ZEE जानकारीः आतंकवादियों के लिए आदरसूचक शब्दों का इस्तेमाल क्यों?
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ZEE जानकारीः आतंकवादियों के लिए आदरसूचक शब्दों का इस्तेमाल क्यों?

एक तरफ हमारे देश के नेता और बुद्धिजीवी हैं, जिन्हें आतंकवादियों का महिमामंडन करने से फुर्सत नहीं है. लेकिन दूसरी तरफ चीन ने इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ युद्ध स्तर पर कार्रवाई शुरु कर दी है.

ZEE जानकारीः आतंकवादियों के लिए आदरसूचक शब्दों का इस्तेमाल क्यों?

कल हमने कश्मीर की समस्या पर एक ऐतिहासिक विश्लेषण किया था और आपको 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन और जवाहर लाल नेहरू के दौर की बातें बताई थीं. हमने आपको ये भी बताया था कि कश्मीर को इतनी बड़ी समस्या किसने बनाया. लेकिन कश्मीर के खलनायक सिर्फ इतिहास में ही मौजूद नहीं है. वर्तमान में भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने बयानों और विचारधारा से कश्मीर को ज़बरदस्त नुकसान पहुंचा रहे हैं.  ये वो लोग हैं जिन्होंने आतंकवादी बुरहान वानी को एक हेडमास्टर का मासूम बेटा बताया था और यही लोग अब आतंकवादी मन्नान वानी को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का पीएचडी स्कॉलर बता रहे हैं. 

आपने नोट किया होगा कि कश्मीर में हमारे सैनिक जब भी किसी आतंकवादी का Encounter करते हैं, तो वहां के नेता और दिल्ली में बैठे बुद्धिजीवी, आतंकवादियों के लिए आदरसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने लगते हैं. कोई ये नहीं कहता, कि आतंकवादी मारा गया. सब ये कहते हैं, कि एक स्कूल Headmaster का मासूम बेटा मारा गया. एक निहत्थे युवा की हत्या कर दी गई. जुलाई 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद, उसे Headmaster का बेटा बताकर मासूम साबित करने की कोशिश की गई. उसे किसी Hero की तरह Project किया गया. जिसका नतीजा ये हुआ, कि घाटी में उसके Followers की संख्या बढ़ती चली गई. यहां तक कि पाकिस्तान ने भी उसके नाम पर डाक टिकट जारी कर दिए.

लेकिन हमारे देश के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने इससे सबक नहीं लिया. आज जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने एक आतंकवादी की मौत के बाद उसे, इंसानियत का दुश्मन नहीं, बल्कि PhD Scholar कहकर संबोधित किया है. आज जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में सेना और सुरक्षाबलों के Joint Operation में दो आतंकवादी मारे गये हैं. इनमें से एक आतंकवादी का नाम था मन्नान वानी...ये कभी Aligarh Muslim University में PhD scholar था. लेकिन, इसका मकसद शिक्षा के क्षेत्र में PhD करना नहीं था. बल्कि वो आतंकवाद में PhD करना चाहता था. इसलिए, जनवरी 2018 में वो आतंकवादी संगठन Hizbul Mujahideen में शामिल हो गया. आज जैसे ही इसके Encounter की ख़बर आई, तो कुछ नेता, बुद्धिजीवी और मीडिया का एक हिस्सा उसे पढ़ा-लिखा युवा और PhD Scholar साबित करने की मुहिम में जुट गये. मीडिया की Headline बनी, Research Scholar-Turned-Hizbul Millitant Killed In Kashmir Encounter..और नेताओं की Twitter Time Line की Headline बनी, Today a PhD scholar chose death over life. 

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आज जो Tweet किया है उसे पढ़कर ऐसा लगता है कि उन्हें मन्नान वानी के एनकाउंटर से उन्हें बहुत धक्का लगा है. जब एक राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री, एक आतंकवादी को PhD scholar कहकर संबोधित करेंगी, तो राज्य के युवा भ्रमित हो जाएंगे और ऐसे आतंकवादियों को Hero समझने लगेंगे. और हुआ भी बिल्कुल वैसा ही है. क्योंकि, मन्नान वानी के Encounter के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 400 से ज़्यादा छात्र उसके जनाज़े की नमाज़ पढ़ने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन AMU प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. इस मामले में कश्मीर के रहने वाले तीन छात्रों को सस्पेंड भी किया गया है. 

अब आप समझ गए होंगे, कि आतंकवादियों को पहले 'Headmaster का बेटा' और अब 'PhD scholar' साबित करने वाले लोग कितना ख़तरनाक एजेंडा चला रहे हैं. आपने ये भी देखा होगा कि महबूबा मुफ्ती इस मामले में बातचीत करने और उस बातचीत में पाकिस्तान को शामिल करने की वक़ालत कर रही हैं. जबकि इस समय पाकिस्तान को लेकर भारत की विदेश नीति एकदम स्पष्ट है और दोनों देशों के बीच बातचीत बंद है. ऐसे बयान आतंकवादियों का हौसला बढ़ाते हैं. और पाकिस्तान को परिस्थितियों का फायदा उठाने का मौका देते हैं.

एक तरफ हमारे देश के नेता और बुद्धिजीवी हैं, जिन्हें आतंकवादियों का महिमामंडन करने से फुर्सत नहीं है. लेकिन दूसरी तरफ चीन ने इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ युद्ध स्तर पर कार्रवाई शुरु कर दी है.

ख़बर ये है, कि चीन ने अपने मुस्लिम बहुल प्रांत शिन-जियांग में रहने वाले उइगर समुदाय के लोगों को एक खास तरह की Training देने के लिए एक नया कानून बना दिया है. इस कानून के तहत इस समुदाय के लोगों के लिए 'Re-Education' Camps में जाना अनिवार्य हो गया है. ये ऐसे Camps हैं, जिसमें शिन-जियांग प्रांत की मुस्लिम आबादी को नए ज़माने की शिक्षा दी जाती है. चीन के अधिकारियों का कहना है, कि ये Camps उन लोगों को बदलने के लिए हैं, जो धार्मिक कट्टरता से प्रभावित हैं. इन Camps का उद्देश्य वहां रहने वाले लोगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण और वैचारिक शिक्षा देना है. इसके अलावा उइगर मुसलमानों को ये नसीहत भी दी जा रही है, कि ये सभी लोग सार्वजनिक स्थानों पर मैंडरिन भाषा ही बोलें. 

शिन-जियांग प्रांत में हलाल के Concept को भी बदलने की कोशिश हो रही है. अधिकारियों का कहना है, कि वो हलाल से जुड़ी चीज़ों के इस्तेमाल में कमी लाना चाहते हैं. क्योंकि हलाल से धार्मिक और Secular ज़िंदगी के बीच का फ़ासला बहुत गहरा हो जाता है. हलाल के तहत उइगर मुसलमानों को सरकारी TV देखने और सरकारी Radio को सुनने से रोका जाता है और बच्चों को सरकारी स्तर पर दी जा रही शिक्षा से वंचित रखा जाता है.

चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने भी लिखा है, कि हलाल के Concept और उससे जुड़ी मांगों की वजह से, शिन-जियांग प्रांत में समस्याएं पैदा हो रही हैं. और इस्लाम का इस्तेमाल करने वाले कट्टरपंथियों का Secular जीवन में दखल, बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है. चीन की सरकार चाहती है, कि उइगर समुदाय के लोग मार्क्सवाद और लेनिनवाद पर यक़ीन करें. ना कि किसी विशेष धर्म पर. इस फैसले को लेकर ये भी कहा जा रहा है, कि चीन की सरकार अपने देश में नए कानून का इस्तेमाल करके, किसी भी धर्म का प्रचार करने पर पाबंदी लगाना चाहती है. 

ये अपने आप में एक बहुत बड़ी ख़बर है. और इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे. लेकिन, सवाल ये है, कि चीन को शिन-जियांग प्रांत में ऐसा करने की ज़रुरत क्यों पड़ी ? इसके लिए आपको उइगर समुदाय के बारे में पता होना चाहिए. चीन का शिन-जियांग प्रांत धार्मिक कट्टरपंथ से संघर्ष कर रहा है. ऐसे में वहां हालात को सामान्य करने और अपना नियंत्रण मज़बूत करने के लिए, चीन के प्रशासन को ऐसे कदम उठाने पड़े हैं. 

शिन-जियांग प्रांत की कुल आबादी, 2 करोड़ से ज़्यादा है. शिन-जियांग प्रांत में उइगर समुदाय की आबादी एक करोड़ से ज़्यादा है. इस समुदाय के ज़्यादातर लोग मुसलमान हैं और इस्लाम उनका सबसे बड़ा धर्म है. उइगर मुसलमान आम तौर पर Turkish भाषा बोलते हैं. शिन-जियांग प्रांत, वर्ष 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान हुआ करता था. शिन-जियांग को एक अलग राष्ट्र के तौर पर कुछ समय के लिए पहचान भी मिली थी, लेकिन बाद में ये चीन का हिस्सा बन गया. ((1990 के दशक में सोवियत संघ के पतन के बाद इस क्षेत्र की आज़ादी के लिए यहां के लोगों ने काफी संघर्ष किया था.

पश्चिम एशिया के कई मुस्लिम देशों ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया था, हालांकि चीन की सरकार के सामने किसी की नहीं चली. यही वजह है, कि आज भी उइगर मुसलमान खुद को चीन का निवासी मानने से इंकार करते हैं. उइगर समुदाय को पिछले कई वर्षों में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है. वहां पर लंबी दाढ़ी रखने और बुर्का पहनने पर प्रतिबंध है. वहां रमज़ान के दौरान रोज़ा रखने पर भी पाबंदी है. पिछले कुछ वर्षों से शिनजियांग प्रांत, अल्पसंख्यक उइगर समुदाय से संबंधित हिंसा की घटनाओं को झेल रहा है. ऐसी हिंसक घटनाओं में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.

हाल-फिलहाल में उइगर विद्रोहियों ने शिनजियांग प्रांत में सरकारी संस्थानों पर कई बड़े हमले भी किए हैं. ))चीन हमेशा से ये कहता आया है, कि उइगर समुदाय के नेता मुस्लिम बहुल शिन-जियांग प्रांत में आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं. शिन-जियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुस्लिम, चीन से अलग होना चाहते हैं. और इसके लिए वो The East Turkestan Islamic Movement के नाम से अपना आंदोलन भी चला रहे हैं. हालांकि, यहां दिलचस्प बात ये भी है, कि मौलाना मसूद अज़हर जैसे आतंकवादी का समर्थन करने वाला चीन खुद.. पाकिस्तान पर उइगर मुसलमानों को भड़काने का आरोप लगा चुका है. 

चीन की सरकार के मुताबिक, पाकिस्तान के कुछ इलाकों में उइगर मुसलमानों को आतंकवादी हमले करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है. और इसीलिए चीन की सरकार इस समुदाय के लोगों पर 24 घंटे नज़र रखती है. इसी वर्ष अगस्त में एक संयुक्त राष्ट्र की कमेटी को बताया गया था, कि शिन-जियांग में क़रीब दस लाख मुसलमानों को हिरासत में रखा गया है, जहां उन्हें 'दोबारा शिक्षा' दी जा रही है. आज हमने, आपके लिए चीन के शिन-जियांग का रहस्य ढूंढने की कोशिश की है. इस रिपोर्ट को देखकर, आप समझ जाएंगे, कि इस्लामिक कट्टरपंथ से युद्ध लड़ने के लिए चीन ने कितना कड़ा रुख अपना लिया है.

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