DNA: क्या महज संदेह के आधार पर EVM पर सवाल उठाना सही है? SC अब सुनाएगा फाइनल फैसला
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DNA: क्या महज संदेह के आधार पर EVM पर सवाल उठाना सही है? SC अब सुनाएगा फाइनल फैसला

Zee News DNA on EVM: देश में निष्पक्ष चुनाव के नाम पर हर बार EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना क्या सही है. सुप्रीम कोर्ट अब इस मसले पर फाइनल फैसला सुनाने जा रहा है. 

DNA: क्या महज संदेह के आधार पर EVM पर सवाल उठाना सही है? SC अब सुनाएगा फाइनल फैसला

DNA on Supreme Court Hearing on EVM: देश में वर्ष 1982 में पहली बार Electronic Voting Machine यानी EVM के जरिए केरल में वोटिंग हुई थी. धीरे धीरे कई राज्यों में EVM के जरिए कुछ सीटों पर वोटिंग होने लगी थी. वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में तो पूरे देश में EVM से चुनाव होने लगे थे. बावजूद इसके वर्ष 1982 से लेकर वर्ष 2024 में होने वाली लोकसभा चुनाव तक में, EVM पर संदेह जताया जाता रहा है. हर हारने वाला उम्मीदवार अपने हारने की वजहों में एक वजह EVM को बता देता है.

पिछले 10 वर्षों से चल रहा खास एजेंडा

DNA में हमारा विश्लेषण EVM की विश्वसनीयता को लेकर ही है. वर्ष 2014 के बाद से EVM को लेकर एक खास तरह का एजेंडा चलाया जाने लगा. चुनाव से ठीक पहले, कुछ खास NGOs और विपक्षी पार्टियां... EVMs पर अपनी शिकायतें लेकर कोर्ट पहुंचने लगी हैं. वो मांग करती हैं कि देश में Ballot Paper से चुनाव कराए जाने चाहिए.

ऐसी कई याचिकाएं वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की गई थीं... तब सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं. हलांकि तब सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि पूरी प्रक्रिया में मतदाताओं का भरोसा बढ़ाने के लिए, हर एक विधानसभा क्षेत्र से 5 EVM चुनकर उनका मिलान VVPAT से किया जाए. लेकिन वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, कुछ NGOs और विपक्षी पार्टियां, अपनी पुरानी मांगों को लेकर फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी हैं.

सुप्रीम कोर्ट में कई संगठनों ने दायर की अर्जी

सुप्रीम कोर्ट में Association of Democratic Reforms यानि ADR की तरफ से दाख़िल इन याचिकाओं में मांग की गई है कि हर EVM को VVPAT से अटैच किया जाए. EVM से हुई वोटिंग की 100 प्रतिशत मैचिंग vvpat से की जाये. इन मांगो को लेकर कल से ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. आज भी जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने ADR की याचिका पर सुनवाई की.

ADR की तरफ से सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने पैरवी की, जबकि वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायणन, आनंद ग्रोवर और हुजेफा अहमदी, अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए. याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में क्या दलीलें पेश की गईं, और सुप्रीम कोर्ट ने इसपर क्या टिप्पणियां की और चुनाव आयोग ने क्या सफाई दी. ये हम आपको Point to Point बताते हैं.

चुनाव आयोग ने ईवीएम पर रखा अपना पक्ष 

चुनाव आयोग के अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया.. कि EVM प्रणाली में तीन यूनिट होते हैं... बैलेट यूनिट, कंट्रोल यूनिट और तीसरा VVPAT. बैलेट यूनिट सिंबल को दबाने के लिए है, कंट्रोल यूनिट डेटा STORE करता है.. और वीवीपीएटी Verify करता है. चुनाव आयोग के अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि कंट्रोल यूनिट VVPAT को प्रिंट करने का आदेश देती है. ये मतदाता को 7 सेकंड तक दिखाई देता है और फिर ये VVPAT के सीलबंद बॉक्स में गिर जाता है. प्रत्येक कंट्रोल यूनिट में 4 MB की मेमोरी होती है. मतदान से 4 दिन पहले कमीशनिंग प्रक्रिया होती है और सभी उम्मीदवारों की मौजूदगी में प्रक्रिया की जांच की जाती है और वहां इंजीनियर भी मौजूद होते हैं.

चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा कि EVM एक स्वतंत्र मशीन है. इसको हैक या छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता. VVPAT को फिर से डिजाइन करने की कोई जरूरत नहीं है. मिसमैच का केवल एक मामला था, क्योंकि मॉक का डेटा डिलीट नहीं किया गया था. आयोग ने कहा कि, मैन्युअल गिनती में मानवीय भूल की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

कल होगी पहले चरण के चुनाव की वोटिंग

कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनी. साथ ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अपनाए गए कदमों के बारे में चुनाव आयोग के वकील से EVM और VVPAT की पूरी प्रक्रिया समझी. हालांकि अभी इस मामले पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है. पहले चरण का मतदान कल ही है, ऐसे में देखना होगा कि इस अंतिम चरण में सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला आता है.

EVM पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पहले ADR की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील पेश की. प्रशांत भूषण ने दलील दी कि जर्मनी और कई यूरोपीय देश Ballot Paper की तरफ लौट चुके हैं. लेकिन जर्मनी के जिक्र पर जस्टिस दत्ता ने कहा, उनके गृह राज्य पश्चिम बंगाल की आबादी जर्मनी से ज्यादा है. इसीलिए जर्मनी के उदाहरण यहां नहीं चलता.

दूसरे देशों का उदाहरण देना कितना सही?

एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि, विकसित देश भी EVM से वोटिंग छोड़ चुके हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि ये कहना गलत होगा कि दूसरे देश हमसे ज्यादा विकसित हैं.

प्रशांत भूषण ने, EVM के साथ गड़बड़ी होने का भी जिक्र किया. उन्होंने एक अखबार में छपी खबर का हवाला दिया. उन्होंने बताया कि केरल के कासरगोडा में मॉक वोटिंग के दौरान EVM में गड़बड़ी पाई गई. उन्होंने कोर्ट को बताया कि मॉक वोटिंग के दौरान 4 EVM और VVPAT BJP के पक्ष में एक वोट ज्यादा रिकॉर्ड कर रहे थे. कोर्ट ने EC से इन आरोपों की जांच करने के लिए कहा है. चुनाव आयोग ने कासरगोडा मॉक पोलिंग वाली खबर को झूठा बताया. 

कोई भी उम्मीदवार कर सकता है चेकिंग

EVM से छेड़छाड़ के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पूछा कि क्या प्रोग्राम मेमोरी में कोई छेड़छाड़ हो सकती है? इस पर चुनाव आयोग ने बताया कि ये एक Firmware है, जो Software और Hardware के बीच का है. इसे बिल्कुल भी नहीं बदला जा सकता. उन्होंने ये भी बताया कि Rendom तरीके से ईवीएम का चुनाव करने के बाद ही मशीनें विधानसभा के स्ट्रांग रूम में जाती हैं, और इसे राजनीतिक दलों की मौजूदगी में लॉक किया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब आप ईवीएम को भेजते हैं, तो क्या उम्मीदवारों को इसे चेक करने की अनुमति होती है? चुनाव आयोग ने बताया कि मशीनों को स्ट्रांग रूम में रखने से पहले मॉक पोल आयोजित किए जाते हैं. उम्मीदवारों को कोई भी मशीनें चुनकर जांच करने की अनुमति होती है. 

निजता से ज्यादा वोट देने का अधिकार जरूरी?

याचिकाकर्ताओं की तरफ़ से वकील निजाम पाशा ने भी कोर्ट में अपनी दलीलें पेश की थी. उनका कहना था कि चुनाव में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें वोटर अपना VVPAT स्लिप, बैलट बॉक्स में ख़ुद डाले. जस्टिस खन्ना ने इस पर सवाल उठाया कि क्या इससे वोटर की निजता के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे. इसपर ये दलील दी गई कि वोटर की निजता से ज्यादा जरूरी उसके वोट देने का अधिकार है.

हालांकि इस पर चुनाव आयोग ने आपत्ति जताई, उनके मुताबिक ऐसी व्यवस्था में मतदाता स्लिप को पोलिंग बूथ से बाहर लेकर जा सकते हैं और उसका दुरुपयोग भी हो सकता है. सुनवाई के दौरान वकील संजय हेगड़े की ओर से कहा गया कि सभी VVPAT पर्चियों के मिलान की प्रक्रिया में 12-13 दिन लगने की जो बात कहीं जा रही है, वो ग़लत है.

हर बात पर शक करना ठीक नहीं- सुप्रीम कोर्ट

इस आरोप पर चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि VVPAT की पर्चियां गिनने में ज्यादा समय इसलिए लगता है, क्योंकि ये पर्चियां चिकने और चिपकने वाले कागज की बनी होती हैं. पर्चिंयों को ATM से निकलने वाली स्लिप की तरह केवल Verify करने के उद्देश्य से बनाया गया था. EC के मुताबिक एक EVM से जुड़ी VVPAT मशीन की पर्चियां गिनने में कम से कम 1 घंटे का समय लगता है.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में कहा कि चुनाव प्रकिया की अपनी एक गरिमा होती है, इसीलिए किसी को ये आशंका नहीं रहनी चाहिए कि इसके लिए जो जरुरी कदम उठाए जाने थे, वो नहीं उठाए गए. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि हर बात पर संदेह करना ठीक नहीं है. चुनाव आयोग अगर कुछ बेहतर काम कर रहा है तो उसकी तारीफ होनी चाहिए. ये सुनवाई इसलिए हुई क्योंकि कोर्ट भी चिंतित थी. लेकिन आयोग को हर तकनीकी चीज के लिए आपको सन्तुष्ट करने की ज़रूरत नही है, वोटर की सन्तुष्टि ज़रूरी है.

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