यूपी में दूसरे चरण का चुनाव क्यों है BJP के लिए 'करो या मरो' की लड़ाई...
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यूपी में दूसरे चरण का चुनाव क्यों है BJP के लिए 'करो या मरो' की लड़ाई...

पिछली बार के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में आठों सीटें बीजेपी के पास थीं और चार सीटों पर पार्टी को मिले थे 50 फीसदी से ज्यादा वोट. जाट, मुस्लिम अपनी जगह, लेकिन संतुलन बनाएंगे अति पिछड़ा वोट

यूपी में दूसरे चरण का चुनाव क्यों है BJP के लिए 'करो या मरो' की लड़ाई...

दूसरे चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने बयान दिया है कि विपक्ष उन्हें इसलिए गाली दे रहा है क्योंकि वह पिछड़ी जाति से आते हैं. और उसके तुरंत बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री और खुद अतिपिछड़ी जाति से आने वाले अशोक गहलोत ने कह दिया कि राष्ट्रपति के चुनाव में भी बीजेपी ने जातिगत समीकरण का ध्यान रखा था, नहीं तो पार्टी आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने वाली थी. इन बयानों की व्याख्या चुनाव आयोग कर लेगा. लेकिन इतना तो सोचना ही पड़ेगा कि दूसरे चरण से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने क्यों पिछड़ा कार्ड चला और कांग्रेस के सबसे बड़े अति पिछड़ा नेता ने क्यों उसकी काट की.

इसकी एक वजह यह भी है कि दूसरे चरण में एक तरफ तो कर्नाटक जैसे राज्य में चुनाव होना है, दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की उन आठ लोकसभा सीटों पर वोट डाले जाने हैं, जहां जाट, मुस्लिम और अगड़े मतदाता तो अपने-अपने पालों में बने हुए हैं, लेकिन चुनाव का फैसला पिछड़ी जाति के मतदाताओं को करना है. यूपी में मथुरा, बुलंदशहर, आगरा, अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, नगीना, हाथरस और अमरोहा सीटों पर 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है.

अगर पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो दूसरा चरण बीजेपी का जबरदस्त गढ़ है. यहां की चार सीटों मथुरा, बुलंदशहर, आगरा और हाथरस में बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. इन चार सीटों पर आंकड़ों में बीजेपी अपराजेय नजर आती है. लेकिन यहां कुशवाहा और दूसरी अतिपिछड़ी जातियों के वोट महत्वपूर्ण हैं. इन जातियों के साथ पश्चिम यूपी के इन इलाको में कुर्मी और लोधी वोट बहुत काम के हैं. इसके बाद जो तीसरा चरण आएगा उसमें यादव वोट महत्वपूर्ण हो जाते हैं.

अगर पिछले चुनाव (Lok Sabha Elections 2014) को देखें तो मथुरा से फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी को 53 फीसदी वोट मिले थे. जबकि उनके सामने लड़ रहे महागठबंधन के वोट जोड़ें तो 46 फीसदी होते हैं. बुलंदशहर में बीजेपी को करीब 60 फीसदी, तो गठबंधन को 36 फीसदी वोट मिले थे. आगरा में बीजेपी को 54 और महागठबंधन को 38 फीसदी, वहीं हाथरस में बीजेपी को 51.87 फीसदी और महागठबंधन को 46 फीसदी वोट मिले थे. यानी इन सीटों पर भले ही बीजेपी अपराजेय हो, लेकिन तीन से चार फीसदी वोट इस पाले से उस पाले में जाते ही वोटों का यह अंतर खत्म हो जाएगा. ऐसे में वे अतिपिछड़ा वोटर खासे महत्वपूर्ण हो जाते हैं जो 2014 की मोदी लहर में बीजेपी से जुड़े थे. जब प्रधानमंत्री ने खुद को पिछड़ा कहा तो उनके दिमाग में यह वोटर जरूर रहा होगा. यह ऐसा वोटर है जो कांग्रेस के बाद से सपा और बसपा को वोट देता रहा था और बहुत अंदेशा है कि अगर इसका छोटा सा हिस्सा भी दरका तो बीजेपी का दुर्ग ढह सकता है.

वहीं अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, नगीना और अमरोहा में मुस्लिम और अतिपिछड़ा वोट महत्वपूर्ण है. अलीगढ़ में पिछली बार बीजेपी को 48 फीसदी और गठबंधन को 42 फीसदी, फतेहपुर सीकरी में बीजेपी को 44 फीसदी और गठबंधन को 48 फीसदी, नगीना में बीजेपी को 39 फीसदी और गठबंधन को 55 फीसदी और अमरोहा में बीजेपी और गठबंधन दोनों को 48-48 फीसदी वेट मिले थे. यानी मुस्लिम मतदाताओं के असर वाले इलाके में बीजेपी को तकनीकी रूप से इस समय सिर्फ अलीगढ में बढ़त हासिल है.

जाहिर है कि चुनाव आंकड़ों से ज्यादा भावनाओं और टेंपो का खेल है. ऐसे में अगर दूसरे चरण में किसी तरह बीजेपी ने अतिपिछड़ा वोटर खींच लिया और मुस्लिम वोट गठबंधन और कांग्रेस के बीच बंट गया, तो बीजेपी अपना गढ़ बचा ले जाएगी. इससे न सिर्फ गढ़ बचेगा, बल्कि पूरे देश में पिछड़ा वर्ग के मोदी के साथ बने रहने का संदेश जाएगा. क्योंकि यूपी में तीसरा चरण बीजेपी नहीं सपा के गढ़ में होगा. वहां कमजोर प्रदर्शन बीजेपी के लिए कोई बुरा संकेत नहीं लाएगा लेकिन दूसरा चरण तो बीजेपी के लिए 'करो या मरो' का प्रश्न है.

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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