राजनीति में भावनाओं का भी बड़ा किरदार होता है, इसलिए दिल्ली में आम आदमी पार्टी की कोशिश है कि जनता ये माने कि केजरीवाल ईडी की गिरफ्त में रहकर भी केवल जनता के बारे में ही सोच रहे हैं इसलिए पार्टी बार बार बता रही है कि कस्टडी से ही सीएम आदेश दे रहे हैं, कभी पानी की, कभी सीवर की, कभी दवाइयों की फिक्र कर रहे हैं. मेरे हाथ में उसी तरह का एक कागज है. दिल्ली की जल मंत्री तो ऐसा कागज दिखाते हुए भी ये कह रही थी कि सीएम के डायरेक्शन मिलते ही उनकी आंखों में आंसू आ गए. आज फिर स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया कि एक औऱ आदेश आया. तो बीजेपी कह रही है कि ईडी की कस्टडी में ना केजरीवाल से आतिशी मिली ना सौरभ भारद्वाज। उनके पास ना कागज है ना प्रिंटर तो आदेश आया कैसे. क्या उन्होंने किसी से कहा. बिना दस्तखत के कागज को आदेश कैसे माना जाए? तो क्या आदेश मौखिक आया, क्या फिल्मी अंदाज में ये कहा जाए कि मेरा वचन ही है शासन.
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