Zee जानकारी : पाकिस्तान का लोकतंत्र ज़रा दूजी किस्म का है
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Zee जानकारी : पाकिस्तान का लोकतंत्र ज़रा दूजी किस्म का है

ये बात आप अच्छी तरह जानते हैं, कि पाकिस्तान का लोकतंत्र ज़रा दूजी किस्म का है। वहां सरकार भले ही आम लोगों द्वारा चुनी गई हो, लेकिन उसे चलाने की ज़िम्मेदारी वहां की सेना के कंधों पर है। 4 मई को 'द न्यूयार्क टाइम्स' में पाकिस्तान को लेकर जो लेख छापा गया था उसका शीर्षक था, 'Pakistan’s Triangle of Hate.'

Zee जानकारी : पाकिस्तान का लोकतंत्र ज़रा दूजी किस्म का है

नई दिल्ली : ये बात आप अच्छी तरह जानते हैं, कि पाकिस्तान का लोकतंत्र ज़रा दूजी किस्म का है। वहां सरकार भले ही आम लोगों द्वारा चुनी गई हो, लेकिन उसे चलाने की ज़िम्मेदारी वहां की सेना के कंधों पर है। 4 मई को 'द न्यूयार्क टाइम्स' में पाकिस्तान को लेकर जो लेख छापा गया था उसका शीर्षक था, 'Pakistan’s Triangle of Hate.'

इस आर्टिकल में वैसे तो भारत के ख़िलाफ पाकिस्तान के एजेंडे की धज्जियां उड़ाई गई थीं। लेकिन इसमें एक बहुत बड़ी बात लिखी गई थी। जिसे किसी और ने नहीं, बल्कि पाकिस्तान में ही पैदा होने वाले, ब्रिटिश लेखक और पत्रकार मोहम्मद हनीफ ने कहा था। उनके शब्द थे, 'Most countries have an army, but in Pakistan, it’s the army that has a country'यानी इस आर्टिकल में सीधे-सीधे पाकिस्तान की सेना पर गंभीर सवाल खड़े किए गए थे। जिसका नतीजा ये हुआ, कि 'द न्यूयार्क टाइम्स'  के अंतरराष्ट्रीय संस्करण के साथ छेड़छाड़ हो गई। पाकिस्तान ने इस आर्टिकल को सेंसर कर दिया। पाकिस्तान भले ही इस आर्टिकल को दुनिया से छिपाने की कोशिश करे, लेकिन हमने वो पूरा आर्टिकल ढूंढ निकाला है। 

भारत के खिलाफ अपनी कभी ना ख़त्म होने वाली लड़ाई में, पाकिस्‍तान ने एक तीसरा सहयोगी खोज लिया है।

पाकिस्तान के इस सहयोगी को, दुनिया में एक क्रूर हत्यारे के तौर पर जाना जाता है। इस आर्टिकल में जिस व्यक्ति का ज़िक्र किया गया है, उसका नाम अहसानुल्ला एहसान है। जो पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवाद का एक चर्चित और ख़तरनाक चेहरा है। पिछले वर्ष लाहौर के एक पार्क में ईस्टर डे के मौके पर हुए हमले की ज़िम्मेदारी भी इसी आतंकवादी ने ली थी। 

वर्ष 2014 में शांति के लिए नोबेल पीस प्राइज जीतने वाली पाकिस्तान की मलाला यूसूफज़ई पर हुए हमले की ज़िम्मेदारी भी इसी आतंकवादी ने ली थी। इसने पाकिस्तान के पेशावर में आर्मी स्कूल पर हुए हमले की भी ज़िम्मेदारी ली थी, जिसमें 150 से ज़्यादा मौतें हुई थीं। पिछले महीने पाकिस्तान की सेना ने ऐलान किया था, कि एहसान ने सरेंडर कर दिया है।

हालांकि, उसने किन परिस्थितियों में सरेंडर किया और कब किया, इसके बारे में पाकिस्तान की सेना ने उस वक्त कोई जवाब नहीं दिया था। बाद में कुलभूषण जाधव की ही तरह पाकिस्तान की सेना ने इसका एक संपादित कबूलनामा रिकॉर्ड करके, उसका लाइव टेलिकास्ट किया था। जिसमें उसे ये कहने पर मजबूर किया गया, कि कैसे अफगानिस्तान और भारत की खुफिया एजेंसियां, पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों को आर्थिक और रणनीतिक मदद पहुंचाती हैं।

इमरान ख़ान की पार्टी का आरोप है कि नवाज़ शरीफ ने कश्मीर में जेहाद को प्रमोट करने के लिए ओसामा बिन लादेन से पैसे लिए थे। पार्टी ने ये आरोप कुछ इंटरव्यूज और एक किताब के आधार पर लगाए हैं। इन पैसों का इस्तेमाल कश्मीर और अफगानिस्तान के कई इलाकों में जेहाद फैलाने के लिए किया जाना था। इमरान ख़ान की पार्टी ने ये भी कहा है, कि नवाज शरीफ ने बाद में इन पैसों में से 27 करोड़ रुपये का इस्तेमाल, 1989 में बेनज़ीर भुट्टो की सरकार के खिलाफ किया था।

आपको बता दूं, कि यहां पर जिस क़िताब का ज़िक्र किया गया है, उसका नाम है 'ख़ालिद ख्वाजा' शहीद-ए-अमन।  इस किताब को पाकिस्तान की ISI के पूर्व जासूस ख़ालिद ख़्वाजा की पत्नी ने लिखा है। खालिद ख़्वाजा पाकिस्तान के वही जासूस हैं, जिनकी हत्या वर्ष 2010 में पाकिस्तानी तालिबान ने कर दी थी। इस मामले में इमरान ख़ान की पार्टी वहां के सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

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