मोदी सरकार के फैसलों पर शिवसेना ने फिर किया प्रहार, पटेल की मूर्ति को लेकर पूछे कई सवाल
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मोदी सरकार के फैसलों पर शिवसेना ने फिर किया प्रहार, पटेल की मूर्ति को लेकर पूछे कई सवाल

शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सरदार पटेल की प्रतिमा पर खर्च हुए पैसों का जिक्र करते हुए बीजेपी सरकार पर निशाना साधने की कोशिश की है

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने अपने कॉलम 'रोखठोक' में उठाए कई सवाल (प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली: बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सरदार पटेल की प्रतिमा पर खर्च हुए पैसों का जिक्र करते हुए बीजेपी सरकार पर निशाना साधने की कोशिश की है. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने अपने कॉलम 'रोखठोक' में सवाल उठाते हुए लिखा है, "सरदार पटेल की प्रतिमा दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमा बन गई. देश की अर्थव्यवस्था धराशायी हो रही है. ऐसे समय में जनता की तिजोरी से हजारों करोड़ रुपए इस प्रतिमा पर खर्च किए गए. इस पर आलोचना शुरू है. सरदार लौहपुरुष थे, वो फौलाद आज पिघलता नजर आ रहा है. इसके साथ ही उन्होंने लिखा है कि सरदार पटेल प्रखर हिंदुत्ववादी नहीं थे. हिंदू राष्ट्र की संकल्पना उन्हें स्वीकार नहीं थी. सरदार पटेल के अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए मोदी की सरकार सत्ता में आई. सवाल उठाते हुए लिखा है कि क्या एक भी समस्या सही ढंग से हल हुई?"

  1. शिवसेना ने की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की आलोचना
  2. अपने मुखपत्र सामना में लेख से साधा बीजेपी पर निशाना
  3. लेख में पूछे पटेल की मूर्ति निर्माण से जुड़े तमाम सवाल

सामना में आगे लिखा है "आज देश की अर्थव्यवस्था दयनीय और उतनी ही अस्थिर हो गई है. इसलिए कई बार ऐसा सुनाई पड़ता है कि 'आज सरदार होते तो हिंदुस्तान की ऐसी दयनीय स्थिति दिखाई नहीं देती.' शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने भी सरदार के बारे में ऐसे ही गौरवपूर्ण उद्गार सार्वजनिक तौर पर व्यक्त किए थे. सरदार पटेल का उल्लेख लौहपुरुष के रूप में किया जाता है. यह फौलाद उनके मन में था. राजनीतिक स्वार्थ के लिए यह फौलाद कभी नहीं पिघला. ऐसे सरदार के विचार जो अमल में नहीं ला सके. उन राजनीतिज्ञों ने गुजरात में सरदार पटेल की अतिभव्य प्रतिमा का निर्माण किया."

"यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है. अमेरिका स्थित स्वतंत्रता की देवी की प्रतिमा जैसी ही पटेल की एकात्मता की अर्थात स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बन गई है और इस पर जो 3 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए वो आलोचना का विषय बन गया है. कश्मीर से लेकर आतंकवादियों तक एक भी समस्या हल नहीं हुई. सरदार पटेल के अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए मोदी की सरकार सत्ता में आई लेकिन क्या एक भी समस्या सही ढंग से हल हुई है. हर तरफ सिर्फ गड़बड़ी और घोटाला ही है. इन्हीं लोगों ने सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण किया है. सरदार पटेल की भव्य प्रतिमा निर्माण करनी थी लेकिन उसके लिए जो पैसा एकत्रित किया गया, वह गरीबों की जेब काटकर जमा किया. ब्रिटेन जैसे राष्ट्र ने मोदी सरकार की खिल्ली ही उड़ाई है."

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कॉलम में आगे लिखा गया है, "महिलाओं की समस्या, शिक्षा, पर्यावरण आदि क्षेत्रों में विकास कार्य करने के लिए हिंदुस्तानन ने ब्रिटेन से 100 अरब रुपए का कर्ज लिया. उसमें से 32 अरब रुपए सरदार की प्रतिमा के निर्माण में खर्च कर दिए. तुम्हारे पास पैसे का अजीर्ण हो गया इसलिए गरीबों का पैसा प्रतिमा पर खर्च कर रहे हो क्या? ऐसा सवाल ब्रिटेन के प्रमुख राजनेता पीटन बोन ने पूछा है."

मूर्ति निर्माण में लगे पैसों पर टिप्पणी करते हुए लेख में लिखा है, "इस भव्य प्रतिमा के लिए सरकार ने पैसे की कमी नहीं होने दी. लेकिन यह पैसा गुजरात सरकार की जेब से नहीं गया. शेष बचा पैसा भी जनता के ही कार्य के लिए ही था. कई बड़ी कंपनियां और सार्वजनिक उपक्रम अपने लाभ की दो फीसदी रकम रखती हैं. मतलब कार्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी योजना के लिए आरक्षित रखते हैं. अर्थात इस पैसे को समाज उपयोगी कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है. दिव्यांग, पिछड़ा वर्ग, शिक्षा के लिए काम करने वाली संस्थाओं को यह पैसा दिया जाता है. लेकिन, पिछले दो वर्षों में सीएसआर योजना के तहत सामाजिक संस्थाओं को एक दमड़ी भी नहीं मिली है. इसलिए कई स्कूल व दिव्यांग संस्थाएं बंद पड़ गर्इं. यह पैसा सरदार पटेल की प्रतिमा के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया."

लेख में आगे लिखा गया है कि इस प्रतिमा कार्य के लिए पंडित नेहरू द्वारा स्थापित की गई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने कितना बेशुमार पैसा दिया यह देखें...

- इंडियन ऑयल: 900 करोड़
- ओएनजीसी: 500 करोड़
- भारत पेट्रोलियम: 450 करोड़
- हिंदुस्तान पेट्रोलियम: 250 करोड़
- पॉवर ग्रिड: 125 करोड़
- गुजरात मिनरल्स डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन: 100 करोड़
- पेट्रोनेट इंडिया: 50 करोड़
- बामर लॉरी: 6 करोड़

इसके अलावा राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजेशन जैसी कंपनियों ने भी अपनी शत-प्रतिशत निधि मोदी के व्यक्तिगत स्वप्नपूर्ति के लिए मोड़कर सामाजिक कार्यों के लिए काम करने वाली संस्थाओं व लाखों गरीबों पर अन्याय किया.

मोदी सरकार के फैसले पर निशाना साधते हुए सामना के लेख में लिखा गया है, "ठाणे व अन्य जगहों पर दिव्यांगों के लिए काम करने वाली संस्थाओं को उदर निर्वाह के लिए सीएसआर फंड से दो-पांच लाख रुपए मिल जाएं इसलिए इन कंपनियों को आवेदन देते ही उन्होंने कहा कि पैसे शेष नहीं हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश से पूरा पैसा सरदार प्रतिमा के लिए घुमा दिया गया है. यह प्रकरण सरदार की आत्मा के लिए भी पीड़ादायक हुआ होगा."

लेख में आगे लिखा है, "महात्मा गांधी, पंडित नेहरू की तुलना में सरदार पटेल महान थे. ऐसा दृश्य राजनैतिक लाभ के लिए रचाया जा रहा है. यह अनुचित है. नेहरू और पटेल के लिए गांधी देवता तुल्य थे और नेहरू-पटेल का नाता सद्भावना का था. जवाहरलाल विचारशील हैं और सरदार कार्यकर्ता हैं, ऐसा गांधीजी ने 1931 में करांची में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में कहा था. सरदार भी विचारवान थे परंतु उनके विचार अव्यवहारी नहीं थे." 

सरदार पटेल के बारे में लेख में लिखा गया है, "पटेल एक सशक्त प्रशासक थे. लेकिन, प्रशासन में मंत्रियों को कभी भी व्यर्थ हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं होती है ऐसी पटेल की सोच थी. पटेल की प्रतिमा निर्माण करने वालों ने इस विचार को ध्वस्त कर दिया है. सीबीआई, रिजर्व बैंक, वित्त विभाग, पुलिस में जिस प्रकार से हस्तक्षेप हो रहा है उससे अराजकता निर्मित हो गई है. पटेल ने देश के सभी राजा-महाराजाओं के संस्थानों को हिंदुस्तान में विलीन कर दिया तथा हैदराबाद के बागी निजाम के राज्य में सेना भेजकर उसे घुटना टेकने पर मजबूर कर दिया. यह सत्य है. लेकिन, वे सचमुच व्यवहारी थे तथा फंसाने वाले आश्वासन नहीं देते थे. हम गरीबों के एकमात्र तारणहार हैं अथवा समाजवादी हैं, ऐसा दावा उन्होंने कभी नहीं किया."

संघ पर निशाना साधते हुए सरदार पटेल के बारे में आगे लिखा गया है, "सरदार पटेल प्रखर हिंदुत्ववादी नहीं थे. हिंदू राष्ट्र की संकल्पना उन्हें स्वीकार नहीं थी. गांधी की हत्या के बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पाबंदी लगा दी. भाषाई आधार पर प्रांत रचना व क्षेत्रियता का उन्होंने विरोध किया. इसलिए संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन को उनकी सहानुभूति नहीं मिली. भाषाई आधार पर प्रांत रचना के कारण देश का भाषावार विभाजन होगा, पूरा देश एक है, ऐसी उनकी सोच थी. देश की प्रगति और स्थिरता इसी तरह राष्ट्रीयता की भावना में वृद्धि प्रभावित होगी तथा विघातक शक्तियों को मजबूती मिलेगी. इसका उन्हें दृढ़ विश्वास था. सरदार के जीवन में एकमात्र ध्येय था जो कि अखंड भारत, मजबूत भारत का निर्माण करना."

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अखंड भारत को लेकर सरदार पटेल की सोच पर टिप्पणी करते हुए लेख में कहा गया है, "वर्ष 1950 में सिखों द्वारा पहली बार खालिस्तान की मांग करते ही उन्होंने इसे 'विघटनकारी मांग' कहा. ऐसी मांगें मंजूर होने लगीं तो हिंदुस्तान जल्द ही 'पागलीस्तान' हो जाएगा, ऐसा वे कहते थे. कश्मीर का उन्हें हिंदुस्तान में ही विलय करना था, कश्मीर का स्वतंत्र दर्जा उन्हें स्वीकार नहीं था. सर्वराज्यों का काम-काज चलाते समय कश्मीर उससे अलग निकाला जाए, यह दुर्भाग्य है, ऐसा उनका स्पष्ट मत था. लेकिन, जिन्होंने सरदार की प्रतिमा निर्मित की उन्होंने सरदार के कितने वचनों को अमल में लाया?"

अंत में एक बार फिर मूर्ति निर्माण पर सवालिया निशान लगाते हुए लेख में लिखा गया है, "एक दिन यह हिंदुस्तान देश पाकिस्तान बन जाएगा, ऐसा कहने वाले सरदार आज नहीं हैं. सबसे ऊंची प्रतिमा के जरिए सरदार की यादें ताजा हो गर्इं. जनता की तिजोरी से सैकड़ों करोड़ रुपए सरदार की ऊंची प्रतिमा के लिए खर्च हो गए. गरीबों का हक मारकर यह हुआ. सरदार लोकप्रियता की किसी भी स्पर्धा में नहीं, अब सिर्फ स्पर्धा है, प्रतिमा ऊंची, इंसान संकीर्ण. देश ऊंचा कब होगा?"

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