ज़ी जानकारीः होर्डिंग और रोबोट, बन रहे जिंदगी के दुश्मन ! जानिये कैसे
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ज़ी जानकारीः होर्डिंग और रोबोट, बन रहे जिंदगी के दुश्मन ! जानिये कैसे

20 मई को हैदराबाद के जुबिली हिल्स चेक प्वाइंट के पास एक बड़ा होर्डिंग नीचे खड़ी कारों पर गिर गया, गनीमत ये रही कि नीचे खड़ी कारों में कोई बैठा हुआ नहीं था, इसलिए किसी की जान नहीं गई, लेकिन नोएडा के लोग इतने खुशकिस्मत नहीं थे। 23 मई को नोएडा में एक बड़ा होर्डिंग सड़क पर गुजर रहे वाहनों पर गिर गया और इसकी वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि दो लोग घायल हो गए, इसी तरह 5 मई को गाज़ियाबाद में एक 40 फीट चौड़ा होर्डिंग जीटी रोड पर चल रहे वाहनों पर जा गिरा, इस हादसे में 3 वाहनों में सवार 4 लोग बुरी तरह घायल हो गए।

ज़ी जानकारीः होर्डिंग और रोबोट, बन रहे जिंदगी के दुश्मन ! जानिये कैसे

नई दिल्ली : 20 मई को हैदराबाद के जुबिली हिल्स चेक प्वाइंट के पास एक बड़ा होर्डिंग नीचे खड़ी कारों पर गिर गया, गनीमत ये रही कि नीचे खड़ी कारों में कोई बैठा हुआ नहीं था, इसलिए किसी की जान नहीं गई, लेकिन नोएडा के लोग इतने खुशकिस्मत नहीं थे। 23 मई को नोएडा में एक बड़ा होर्डिंग सड़क पर गुजर रहे वाहनों पर गिर गया और इसकी वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि दो लोग घायल हो गए, इसी तरह 5 मई को गाज़ियाबाद में एक 40 फीट चौड़ा होर्डिंग जीटी रोड पर चल रहे वाहनों पर जा गिरा, इस हादसे में 3 वाहनों में सवार 4 लोग बुरी तरह घायल हो गए।

इन होर्डिंग्स पर ज्यादातर विज्ञापन लगाए जाते हैं, जिनसे कुछ कंपनियों को लाखों करोड़ों रुपये की कमाई होती है। चुनावों के वक्त नेता भी अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए बड़े बड़े होर्डिंग्स लगवाते हैं, सरकार भी होर्डिंग्स और साइन बोर्ड्स की मदद से जरूरी सूचनाएं और रास्तों की जानकारी लोगों तक पहुंचाती है, लेकिन इन होर्डिंग्स के रखरखाव को लेकर कोई स्पष्ट नियम ना होने का फायदा उठाया जाता है और कमजोर हो चुके होर्डिंग्स लोगों की जान के लिए खतरा बन जाते हैं।

फिक्की और केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आउटडोर एडवर्टीजिंग का बाजार 2200 करोड़ रुपये से ज्यादा का है, जबकि 2019 तक ये बाजार 3 हजार 500 करोड़ रुपये का हो जाएगा। जाहिर है इस रकम का एक हिस्सा उन अधिकारियों की जेब में भी जाता है जो सड़कों पर इन अवैध होर्डिंग्स को लगाए जाने की इजाजत देते हैं। सड़कों पर होर्डिंग्स लगाए जाने को लेकर अलग अलग शहरों में अलग अलग नियम हैं लेकिन मोटे तौर पर कुछ नियम ऐसे हैं जिनका पालन लगभग हर शहर में किया जाना चाहिए, इन नियमों का आधार 1997 में आया सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक उन सभी होर्डिंग्स को सड़कों से हटा देना चाहिए जो खतरनाक हैं या फिर जिनसे  ट्रैफिक की मूवमेंट बाधित होती है। ऐसा कोई विज्ञापन या बोर्ड जो ट्रैफिक का ध्यान भटकाता हो, उसे भी हटाया जाना चाहिए। सड़कों के किनारे से लेकर 75 मीटर तक के दायरे में विज्ञापनों का बोर्ड नहीं लगाया जाना चाहिए। हाईवे पर होर्डिंग्स और शराब के ठेके भी नहीं होने चाहिए। एक नियम ये भी है एक ही जगह पर कई होर्डिंग्स नहीं लगाए जाने चाहिए।

विज्ञापनों वाले होर्डिंग्स सड़कों के बीच में, क्रॉसिंग पर और इंटरसेक्शन (वह जगह जहां सड़क एक-दूसरे को काटती हो) पर नहीं होने चाहिए। पूरी दुनिया में वर्ष 2014 में आतंकवादी घटनाओं में करीब 32 हजार लोग मारे गए जबकि भारत में 2015 में सड़क हादसों में 1 लाख 46 हजार लोगों की मौत हुई ये 2015 में पूरी दुनिया में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों के मुकाबले लगभग पांच गुनी संख्या है और इन घटनाओं में होर्डिंग्स का भी योगदान होता है। आपने देखा होगा कि हमारे देश में होर्डिंग्स उन्हीं जगहों पर होते हैं, जहां नहीं होने चाहिए और ये सब कुछ भ्रष्टाचार की वजह से होता है।

हमें लगता है भारत की सड़कों पर होर्डिंग्स की संख्या किसी महामारी की तरह बढ़ रही है और हमें इसका इलाज ढूंढना होगा, अवैध होर्डिंग्स के खिलाफ देश की जनता को आवाज उठानी होगी, क्योंकि पूरी दुनिया में सड़कों पर जरूरत से ज्यादा होर्डिंग्स को खतरनाक माना गया है। ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने जब रोड सेफ्टी पर एक रिसर्च करवाई तो पता चला कि सड़कों पर होने वाली कई दुर्घटनाओं के लिए गलत तरीके से लगाए गए होर्डिंग्स ज़िम्मेदार हैं।

इंग्लैंड में हुए एक रिसर्च में ये पाया गया कि बिल बोर्ड्स और होर्डिंग्स ट्रैफिक के लिए खतरा पैदा करते हैं। फिनलैंड में 2004 में की गई एक स्टडी में भी जानलेवा दुर्घटनाओं के लिए सड़कों पर मौजूद होर्डिंग्स को जिम्मेदार माना गया था। दुनिया के कई देशों ने इन साइलेंट किलर्स यानी होर्डिंग्स से छुटकारा पाने की कोशिशें भी शरू कर दी हैं। इन देशों में सख्त नियम बनाकर या तो इनकी संख्या को सीमित किया गया है या फिर सड़कों पर इन्हें पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है।

अमेरिका के चार राज्यों में बिलबोर्ड्स लगाना प्रतिबंधित है। इन राज्यों के नाम हैं- वेरमॉन्ट, अलास्का, हवाई और मेन इंग्लैंड में planning system के तहत होर्डिंग्स की संख्या को नियंत्रित किया जाता है, इंग्लैंड में बिना इजाजत के होर्डिंग्स लगाना कानूनन अपराध है और इसके लिए 1 लाख 86 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। ब्राजील के शहर साओ पाउलो में वर्ष 2007 से ही होर्डिंग्स लगाए जाने पर प्रतिबंध है। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया इलाके में होर्डिंग्स सड़कों से 300 मीटर की दूरी पर ही लगाए जा सकते हैं। इसी तरह कनाडा के टोरंटो शहर में होर्डिंग्स लगाने पर स्थानीय नगर निगम को टैक्स देना पड़ता है।

नौकरियां छीन रहे रोबोट, जानिये कैसे हो सकते हैं खतरनाक

नई दिल्ली : रोबोट और ड्रोन ने मिलकर दुनिया भर में हजारों लोगों की नौकरियां छीन ली हैं। ये इंसानों के मुकाबले ज्यादा खतरा उठा सकते हैं, ज्यादा देर तक काम कर सकते हैं, बिना शिकायत के अपना काम निपटा सकते हैं और कंपनियों के लाखों करोड़ों रुपये की बचत कर सकते हैं। इसलिए भविष्य में कंपनियां शायद आपके बजाय रोबोट का रेज्यूमे देखेंगी। 

चीन में फॉक्सकॉन नामक कंपनी ने 60 हजार कर्मचारियों की जगह रोबोट्स को काम पर रख लिया है। फॉक्सकॉन दुनिया की मशहूर कंपनियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने का काम करती है। इस फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 1 लाख 10 हजार से घटकर 50 हजार रह गई है। डेलॉइट और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक 35 प्रतिशत नौकरियां ऐसी होंगी जिसमें इंसानों की जरूरत नहीं पड़ेगी।

2013 में आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि आने वाले समय में होलसेल, रिटेल, ट्रांसपोर्ट और स्टोरेज सैक्टर में 50 प्रतिशत नौकरियां रोबोट्स के हाथ में होगी। मैक्डोनल्ड अमेरिका में अपने रेस्टोरेंट्स पूरी तरह से रोबोट्स के हाथों में सौंपने जा रहा है। ये रोबोट ऑर्डर लेने से लेकर बर्गर को लोगों की टेबल तक पहुंचाने का काम करेंगे। लेकिन अगर आप स्वास्थ्य, तकनीक या फिर शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हैं, तो आपकी नौकरी सुरक्षित रहेगी और रोबोट आपकी नौकरी नहीं छीन पाएंगे। 

पिछले कुछ वर्षों में मशीनों ने बोलना, सुनना, लिखना और जवाब देना सीख लिया है। मोबाइल फोन में वॉइस फीडबैक, वर्चुअल असिस्टेंट जैसे फीचर्स इसी तकनीक का नतीजा है और जल्द ही यह तकनीक कॉल सेंटर कर्मियों की जगह भी ले सकती है। खतरा पत्रकारों की नौकरी पर भी है। ऑटोमेटेड इनसाइट्स, नेरेटिव साइंस और मशहूर मीडिया संस्थान असोसिएटेड प्रेस रोबोट्स की मदद से खबरें लिख रहे हैं। ये रोबोट्स और सॉफ्टवेयर्स खेल, स्टॉक मार्केट और भूकंप जैसे विषयों पर आर्टिकल्स लिख रहे हैं। ये कंपनियां वर्ड्स्मिथ नामक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रही हैं, ये सॉफ्टवेयर 1 सेकेंड में 2 हज़ार खबरें या छोटे आर्टिकल लिख सकता है। यानी आठ घंटे की नौकरी के दौरान करीब छह करोड़ से ज्यादा खबरों का प्रकाशन इस सॉफ्टवेयर के जरिए संभव है।

कंसल्टिंग फर्म प्राइज़ वाटरहाउस कूपर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक ड्रोन्स दुनिया भर में 127 बिलियन डॉलर्स यानी 8 लाख 51 हज़ार करोड़ रुपये का कारोबार संभालेंगे। इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में ड्रोन्स की हिस्सेदारी करीब 45 बिलियन डॉलर्स यानी करीब 3 लाख करोड़ रुपये की होगी। इसी तरह कृषि, यातायात, सुरक्षा और मीडिया के क्षेत्र में 4 लाख 21 हज़ार करोड़ रुपये का कारोबार ड्रोन्स के जिम्मे होगा।

कृषि के क्षेत्र में ड्रोन्स मौसम और फसलों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण करके फसलों को बचाने के सुझाव देंगे। कंस्ट्रक्शन कंपनियां ड्रोन्स के साथ 3डी प्रिंटर्स को जोड़कर निर्माण में आ रही बाधाओं को मौके पर ही दूर कर पाएंगी। ड्रोन्स फास्ट फूड और फ्रोजन फूड की डिलिवरी भी तेजी से कर पाएंगे। मई 2014 में ड्रोन के जरिए मुंबई में पिज्जा की डिलिवरी की गई थी, हालांकि अब भारत में बिना इजाजत के ड्रोन उड़ाना गैरकानूनी है। 

भारत में ड्रोन्स के द्वारा ऑर्गन सप्लाय की कोशिश भी की जा रही है। 100 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट के ज़रिए ऐसे ड्रोन्स विकसित किए जा रहे हैं जो दिल, किडनी और लिवर जैसे अंगों के स्थानांतरण में काम आएंगे। यानी ड्रोन्स इंसानों के दोस्त बन सकते हैं और उनकी मदद कर सकते हैं, लेकिन जब ये ड्रोन्स और रोबोट्स लोगों की नौकरियां लेने लगेंगे, तो हालात बिगड़ सकते हैं। दुनिया के कई देशों ने भविष्य की इस समस्या से निपटने की तैयारी शूरू कर दी है 

फिनलैंड 2017 से अपने सभी नागरिकों को 550 यूरो यानी करीब 41 हजार 279 रुपये प्रति महीने के हिसाब से बेसिक सैलरी देने की योजना बना रहा है, ताकि जो लोग बेरोज़गार हैं उन्हें भी गुजारे के लायक पैसे मिल पाएं। इसी तरह स्विट्ज़रलैंड में भी हर नागरिक को 2500 डॉलर्स यानी करीब 1 लाख 67 हजार रुपये प्रति महीने की बेसिक सैलरी देने पर विचार किया जा रहा है। स्विटज़रलैंड और फिनलैंड विकसित देश हैं और इन देशों की आबादी काफी कम है, इसलिए नागरिकों को गारंटीड आधारभूत तनख्वाह आसानी से दी जा सकती है, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में ये योजना लागू नहीं की जा सकती। इसलिए अगर भविष्य में रोबोट्स और ड्रोन्स भारतीयों की नौकरियां छीनेंगे तो भारत और भारत जैसे देशों में एक बड़ा संकट पैदा हो सकता है, हालांकि हम वैज्ञानिक सोच का पूरी तरह समर्थन करते हैं और हमें विश्वास है कि भविष्य की ये तकनीक भारत के विकास में बाधा बनने की बजाय, विकास को नई रफ्तार देने का काम करेगी और भारत में रोबोट्स और इंसान मिलजुलकर काम कर पाएंगे।

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