ZEE जानकारी : जानें कैसी है ग्रामीण भारत की सेहत?
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ZEE जानकारी : जानें कैसी है ग्रामीण भारत की सेहत?

भारत की ज़्यादातर आबादी आज भी ग्रामीण इलाकों में रहती है और स्वास्थ्य मंत्रालय की Latest रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत की सेहत तेज़ी से ख़राब हो रही हैं. हैरानी की बात ये है कि भारत के गांवों रहने वाले लोग लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. 

 ZEE जानकारी : जानें कैसी है ग्रामीण भारत की सेहत?

दुनिया के ज़्यादातर देशों में ये चर्चा अक्सर की जाती है कि भारत एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है जिसे आने वाले दिनों में सुपरपॉवर कहा जाएगा....लेकिन इस बात दूसरा पहलू ये भी है कि सुपरपॉवर बनने से पहले भारत को एक स्वस्थ देश बनना होगा.. क्योंकि कोई भी बीमार देश.... सुपरपॉवर नहीं बन सकता. इस बात को समझने के लिए आज आपको ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की सेहत के बारे में जानना चाहिए . भारत की ज़्यादातर आबादी आज भी ग्रामीण इलाकों में रहती है और स्वास्थ्य मंत्रालय की Latest रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत की सेहत तेज़ी से ख़राब हो रही हैं. हैरानी की बात ये है कि भारत के गांवों रहने वाले लोग लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. 

लाइफ़ स्टाइल से होने वाली बीमारियों में मुख्य रूप से डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर और  दिल की बीमारियां आती हैं.  अब तक ये कहा जाता था कि ये बीमारियां शहरी लोगों को होती हैं लेकिन ऐसा नहीं हैं. Indian Council of Medical Research ने वर्ष 1990 से 2016 के दौरान ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की सेहत पर एक रिसर्च किया हैं जिसमें पता चला है कि ग्रामीण आबादी में डायबिटीज़ के मरीज़ों की संख्या 4 गुना बढ़ गई है. जबकि दिल की बीमारियों के मरीज़ों की संख्या 9 गुना हो गई है. इसके अलावा ब्रेन स्ट्रोक के मरीज़ 6 गुना बढ़े हैं और सांस की बीमारियों के मरीज़ 4 गुना बढ़े हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बीमारियों की वजह से होने वाली मौत की सबसे बड़ी वजह दिल की बीमारियां है. दिल की बीमारियां होने का सबसे बड़ा कारण ब्लड प्रेशर को माना जाता है. वर्ष 1990 में ग्रामीण इलाकों में ब्लड प्रेशर के मरीज़ों की संख्या 30 प्रतिशत थी लेकिन जीवन शैली में बदलाव की वजह से ये आंकड़ा 2016 में 55 प्रतिशत पहंच गया.

इस हिसाब से भारत के गांवों में रहने वाले लोगों की सेहत चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुकी है और दुख की बात ये है कि ग्रामीण इलाकों में देश का हेल्थ सिस्टम बहुत बीमार है. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं में भारी कमी की वजह बीमारियों के आंकड़े बहुत तेज़ी से बढ़े हैं और इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस साल बजट के दौरान केंद्र सरकार ने National Health Protection Scheme की घोषणा की है इस योजना में गरीब व्यक्ति को 5 लाख रूपये के स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिल सकेगा. ध्यान देने वाली बात ये है कि ग्रामीण इलाकों में जीवन शैली बहुत तेजी से बदल रही हैं. गांव में रहने वाले लोग अब मेहनत के बजाए मशीन पर निर्भर हो रहे हैं. आधुनिक होने के चक्कर में ये लोग.... डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं. 

आपको बताते हैं कि गांवों में रहने वाले लोग.. रोज़मर्रा के काम करके कैसे अपने आप को फिट रखते हैं. खेतों में 30 मिनट तक फावड़ा चलाने से 150 से 200 Calories Burn होती हैं. 
अगर आप 30 मिनट तक कुएं से पानी खींचते हैं तो इससे 200 से 250 Calories खर्च होती हैं. इसके अलावा पशु का चारा काटने वाली मशीन पर आधा घंटा बिताने पर 180 से 200 Calories burn होती हैं. जबकि घर की साफ़ सफ़ाई से जुड़े काम करने पर 150 से 200 Calories खर्च होती है.

शारीरिक मेहनत से जुड़े कामों को छोड़कर ग्रामीण भारत बीमारियों की तरफ़ बढ़ रहा है. आज हमने भारत की सेहत से जुड़े इस गंभीर विषय पर एक DNA टेस्ट तैयार किया है इस रिपोर्ट को देखने के बाद आपकी कई गलतफहमियां दूर हो जाएंगी. भारत के हर गांव के अंदर शहर बनने की ख्वाहिश है.. हर गांव के लोग शहरों जैसा जीवन जीना चाहते हैं. और इसीलिए अब शहरों वाली बीमारियों की एंट्री गांवों में हो चुकी है. हालांकि Workout करके और शारीरिक रूप से एक्टिव रहकर इन बीमारियों से बचा जा सकता है.. 

वैसे आज हमारे पास सेहत और Workout से जुड़ी एक ऐसी जानकारी है....जिसे सुनकर एक पल के लिए आपको अपने कानों पर यकीन नहीं होगा. ये Workout वाली सज़ा पर एक बहुत ही दिलचस्प Extra Knowledge है. अगर आप Exercise करने के लिए Gym जाते हैं, तो यकीनन ट्रेडमिल पर ज़रुर दौड़ते या चलते होंगे. ट्रेडमिल मशीन का इस्तेमाल आमतौर पर मोटापा कम करने और खुद को एक्टिव बनाने के लिए किया जाता है. इसकी रफ्तार आप अपनी ज़रुरत के मुताबिक कम या ज्यादा कर सकते हैं. ये एक ऐसी मशीन है, जो Portable होती है...और इसे आप एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी ले जा सकते हैं. 

ये सारी बातें तो आपको पता होंगी. लेकिन क्या आप ट्रेडमिल के इतिहास के बारे में जानते हैं ? क्या आपको इस बात की जानकारी है....कि जिस ट्रेडमिल पर हर रोज़ आप अपनी सेहत बनाते हैं.....उसका इस्तेमाल किसी ज़माने में क़ैदियों को यातनाएं देने के लिए किया जाता था. ये अपने आप में बहुत हैरानी की बात है. इसलिए आज हमने ट्रेडमिल के इतिहास पर एक छोटी सी रिपोर्ट तैयार की है. आप ना सिर्फ इस रिपोर्ट को देखिए, बल्कि अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ भी ये जानकारी Share कीजिए. अब हम भारत की स्वच्छता से जुड़ा एक ज़रूरी DNA टेस्ट करेंगे.

भारत के महान योगाचार्य पतंजलि ने स्वच्छता की बहुत गहरी परिभाषा दी थी. उनके मुताबिक स्वच्छता का मतलब है... मन की शुद्धता, संतोष का भाव, एकाग्रता और इंद्रियों पर नियंत्रण . स्वच्छता भारतीय संस्कृति का प्रमुख संस्कार है. देश में बच्चों को हमेशा ये सिखाया जाता है कि अपने घर में और घऱ के बाहर साफ-सफाई रखनी चाहिए . ये कोई ऐसी क्रांतिकारी बात नहीं है जिसके लिए अलग से करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करके अभियान चलाया जाए . हमें अपने घर, गांव, मोहल्ले, शहर, प्रदेश और देश को साफ सुथऱा रखना ही चाहिए . लेकिन हकीकत में ऐसा कभी होता नहीं है . 

भारत में लोग अपने घर को साफ करके.. कूड़ा-कचरा सड़क पर छोड़ देते हैं. गंदगी फैलाने में हमारे देश की जनता बहुत आगे है और ये आदतें किसी सरकारी अभियान या उपदेश से नहीं बदल सकतीं.. इसके लिए खुद प्रयास करना होगा. वैसे अगर लोग ध्यान से देखें तो उन्हें स्वच्छता की प्रेरणा लेने के लिए कहीं बाहर जाने की ज़रूरत नहीं.. हमारे अपने देश भारत में ही एशिया का सबसे स्वच्छ गांव मौजूद है.

आज हमने आपके लिए पूर्वोत्तर भारत के राज्य मेघालय की यात्रा का इंतज़ाम किया है. हमारे संवाददाता मेघालय के उस गांव में गए हैं.. जिसे सिर्फ भारत का ही नहीं.. बल्कि एशिया का सबसे स्वच्छ गांव कहा जाता है . ये गांव मेघालय की राजधानी शिलांग से 75 किलोमीटर दूर है . भारत का सबसे स्वच्छ गांव होने की वजह से इसका ज़िक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में भी किया था . 

अगर आप इस गांव की तस्वीरों को देखेंगे तो आपको लगेगा जैसे आप किसी स्वर्ग में आ गए हैं. यहां की सड़कें बहुत साफ हैं . यहां के पेड़-पौधों का रंग बहुत निखरा हुआ है क्योंकि यहां प्रदूषण नहीं है . पूरे गांव को रंग-बिरंगे और सुंदर फूलों की क्यारियों से सजाया गया है . यहां प्लास्टिक की थैलियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध है . यहां कोई भी शराब नहीं पीता . हर वर्ष मई और जून के महीनों में जब बारिश होती है.. तब यहां पर पेड़ लगाए जाते हैं . 

इस गांव में ऐसी बहुत सी खूबियां हैं जिनकी वजह से ये गांव एशिया का सबसे स्वच्छ गांव बन गया है . लेकिन हमारे देश के ज़्यादातर गांवों में गंदगी का साम्राज्य फैला हुआ है. National Sample Survey Office ने वर्ष 2015 में 3 हज़ार 788 गांवों में एक Survey किया था .  इनमें 44.4 % गांव ऐसे थे जहां पर पानी की निकासी के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं थी . और ग्रामीण इलाकों में 50.5 % परिवार ऐसे थे जो कूड़ा कचरा अपने घर के बाहर ही रखते हैं.

जिन गांवों में पानी की निकासी की व्यवस्था है भी.. वहां भी नालियां खुली होने की वजह से गंदगी बनी रहती है. इसके साथ ही लोगों में जागरूकता की कमी भी एक बहुत बड़ी समस्या है. भारत के तमाम गांवों को.. और उनका प्रबंधन करने वाले हमारे सिस्टम को आज मेघालय के इस गांव से प्रेरणा लेनी चाहिए . हमने काफी समय पहले DNA में ही आपको इस गांव के बारे में बताया था लेकिन इस बार हमारे संवाददाता ने बाकायदा इस गांव में जाकर.. एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है . इस गांव को देखकर आपको लगेगा जैसे आप किसी दूसरे देश में आ गये हैं.. और यही बात भारत के लिए सबसे बड़ी उम्मीद है. अगर भारत के एक गांव को ऐसा बनाया जा सकता है.. तो फिर पूरे देश को ऐसा बनाया जा सकता है.. बस ज़रूरत है.. इच्छाशक्ति की.

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