व्हाट्सऐप पर अफवाहों से भीड़ के गुस्से जैसी कई घटनाएं हुई हैं जिसमें महाराष्ट्र के रेनपाडा गांव में बच्चा चोर होने के संदेह में 5 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी.
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नई दिल्ली : देश में बढ़ रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार माना जा रहा है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की बात कही है. सरकार और कोर्ट के दबाव के बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म फर्जी खबरों को रोकने की कवायद में जुट गए हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सऐप पर अफवाहों को खत्म करने और फर्जी खबरों की पहचान करने के लिए महानगर के एक संस्थान के विशेषज्ञों की टीम एक एप्लीकेशन बना रही है जो बताएगी कि कोई संदेश फर्जी है अथवा नहीं. इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी दिल्ली (IIIT-D) के सहायक प्रोफेसर पोन्नुरांगम कुमारगुरु टीम का नेतृत्व कर रहे हैं जो ऐप विकसित कर रही है.
व्हाट्सऐप पर अफवाहों से भीड़ के गुस्से जैसी कई घटनाएं हुई हैं जिसमें महाराष्ट्र के रेनपाडा गांव में बच्चा चोर होने के संदेह में 5 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. हाल में कर्नाटक के बीदर में भीड़ ने 3 लोगों को बच्चा चोर होने के संदेह में पीट-पीटकर जख्मी कर दिया.
प्रोफेसर का मानना है कि वर्तमान परिदृश्य में एप्लीकेशन उपयोगी साबित होगा जब कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिसमें लोग व्हाट्सऐप पर फैली अफवाह के कारण हुई हिंसा का शिकार बन गए.
उन्होंने कहा, ‘हम काफी संख्या में डाटा इकट्ठा कर रहे हैं और लोगों से 9354325700 नंबर पर संदेश फैलाने के लिए कहा है. इस संदेश का विश्लेषण किया जाएगा और इसी मुताबिक हम इस तरह के संदेश पर लगाम लगाने के लिए मॉडल बनाएंगे.’
इससे पहले व्हाट्सऐप ने मैसेजों की संख्या पर लगाम लगाते हुए एक बार में केवल 5 लोगों को मैसेज देने की सुविधा शुरू की थी. इससे पहले इस सुविधा में असीमित लोगों को मैसेज भेजे जा सकते थे. व्हाट्सऐप के अलावा फेसबुक ने भी फर्जी खबरों को रोकने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया है.