भारत रत्न एम. विश्वेश्वरय्या के जन्मदिन पर पूरा देश आज उन्हें याद कर रहा है
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नई दिल्ली: नव भारत के निर्माण की आधारशिला रखने वालों में अग्रणी रहे मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (एम. विश्वेश्वरय्या) का आज हीं 15 सितम्बर 1861 को तेलगु ब्राह्मण परिवार में आंध्र प्रदेश के चिकबल्लुर जिले के मुड्डेनहाली नामक गांव में जन्म हुआ था. उनके जन्मदिवस को पूरा देश इंजीनियर डे के रूप में भी मनाता है. उनके जन्मदिन के मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें याद किया और शुभकामनायें दी.
Tributes to Sir M Visvesvaraya on his birth anniversary & greetings to all my engineer friends on Engineer's Day.
— Narendra Modi (@narendramodi) September 15, 2013
एम. विश्वेश्वरय्या 1912-1918 तक मैसूर के दीवान भी रहें..भारत सरकार ने उन्हें उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए 1955 में भारत रत्न से भी नवाजा था. आम लोगों के बेहतरी के लिए कार्य करने को सदैव तत्पर रहें एम. विश्वेश्वरय्या को नाईट कमांडर की उपाधि तत्कालीन ब्रिटिश सल्तनत के दौरान किंग जॉर्ज पंचम ने दी.
कृष्णा सागर डैम के निर्माण में अहम योगदान
मैसूर के कृष्णा सागर डैम के निर्माण में उन्होंने उत्कृष्ट भूमिका निभाई थी. इसके साथ हीं हैदराबाद में बाढ़ की रोकथाम के लिए किए गए प्रयास की वजह से वो आज भी देश के इंजीनियर के लिए आदर्श माने जाते हैं.
श्रीनिवास शास्त्री और वेंकटलक्ष्मणा के पुत्र मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (एम. विश्वेश्वरय्या) को बचपन में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. 12 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया. उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान थें. सर एमवी के नाम से भी जानें वाले विश्वेश्वरय्या की प्रारंभिक शिक्षा चिकबल्लापुर में हुई थी.उसके बाद अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई उन्होंने बंगलुरु से पूरी की. मद्रास यूनिवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज बंगलुरु से आर्ट्स में बैचलर्स डिग्री पाने के बाद उन्होंने पुणे के प्रसिद्ध कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से सिविल इंजीनियरिंग से पढाई पूरी की.
सिविल इंजीनियरिंग की पढाई के बाद उन्होंने अपने करियर की शुरुआत मुंबई के पीडब्लूडी विभाग से की. उस समय के भारतीय सिंचाई कमीशन में भी वो रहें जहां उन्होंने दक्षिण भारत के दक्कन क्षेत्र में एक प्रभावी सिंचाई प्रणाली की शुरुआत भी की.
बांधो पर स्वचालित गेट की विश्वेश्वरय्या ने की थी शुरुआत
एम. विश्वेश्वरय्या को भारत में बाढ़ को रोकने के लिए स्वचालित द्वार निर्माण के लिए भी याद किया जाता हैं. भारत में इसकी परिकल्पना को उन्होंने ने हैं साकार किया. प्रारंभिक दौर में ऐसे गेट का निर्माण 1903 में पुणे के पास स्थित खडाकवासला जलाशय से हुयी. इसकी सफलता के बाद बाढ़ की रोकथाम के लिए ऐसे गेट का निर्माण टिगरा डैम और कृष्णा राजा सागर डैम में भी हुआ.
पानी की आपूर्ति और जल निकासी व्यवस्था के सन्दर्भ में विभिन्न तकनीक के अध्ययन के लिए वो एडेन भी गयें थें. हैदराबाद शहर को बाढ़ से निजाद दिलाने के लिए तैयार की गयी सफल कार्ययोजना की वजह से हैदराबाद शहर पूर्ण रूप से बढ़ मुक्त बना. साथ हीं समुद्र किनारे बसा विशाखापट्नम शहर को समुद्री कटाव से रोकने में उनकी योजना पूरी तरह सफल रही. 90 साल की उम्र में उन्होंने पुरे देश के नदियों पर होने वाले बांध के निर्माण की डिज़ाइन और सलाहकार के रूप में योगदान दिया.
दीवान और निज़ाम के यहां भी दी थी सेवा
मैसूर के दीवान के यहां काम करने से पहले एम. विश्वेश्वरय्या ने हैदराबाद के निजाम के शासन काल में भी उन्होंने इंजीनियर के रूप में उत्कृष्ट कार्य किया था. मैसूर में उन्होंने प्रतिष्ठित संस्था मैसूर सोप फैक्टरी,बंगलुरु कृषि विश्वविद्यालय,पारासीत्वयाड लाइब्रेरी,स्टेट बैंक ऑफ़ मैसूर और मैसूर आयरन और स्टील वर्क्स जैसी संस्थाओ की स्थापना की थी. दक्षिण बंगलुरु में स्थित जयनगर का खाका उनके द्वारा खिंचा गया था जिसे आज भी पूरे एशिया में सबसे बेहतरीन इलाको में माना जाता है. एम. विश्वेश्वरय्या को कन्नड़ भाषा के विकास में किये गए योगदान के लिए भी याद किया जाता है.