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CAG की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में, वर्ष 2011 से लेकर 2016 के बीच... 8वीं कक्षा तक पहुंचते पहुंचते...1 करोड़ 21 लाख 29 हज़ार 657 बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया.
पिछले 6 वर्षों में सरकार 6 लाख बच्चों को किताबें उपलब्ध करवाने में नाकाम रही है पिछले 6 वर्षों में 97 लाख बच्चों को स्कूल की यूनिफॉर्म उपलब्ध नहीं करवाई गई.
CAG की ये रिपोर्ट बताती है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था की नींव कितनी खोखली है. और जब नींव ही खोखली हो.. तो एक मज़बूत इमारत की कल्पना कैसे की जा सकती है?
रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि उत्तर प्रदेश के 57 हज़ार 107 स्कूलों की Boundary Wall नहीं है. इसके अलावा 50 हज़ार 849 स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है. 35 हज़ार 995 स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है और 2 हज़ार 978 स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है...
देश में स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय बनाने की मुहिम चल रही है, फिर भी उत्तर प्रदेश के 1 हज़ार 191 स्कूलों में लड़कों के लिए और 543 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं है.
इतना सब होने के बावजूद हमारा सिस्टम..ये रट लगाए रहता है कि..स्कूल चले हम.. लेकिन हमारा सवाल ये है कि जब स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं तो बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे ?....इस रिपोर्ट से जो तस्वीर सामने आ रही है वो डराने वाली है और इससे ये पता चलता है कि हमारी सरकारी शिक्षा व्यवस्था.. सत्यानाश के पथ पर निरंतर आगे बढ़ रही हैं...
आपको याद दिला दें कि उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों की बदहाल शिक्षा व्यवस्था देखकर अगस्त 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट को ये कहना पड़ा था कि यूपी के अधिकारियों, नेताओं और जजों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि सरकारी शिक्षा पद्धति में सुधार लाया जा सके.
कोर्ट ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए ये आदेश भी दिया था कि जो सरकारी कर्मचारी इस आदेश का पालन नहीं करता उसके ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई भी की जाए.
सिस्टम के आलस और लापरवाही का पहाड़ जब हद से ज़्यादा ऊंचा हो जाता है तो कई बार अदालतों को हस्तक्षेप करना पड़ता है.
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की दयनीय हालत को देखकर हाल ही में नैनीताल हाइकोर्ट ने ये कहा था.. कि जब तक उत्तराखंड के बदहाल स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए कुर्सियां नहीं मिलतीं.. तब तक उत्तराखंड सरकार का कोई भी विभाग.. सरकारी खर्चे से कार, एयर कंडीशनर और water purifier जैसी चीज़ें नहीं खरीदेगा.
हाइकोर्ट ने राज्य के शिक्षा सचिव से ये भी पूछा था कि - "क्यों न स्कूलों को बुनियादी सुविधाएं मिलने तक... राज्य के सभी प्रशासनिक अधिकारियों का वेतन रोक दिया जाए"