Zee जानकारी : क्या है हमारे सरकारी अस्पतालों की असली हकीकत?
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Zee जानकारी : क्या है हमारे सरकारी अस्पतालों की असली हकीकत?

ये एक दुखद विडंबना है कि आज़ादी के 68 वर्षों के बावजूद हमारे देश के ज़्यादातर लोग सरकारी अस्पतालों में मजबूरी में ही इलाज करवाते हैं और वहां इलाज करने से उन्हें अक्सर राहत के बजाए, तकलीफ ही मिलती हैं। सवाल ये है कि इस समस्या को कैसे ठीक किया जाए और हमारे देश के सरकारी अस्पतालों का भविष्य क्या है? 

Zee जानकारी : क्या है हमारे सरकारी अस्पतालों की असली हकीकत?

नई दिल्ली : ये एक दुखद विडंबना है कि आज़ादी के 68 वर्षों के बावजूद हमारे देश के ज़्यादातर लोग सरकारी अस्पतालों में मजबूरी में ही इलाज करवाते हैं और वहां इलाज करने से उन्हें अक्सर राहत के बजाए, तकलीफ ही मिलती हैं। सवाल ये है कि इस समस्या को कैसे ठीक किया जाए और हमारे देश के सरकारी अस्पतालों का भविष्य क्या है? 

ये समझने के लिए हम डीएनए में दो देशों के अस्पतालों का एक तुलनात्मक विश्लेषण करेंगे। ज़ी न्यूज़ के संवाददाता राहुल सिन्हा ने अमेरिका के न्यू जर्सी में मौजूद जेएफके मेडिकल सेंटर और उत्तर प्रदेश के खुर्जा के सरकारी अस्पताल का ऑन द स्पॉट डीएनए टेस्ट किया है। ये एक ऐसी रिपोर्ट है जिससे हमारे देश के सिस्टम को शिक्षा लेनी चाहिए क्योंकि सुपरपावर बनने का महत्वाकांक्षी सपना देखने वाले भारत को सबसे पहले देश की बुनियाद मज़बूत करनी होगी।

हालांकि, यहां आपके मन में एक सवाल उठ रहा होगा कि हम अमेरिका और भारत के सरकारी अस्पतालों के बीच मौजूद खाई को किस आधार पर नाप रहे हैं। इसे समझने के लिए आज आपको कुछ आंकड़ों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महंगे इलाज के चक्कर में गंभीर बीमारी के शिकार लोगों में से 32 फीसदी लोग हर वर्ष गरीबी रेखा के नीचे पहुंच जाते हैं। भारत के सरकारी अस्पतालों में 100 रुपये के इलाज में सरकार सिर्फ 22 रुपये खर्च कर रही है जबकि 78 रुपये ख़ुद मरीज़ों को खर्च करने पड़ रहे हैं। इतना ही नहीं सरकार जो 22 रुपये खर्च कर रही है उसमें से भी ज़्यादातर खर्च डॉक्टर्स और नर्स की सैलरी और बिल्डिंग्स पर हो रहा है।

मशहूर मेडिकल जर्नल लैंसेट की दिसम्बर 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले ब्रिक्स देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत का परफार्मेंस सबसे ख़राब है। ब्रिक्स का मतलब है ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका। 

पब्लिक हेल्थ स्पेंडिंग के मामले में भारत अपने जीडीपी का सिर्फ 1 फीसदी हिस्सा खर्च करता हैं जो बहुत कम है। डब्ल्यूएचओ की तय सीमा के मुताबिक ये आंकड़ा 5 फीसदी होना चाहिए। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की बात करें तो हेल्थ सेक्टर में भारत में 64 लाख कुशल मानव संसाधन की कमी है।

-स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 20 हज़ार 306 सरकारी अस्पताल हैं।
-एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर्स की संख्या 46 है।
-औसतन भारत के एक सरकारी अस्पताल में सालाना 61 हज़ार मरीज़ों का इलाज किया जाता है जबकि सरकारी अस्पताल में औसतन एक बेड पर सालाना 1 हज़ार 833 मरीज़ों का इलाज होता है।
-डॉक्टर-पॉपुलेशन रेशियो की बात करें तो भारत में 1700 लोगों पर सिर्फ 1 डॉक्टर है।
-वर्ष 2020 तक भारत को 4 लाख नए डॉक्टर्स की ज़रूरत पड़ेगी तब जाकर यहां 1 हज़ार लोगों पर 1 डॉक्टर उपलब्ध हो पाएगा।

द नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 70 फीसदी से ज़्यादा लोग सरकारी अस्पतालों में नहीं बल्कि प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाते हैं।

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