निठारी हत्याकांड: राष्ट्रपति ने कोली और 5 अन्य की दया याचिका खारिज की
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निठारी हत्याकांड: राष्ट्रपति ने कोली और 5 अन्य की दया याचिका खारिज की

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सनसनीखेज निठारी हत्या और दुष्कर्म मामलों के दोषी सुरेन्द्र कोली समेत मौत की सजा पाए छह अपराधियों की दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सनसनीखेज निठारी हत्या और दुष्कर्म मामलों के दोषी सुरेन्द्र कोली समेत मौत की सजा पाए छह अपराधियों की दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

सरकारी सूत्रों ने बताया कि कोली के अतिरिक्त महाराष्ट्र की रेणुकाबाई और सीमा, महाराष्ट्र के ही राजेन्द्र प्रह्लाद राव वासनिक, मध्य प्रदेश के जगदीश और असम के होलीराम बोरदोलोई की दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय की सिफारिशों के बाद राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दिया है।

उत्तर प्रदेश में नोएडा के निठारी गांव में बच्चों से बलात्कार के बाद उनकी नृशंस तरीके से हत्या करने वाले 42 वर्षीय कोली को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनायी थी जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सही ठहराया था तथा बाद में उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2011 में इसकी पुष्टि की थी।

पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले इस मामले में कोली को वर्ष 2005 से 2006 के बीच निठारी में अपने नियोक्ता और कारोबारी मोनिन्दर सिंह पंढेर के आवास पर बच्चों के साथ एक के बाद एक दुष्कर्म करने और उनकी नृशंस तरीके से हत्या करने का दोषी पाया गया था। कई लापता बच्चों के अवशेष इस मकान के पास से बरामद किए गए थे। कोली के खिलाफ 16 मामले दाखिल किए गए थे जिनमें से उसे अभी तक चार मामलों में मौत की सजा दी गयी है और बाकी मामले अभी विचाराधीन हैं।
 
महाराष्ट्र की रहने वाले दो बहनों रेणुकाबाई और सीमा ने अपनी मां तथा एक अन्य सहयोगी किरण शिंदे के साथ मिलकर वर्ष 1990 से 1996 के बीच 13 बच्चों का अपहरण किया और उनमें से नौ की हत्या कर दी। हालांकि अभियोजन पक्ष केवल पांच ही हत्याओं को साबित कर पाया। दोनों बहनों को मौत की सजा दी गयी है । वर्ष 1997 में इनकी मां की मौत होने के कारण उसके खिलाफ मामला खत्म कर दिया गया जबकि शिंदे सरकारी गवाह बन गया।

दोनों बहनें अपने इलाके में गरीब लोगों के बच्चों का अपहरण करती थीं और उसके बाद उन बच्चों को चोरी और चेन झपटमारी जैसे काम करने को मजबूर करती थीं। लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते और चीजों को समझने लगते तो ये उनकी हत्या कर देती थीं। कुछ बच्चों के सिर कुचले हुए, गला घोंट कर मारे हुए, लोहे की सलाखों से दागे हुए और रेलवे पटरियों पर फेंके हुए पाए गए। उच्चतम न्यायालय ने 31 अगस्त 2006 को दोनों बहनों की मौत की सजा की पुष्टि की थी।

जनवरी में उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि फांसी दिए जाने में अनावश्यक तथा अनुचित देरी  मौत की सजा पाए दोषी की सजा को हल्का करने का आधार बनता है और इससे मौत की सजा पाए 15 दोषी सजा से बच गए। तीसरा मामला महाराष्ट्र के असरा गांव में एक बच्ची की नृशंस हत्या से जुड़ा है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने अक्तूबर 2012 में वासनिक को सुनायी गयी मौत की सजा को बरकरार रखा था । यह मामला यौन उत्पीड़न तथा पीड़ित की हत्या से जुड़ा हुआ था।

राष्ट्रपति ने जगदीश की दया याचिका भी नामंजूर कर दी जिसे अपनी पत्नी तथा पांच बच्चों की हत्या का दोषी पाया गया था। उसने एक साल से लेकर 16 साल के बीच की उम्र की अपनी चार बेटियों तथा एक बेटे की हत्या कर दी थी। 24 अप्रैल 2006 को मनासा में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने उसे मौत की सजा सुनायी थी जिसे वर्ष 2009 में उच्चतम न्यायालय ने सही ठहराया।

जगदीश ने अदालत से कहा कि उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं है और उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए क्योंकि मौत की सजा दिए जाने में तीन साल से अधिक का समय निकल गया है। लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा कि जगदीश के मामले में उसकी दोष सिद्धि के समय से लेकर 18 सितंबर 2009 को उसकी याचिका खारिज होने के बीच अधिक समय नहीं गुजरा है। बोरदोलोई की दया याचिका भी नामंजूर कर दी गयी जिसे दी गयी मौत की सजा को उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2005 में सही ठहराया था।

बोरदोलोई ने गांव में अपनी सर्वोच्चता कायम रखने के प्रयास में गांववालों के सामने दिनदहाड़े नृशंस तरीके से एक ही परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी थी। 26 नवंबर 1996 को 17 लोगों के साथ मिलकर बोरदोलोई ने नारायण बोरदोलोई की झोपड़ी पर हमला किया था जो अपने भाई ,पत्नी तथा दो बच्चों के साथ रह रहा था। जब नारायण ने झोपड़ी को भीतर से बंद कर लिया तो आरोपी तथा उसके साथियों ने झोपड़ी में आग लगा दी। नारायण के भाई तथा बड़े बेटे ने दीवार के बड़े छेद से निकल भागने का प्रयास किया लेकिन बोरदोलोई और उसके साथियों ने उन्हें वापस आग में फेंक दिया। नारायण और उसका बेटा जिंदा भस्म हो गए जबकि उसकी पत्नी गंभीर रूप से जल गयी। बोरदोलोई इतने पर ही नहीं रूका। उसने बाद में पड़ोस में रह रहे नारायण के एक और भाई को बाहर घसीटा तथा गांववालों के सामने उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए।

 

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