महबूबा सरकार गिरने के बाद क्या कश्मीरी पंडितों के बारे में कोई फैसला होगा?
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महबूबा सरकार गिरने के बाद क्या कश्मीरी पंडितों के बारे में कोई फैसला होगा?

2018 में लोकसभा या राज्यसभा में नहीं पूछा गया कश्मीरी पंडितों से जुड़ा सवाल.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर में तीन साल से चली आ रही पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार 19 जून को तब गिर गई, जब बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. सरकार गिरने के बाद कश्मीर में राज्यपाल शासन लग गया है. इस बारे में लगातार बात हो रही है कि घाटी के हालात अब किस तरफ जाएंगे. ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की तीन दशक से चली आ रही घर वापसी की मांग पर गठबंधन सरकार के दौरान कितना काम हुआ और सरकार गिरने के बाद कश्मीरी पंडितों के बारे में कोई फैसला होगा या नहीं?

तीन साल पहले जब बीजेपी को जम्मू कश्मीर की सरकार में पहली बार भागीदार बनने का मौका मिला तो कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की उम्मीद जगी थी. इस उम्मीद का सबसे बड़ा कारण यह था कि बीजेपी हमेशा से कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने की बात कहती रही है. बीजेपी के एजेंडे में तो धारा 370 को खत्म करना भी था, लेकिन वह विवादित मामला है. लेकिन कश्मीरी पंडितों की घर वापसी को लेकर इस तरह का न तो कोई विवाद है और न ही कोई संवैधानिक संकट. फिर भी इन तीन साल में केंद्र में बीजेपी की सरकार और राज्य में बीजेपी के सरकार में शामिल होने के बावजूद इस बारे में खास प्रगति नहीं हो पाई.

कश्मीरी पंडितों के लिए संघर्ष करने वाले संघटन पनुन कश्मीर के अध्यक्ष अश्वनी चरंगू का मानना है, “ मौजूदा हालात में सरकार का ध्यान घाटी के हालात सामान्य करने पर होगा. उनकी प्राथमिकता में कश्मीरी पंडित सबसे ऊपर नहीं होंगे. लेकिन हमारी मांगों में कश्मीरी पंडित सबसे ऊपर रहेंगे.”
 
क्या है कश्मीरी पंडितों का हाल
1989-90 में जब देश में राम मंदिर आंदोलन का जोर था, उस समय कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों पर आतंकवाद का कहर टूटा और बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर चले आए. तब से कश्मीरी पंडितों को लेकर भले ही अन्य मंचों पर चर्चा होती रही हो, लेकिन 2018 में देश की संसद के दोनों सदन लोक सभा और राज्य सभा में कश्मीरी पंडितों की हालत के बारे में किसी सांसद ने सवाल नहीं उठाया.

इस बारे संसद में अंतिम सवाल सितंबर 2017 में पूछा गया था. अगस्त 2017 में लोकसभा में सरकार ने बताया कि 1990 के दशक में घाटी में उग्रवाद शुरू होने के बाद से बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का घाटी से पलायन हुआ. इस समय करीब 62,000 कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू, दिल्ली और देश के अन्य राज्यों में रह रहे हैं. इनमें से 40,000 परिवार जम्मू और 20,000 परिवार दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं.

हर कश्मीरी विस्थापित मिलती हैं ये सुविधाएं
9 अगस्त 2016 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के बाद से उन्हें राहत पहुंचाने की लिए सरकारें विभिन्न उपाय करती रही हैं. उन्होंने बताया कि कश्मीरी पंडित विस्थापितों को प्रति व्यक्ति 2500 रुपये प्रतिमाह की नकद राहत राशि दी जाती है. इसके अलावा हर परिवार के हर व्यक्ति को हर महीने 9 किलो चावल, दो किलो आटा और एक किलो चीनी दी जाती है. राजनाथ ने बताया की प्रधानमंत्री राहत पैकेज 2004 के तहत जम्मू में 2 कमरे वाले 5242 आवास और शेखपुरा बडगाम में 200 फ्लैट बनाए गए हैं. इसके बाद 2008 के प्रधानमंत्री राहत पैकेज के तहत 1917 विस्थापित युवकों को राज्य सरकार में नौकरी दी गई. नौकरी पाए लोगों के रहने के लिए 505 अस्थायी निवास भी बनाए गए. यह दोनों काम यूपीए सरकार के दौरान के थे. मोदी सरकार ने 7 नवंबर 2015 को विस्थापितों को राज्य सरकार में 3,000 नौकरियां देने की घोषणा की थी. इसके अलावा 6,000 अस्थायी आवास बनाने की भी घोषणा की गई. कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन के बाद से सन 2016 तक कश्मीरी पंडितों के राहत और पुनर्वास पर सरकार करीब 2,000 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है.

कश्मीरी पंडितों को आतंकवादियों की धमकी नहीं मिलती
सरकार से सवाल पूछा गया कि जिन कश्मीरी पंडितों ने घाटी नहीं छोड़ी है, उन्हें लगातार चरमपंथियों की ओर से घाटी छोड़ने की धमकी दी जा रही है. इस सवाल के जवाब में 1 अगस्त 2017 को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने सदन को आश्वस्त किया था कि घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों को चरमपंथियों की धमकी मिलने का कोई मामला सामने नहीं आया है.

कश्मीरी पंडितों को चाहिए अपना होमलैंड
सरकार अपनी तरफ से कश्मीरी पंडितों के लिए काम बता रही है, लेकिन चरंगू का साफ कहना है कि कश्मीरी पंडितों की दो ही मांगें हैं. पहली मांग है कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का अलग होमलैंड बनना और दूसरी मांग है कश्मीरी पंडितों पर हुई जुल्म की पूरी जांच होना और दोषियों को सजा मिलना. अगर उनकी दूसरी मांग को देखें तो तो 1989 के नरसंहार में कश्मीरी पंडितों की हत्या के 176 मामले दर्ज किए गए, इनमें से सिर्फ एक ही मामले में आरोपी को सजा सुनाई गई है. जाहिर है न्याय की यह गति कश्मीरी पंडितों का दिल दुखाने वाली है.

फिर धूमिल पड़ रही घर वापसी की उम्मीद
कश्मीरी पंडितों को मोदी सरकार से बहुत आशाएं थीं. लेकिन इस साल 19 मई को प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर के बांदीपुरा में किशनगंगा पावर प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने गए और वे श्रीनगर में भी एक कार्यक्रम में शामिल हुए. लेकिन कश्मीरी पंडितों को लेकर उन्होंने कोई खास घोषणा नहीं की. इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ऑल स्टेट कश्मीर पंडित कॉन्फ्रेंस (एएसकेपीसी) के महासचिव टी के भट ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से बहुत आशाएं थीं, लेकिन प्रधानमंत्री ने कश्मीरी पंडितों का नाम तक नहीं लिया.

प्रधानमंत्री की इस विवषता पर चरंगू कहते हैं, पीडीपी के साथ सरकार चलाने के कारण भाजपा कश्मीरी पंडितों के लिए काम नहीं कर पाई. उन्हें इस बात की खुशी है कि दो विपरीत विचारधाराओं के गठबंधन वाली यह सरकार गिर गई. लेकिन राज्यपाल शासन में भी उन्हें कश्मीरी पंडितों की समस्या का हल होने की कोई उम्मीद नहीं है. उनका कहना है कि जब तक हालात शांत नहीं होते, तब तक यह विषय सरकार के लिए घाटी में मुख्य विषय नहीं होगा.

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