तक की रोक लगाई थी और हाईकोर्ट को लिखित आदेश देने के निर्देश दिए थे।

केंद्र ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की थी। वहीं, दो बागी विधायकों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अनुरोध किया है कि उनकी अयोग्यता से जुड़े मामले पर भी सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करे।

सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल तक उत्तराखंड हाईकोर्ट के राष्ट्रपति शासन हटाने के फैसले पर रोक लगाई थी और हाईकोर्ट को लिखित आदेश देने के निर्देश दिए थे। दरअसल, नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य में राष्ट्रपति शासन को असंवैधानिक बताया था और सरकार बहाली के निर्देश दिए थे। हाईकोर्ट के फैसले के बाद हरीश रावत सरकार ने तुरंत कैबिनेट की बैठक बुलाई और ताबड़तोड़ कई फैसले भी ले लिए। लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति शासन अभी लागू है लिहाजा वो इस तरह के फैसले नहीं कर सकते हैं।

दरअसल हाईकोर्ट ने मौखिक तौर पर राज्य में राष्ट्रपति शासन को असंवैधानिक बता कर राज्य सरकार को बहाल कर दिया था और 28 अप्रैल विश्वास मत हासिल करने के निर्देश दिए थे। लेकिन लिखित फैसले देने के लिए एक सप्ताह का वक्त मुकर्रर कर दिया। केंद्र की सुप्रीम कोर्ट में दलील थी कि अधिसूचना के जरिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। और अधिसूचना जारी करने के बाद ही राष्ट्रपति शासन को हटाया जा सकता है। लेकिन नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के बाद भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है, लिहाजा यथास्थिति को बनाया रखा जाए। केंद्र सरकार की दलील पर सु्प्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को जारी रखने के निर्देश दिए। गौर हो कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के मुद्दे पर कांग्रेस सदस्यों ने मंगलवार को भी लगातार दूसरे दिन संसद में भारी हंगामा किया, जिससे दोनों सदनों की कार्यवाही बार बार बाधित हुई।

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