ZEE जानकारीः भारत कृषि प्रधान नहीं, बल्कि राजनीति प्रधान देश है !
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ZEE जानकारीः भारत कृषि प्रधान नहीं, बल्कि राजनीति प्रधान देश है !

आपने भी कभी ना कभी, किसी से ये ज़रूर कहा होगा कि दफ़्तर में बहुत राजनीति है, सिस्टम में बहुत राजनीति है... या फिर घर में बहुत राजनीति है. यानी भारत के दिल और दिमाग में राजनीति बसी हुई है और आज ये बात एक बार फिर सच साबित हो गई है.

ZEE जानकारीः  भारत कृषि प्रधान नहीं, बल्कि राजनीति प्रधान देश है !

आपमें से ज़्यादातर लोग बचपन से ये सुनते आए होंगे कि भारत एक कृषि प्रधान देश है. लेकिन, मौजूदा परिस्थितियों में ऐसा लगता है, कि भारत कृषि प्रधान नहीं, बल्कि राजनीति प्रधान देश है. आपने भी महसूस किया होगा कि आपके आसपास बहुत राजनीति है. आपने भी कभी ना कभी, किसी से ये ज़रूर कहा होगा कि दफ़्तर में बहुत राजनीति है, सिस्टम में बहुत राजनीति है... या फिर घर में बहुत राजनीति है. यानी भारत के दिल और दिमाग में राजनीति बसी हुई है और आज ये बात एक बार फिर सच साबित हो गई है.

आज सुबह से पूरे देश में सिर्फ और सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के नतीजों की ही चर्चा है. और आज हमें ये कहते हुए बहुत अफसोस हो रहा है, कि इन इन चुनावी नतीजों के बीच, सुकमा में CRPF के 9 जवानों की शहादत और उनके परिवारों का दर्द, किसी को दिखाई नहीं दिया. बहुत सारे लोग ये कटाक्ष कर रहे थे कि ये जवान गलत समय पर शहीद हो गये. अब आप खुद ही ये सोचिए कि इन शहीदों की शहादत का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता हैआपने ये भी ध्यान दिया होगा, कि आज दिनभर किसी भी News Channel ने नक्सली हमले में शहीद हुए जवानों के परिवारों और उनके आंसुओं की बात नहीं की. किसी के पास उनकी पीड़ा सुनने और समझने की फुरसत नहीं थी. क्योंकि, तमाम News Channels, राजनीतिक चर्चाओं में व्यस्त थे.. और राजनीतिक पंडितों के साथ वोटों और सीटों का गणित लगा रहे थे.

Zee News ने भी चुनावी नतीजों की कवरेज की है.. लेकिन हमने शहीदों के परिवारों के दर्द को प्राथमिकता दी. हमारे लिए शहादत, किसी भी राजनीति से ऊपर है. आज सुबह से ही हमारे पास देश के अलग-अलग हिस्सों से 9 शहीद जवानों के परिवारों से जुड़ी ख़बरें लगातार आ रही थीं. और हमने पूरी ज़िम्मेदारी के साथ इन परिवारों की तकलीफ और असहनीय पीड़ा से जुड़ी एक-एक तस्वीर देश तक पहुंचाई. आज DNA की शुरुआत भी हम सुकमा में शहीद हुए जवानों की ख़बर से ही करेंगे. 

CRPF के जिन 9 जवानों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी, वो देश के अलग-अलग हिस्सों से ताल्लुक रखते थे. कोई बिहार का था, कोई मध्यप्रदेश का था, कोई राजस्थान का, कोई उत्तर प्रदेश का, कोई कर्नाटक का, तो कोई ओडिशा का. और आज हमारे पास इन सभी जगहों से शहीदों के परिवारों के आंसू आए हैं.लेकिन सबसे हृदय विदारक तस्वीर ओडिशा के पुरी ज़िले के रहने वाले शहीद मनोरंजन लेंका के घर से आई है. हाल ही में CRPF के इस जवान के पिता की मृत्यु हो गई थी और वो अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए घर गये थे. और दो दिन पहले ही उन्होंने फिर से Duty Join की थी.

सुकमा ज़िले में Combing Operation के लिए निकलने से पहले उन्होंने अपनी मां से फोन पर बात भी की थी. लेकिन, तब उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था, कि ये मां और बेटे के बीच हुई आखिरी बातचीत होगी. शहीद मनोरंजन लेंका के घर में अब सिर्फ उनकी मां और छोटी बहन बची हैं. जब शहीद मनोरंजन लेंका का पार्थिव शरीर भुवनेश्वर पहुंचा, तो उनकी बहन अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाईं. इसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसे शब्दों में बयां कर पाना हमारे लिए बहुत मुश्किल है. 

अगर किसी परिवार का कोई सदस्य देश की सेवा करते हुए वीरगति को प्राप्त होता है, तो ये उस परिवार के लिए गर्व का विषय होता है. लेकिन, हम उन भावनाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, जिनकी डोर से ये रिश्ते बनते हैं. किसी अपने को खोने के ग़म से बाहर निकलने में, अक्सर लोगों को कई वर्ष लग जाते हैं. कई बार ऐसा भी होता है, कि लोगों को जीने का कोई मकसद नज़र नहीं आता. ये पीड़ा हम सबने कभी ना कभी ज़रूर महसूस की है. लेकिन एक सैनिक के परिवार की 'सहनशक्ति', आम इंसान के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा होती है. देश की रक्षा करते हुए जंग के मैदान में शहीद होने वाले जवानों के परिवार, उनकी शहादत पर गर्व करते हैं. और अपने आंसुओं को चुपचाप पी जाते हैं. लेकिन, कब तक ? क्योंकि वो भी इंसान ही हैं, और कई बार उनकी संवेदनाओं का बांध भी टूट जाता है. 

अच्छा होता, अगर देश का Media, देश के नेता और बुद्धिजीवी इन जवानों से जुड़ी ख़बरों को पहली प्राथमिकता देते. ज़रा सोचिए, इन 9 जवानों के परिवारों को इससे कितनी ताकत मिलती. ये सभी जवान देश के 6 अलग-अलग राज्यों के रहने वाले थे. इनमें से एक जवान बिहार का था, और तीन जवान उत्तर प्रदेश के भी थे. लेकिन, उन जवानों के घर कोई नहीं गया. क्योंकि, उपचुनाव के नतीजों के बीच कोई गले मिल रहा था, तो कोई बीच सड़क पर खड़े होकर डांस कर रहा था. जीत का जश्न मनाने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन, मानवीय संवेदनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए. इसका दूसरा पहलू ये है, कि शहीदों के घर की यात्रा करने में कोई ग्लैमर नहीं है. इसमें जाति और धर्म का कोई एंगल नहीं है इसलिए नेता वहां जाने से परहेज़ करते हैं और मीडिया के कैमरों को भी वहां तक पहुंचने के लिए बहुत सोच विचार करना पड़ता है. 

वैसे सवाल तो ये भी पूछा जाना चाहिए कि क्या देश में कुर्बानी देने का पूरा दायित्व इस देश के सैनिकों, सुरक्षाबलों और उनके परिवारों पर ही है? क्या किसी और की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है ? हमें लगता है कि ज्ञान बांटना, लेक्चर देना और अखबारों और पत्रिकाओं में लेख लिखना आसान है. लेकिन कुर्बानी देना बहुत मुश्किल है. हम मानते हैं कि हर कोई जीवन का बलिदान नहीं दे सकता, लेकिन हर कोई.. कम से कम जवानों के बलिदान का सम्मान तो कर ही सकता है. और आज ये विश्लेषण हमने इसी भावना के साथ किया है.

आज हम ना सिर्फ इन सभी शहीदों के परिवारों की पीड़ा आपके घरों तक पहुंचाएंगे. बल्कि, आपको सुकमा ज़िले में Ground Zero पर लेकर चलेंगे, जहां नक्सलियों ने ये हमला किया था. आज सुबह, जिस वक्त ज़ी न्यूज़ की टीम हमले की जगह पर रिपोर्टिंग करने पहुंची, उस वक्त भी CRPF के Mine-Protected Vehicle से धुआं निकल रहा था. शहीद जवानों के जूते इधर-उधर बिखरे पड़े थे. और उनका सामान टुकड़े-टुकड़े हो गया था. इसलिए हम चाहते हैं कि आप सुकमा में शहीद हुए सुरक्षाबलों को ज़ी न्यूज़ के साथ ये अंतिम विदाई दें और इस शहादत में छिपे दर्द और टीस को महसूस करें. 

ऐसी घटनाओं के बाद ज़्यादातर लोग अपने अपने जीवन में व्यस्त और मस्त हो जाते हैं और कह देते हैं कि Life goes on यानी जीवन आगे बढ़ने का नाम है. ये बात ठीक है कि जीवन आगे बढ़ने का नाम है लेकिन यहां हम इस कथन में थोड़ा सा सुधार करना चाहते हैं. और वो ये, कि जीवन, देश के लिए शहीद होने वाले जवानों को नज़रअंदाज़ किए बिना, उन्हें श्रद्धांजलि देकर, आगे बढ़ने का नाम है. जीवन एक शहीद के परिवार को हर रोज़.. साल के 365 दिन, याद करने का नाम है और उनके संघर्ष को पूरे देश तक पहुंचाने का नाम है.

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