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नई दिल्ली : देश की आर्थिक वृद्धि दर 2014-15 में 6% रह सकती है और अगर नई सरकार बेहतर राजकाज के अपने वादे को अमल में लाती है तो आने वाले वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर करीब 7-8% हो सकती है।
हार्वर्ड विश्विद्यालय की प्रोफेसर गीता गोपीनाथ ने यह बात कही है। उन्होंने कहा, वित्त वर्ष 2014-15 में 6 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि अतार्किक नहीं है..अगर मोदी सरकार बेहतर राजकाज, तीव्र क्रियान्वयन, बुनियादी ढांचे में सुधार तथा विनिर्माण को पटरी पर लाने के अपने वादों को पूरा करती है तो आर्थिक वृद्धि दर 7-8% प्राप्त की जा सकती है।
2013-14 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 5.4 से 5.9% रहेगी। पिछले दो वित्त वर्ष से यह 5% से कम रही है। समीक्षा में यह भी कहा गया है कि 7 से 8% आर्थिक वृद्धि दर मौजूदा और अगले वित्त वर्ष के बाद ही प्राप्त होने की संभावना है। वर्ष 2008 में वैश्विक आर्थिक नरमी आने से पहले आर्थिक वृद्धि दर 9% से अधिक रही थी।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग की पहली भारतीय महिला प्रोफेसर गीता ने 2014-15 के बजट में राजकोषीय घाटे को कम कर 4.1% करने के लक्ष्य के बारे में कहा, बजट में इस बारे में कम ही ब्योरा है कि कि कैसे राजकोषीय घाटे को कम किया जाएगा।
गीता गोपीनाथ ने कहा, राजस्व स्रोत बढ़ाने के लिए सिगरेट पर कर में वृद्धि तथा सेवा कर में विस्तार जैसे कुछ कदम उठाये गए हैं लेकिन राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिये व्यय के मोर्चे पर बड़े बदलाव की जरूरत होगी। उन्होंने भारत की रेटिंग बढ़ाये जाने तथा राजकोषीय मजबूती पर बल दिया।
गीता ने कहा, अगर आर्थिक माहौल सुधरता है और उच्च आर्थिक वृद्धि दर पटरी पर आती है तो निश्चित रूप से रेटिंग बढ़ाये जाने का मामला बनता है। मोदी सरकार के पहले बजट को सुरक्षित बताते हुए उन्होंने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था लागू करने तथा उर्वरक समेत अन्य सब्सिडी में कटौती की बातों ने उनका ध्यान खींचा है।