आर्टिकल 35ए मामले में एसओएस इंटरनेशनल ने लगाई सुप्रीम कोर्ट में याचिका
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आर्टिकल 35ए मामले में एसओएस इंटरनेशनल ने लगाई सुप्रीम कोर्ट में याचिका

पीओके से विस्थापित लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन एसओएस इंटरनेशनल ने संविधान के अनुच्छेद 35ए की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिकाओं में उसे भी पक्षकार बनाने के लिए आवेदन दिया है.

फाइल फोटो

जम्मू: पीओके से विस्थापित लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन एसओएस इंटरनेशनल ने संविधान के अनुच्छेद 35ए की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिकाओं में उसे भी पक्षकार बनाने के लिए आवेदन दिया है. संगठन ने एक वक्तव्य में बताया कि शुक्रवार को दायर आवेदन में शीर्ष अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से विस्थापित लोगों की दुर्दशा पर विचार करे. वे इस प्रावधान के शिकार हैं.

एसओएस इंटरनेशनल के अध्यक्ष राजीव चुनी के आवेदन में केंद्र द्वारा मंजूर मामूली राहत पैकेज की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है. इसका लाभ वैसे लोग नहीं ले सकते हैं, जो राज्य के स्थायी निवासी नहीं हैं.

जम्मू कश्मीर में लोगों की स्थिति बेहद खराब 
बयान में कहा गया है कि याचिका में 12 लाख लोगों और 1.5 लाख से अधिक परिवारों की दुर्दशा पर जोर दिया गया है जो अब भी ट्रांजिट कैंप में रह रहे हैं और जम्मू कश्मीर में बेहद निंदनीय और खराब दशा में रह रहे हैं. इसमें कहा गया है कि दूसरे राज्यों में बस चुके विस्थापित लोग इस पैकेज का लाभ नहीं ले सकते हैं. वहीं, कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने भी 35ए को लेकर बयान दिया है. एक मीडिया रिपोर्ट में उन्‍होंने कहा कि भारतीय संविधान से आर्टिकल 35ए को खत्‍म नहीं करना चाहिए. इससे कश्‍मीरी दहशतजदा नहीं रहेंगे. जो अधिकार बीते 90 साल से संविधान में है उसे वहीं बने रहने देना चाहिए.

बातचीत में शामिल हों अलगाववादी हुर्रियत नेता- अय्यर
इसके कुछ समय बाद उन्‍होंने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि कश्‍मीर वार्ता में बातचीत की प्रक्रिया में अलगाववादी हुर्रियत नेताओं को भी शामिल करना चाहिए. उन्‍होंने क‍हा है कि कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग है. मैं अगर यहां आया हूं तो इसका मतलब है कि मैं कश्‍मीर के लोगों को अपना मानता हूं. अगर कोई अलग होना चाहता है तो हमें उससे बात करनी चाहिए. बातचीत में सभी वर्गों को शामिल करना चाहिए. मैं जानता हूं कि ऐसे कई कश्‍मीरी हैं जो भारत के साथ रहना चाहते हैं.

किसी हुर्रियत नेता से नहीं मिला
उन्‍होंने कहा कि मैं पिछले साल मई माह में यहां आया था. उस समय हमने हुर्रियत को बातचीत के लिए दावत दी थी. उनके एक नेता आए थे लेकिन सभी नहीं आ सकते थे क्‍योंकि उन्‍हें नजरबंद कर दिया गया था. खासकर यासीन मलिक से नहीं मिल पाए थे. इसलिए मैंने शुक्रवार को उनको फोन करवाया था और यह पूछा था कि क्‍या इस बार मैं कश्‍मीर आ रहा हूं और आपसे मिल सकता हूं तो उन्‍होंने कहा वह मुझसे दिल्‍ली में मिलेंगे. मैं इस बार किसी हुर्रियत नेता से नहीं मिल रहा हूं. उन्‍हें हमें बातचीत में शामिल करना चाहिए.

राजनाथ ने भी दिया था बातचीत का न्‍योता
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं कि अलगाववादी वार्ता करने के लिए आगे आते हैं तो हुर्रियत कांफ्रेंस नेतृत्व के साथ बातचीत करने के लिए उनकी सरकार तैयार है. राजनाथ सिंह यहां एक टीवी चैनल से कहा था, ‘मैं पहले ही कह चुका हूं कि हम कश्मीर में सभी हितधारकों के साथ वार्ता के लिए तैयार हैं. यदि हुर्रियत आगे आता है तो हमें उनसे बात करने में कोई ऐतराज नहीं.’ यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए अलगाववादी नेतृत्व की ओर से कोई संकेत मिला है, सिंह ने कहा, ‘अब तक कोई संकेत नहीं मिला है.’ 

क्‍या है हुर्रियत नेताओं का स्‍टैंड
हुर्रियत कांफ्रेंस कश्‍मीर का सियासी संगठन है जो कश्मीर के भारत से अलगाव की वकालत करता है. उसने ऐलान किया है कि वह जम्मू और कश्मीर राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में हिस्सा नहीं लेगी. हालांकि कई अहम मुद्दों पर सदस्यों में आम राय नहीं है और समय-समय पर इनके मतभेद खुलकर सामने आते हैं.

(इनपुट एजेंसी से भी)

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