इससे पहले 2003 में एनडीए की पूर्ववर्ती सरकार ने इसका सामना किया था.
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नई दिल्ली: मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष पहला अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) सदन में शुक्रवार को पेश करने जा रहा है. संसदीय आंकड़ों के मुताबिक 15 साल बाद इस तरह का पहला अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ पेश किया जाएगा. इससे पहले 2003 में एनडीए की पूर्ववर्ती सरकार ने इसका सामना किया था. उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था लेकिन विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी थी. हालांकि इससे पहले वाजपेयी सरकार के खिलाफ 1998 में भी अविश्वास प्रस्ताव आया था, उसमें उनकी सरकार महज एक वोट से हार गई थी.
हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए थे. उन्होंने इस तरह का पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी और दूसरा नरसिंह राव सरकार के खिलाफ पेश किया था. वैसे हमारे संसदीय इतिहास में अब तक 26 बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा चुका है.
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अविश्वास प्रस्ताव
संविधान के अनुच्छेद 75(3) के मुताबिक मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के लिए जिम्मेदार होती है. इस लिहाज से निर्वाचित सदन(लोकसभा) में सरकार के पास बहुमत होने की स्थिति में ही वह सत्ता में रह सकती है. लिहाजा इसकी वैधानिकता के परीक्षण की व्यवस्था लोकसभा के नियमावली में की गई है. इसके तहत कोई भी लोकसभा सदस्य यदि 50 सांसदों का समर्थन प्राप्त कर लेता है तो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के 10 दिन के भीतर ही इस पर चर्चा कराने का प्रावधान है. ऐसा नहीं होने पर प्रस्ताव को विफल मान लिया जाता है. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होने के बाद उस पर वोटिंग होती है. उस दौरान यदि सरकार बहुमत साबित करने में विफल रहती है तो सरकार गिर जाती है.
पहला अविश्वास प्रस्ताव
पहली दो लोकसभा में कोई इस तरह का प्रस्ताव नहीं आया. संसदीय इतिहास में इस तरह का पहला अवसर 1963 में आया. उस दौरान आचार्य जेबी कृपलानी ने जवाहरलाल नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. उसके पक्ष में 62 और विरोध में 347 वोट पड़े थे. लिहाजा सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा.
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इंदिरा गांधी के खिलाफ सबसे ज्यादा बार पेश हुआ प्रस्ताव
सर्वाधिक 15 से भी अधिक बार अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ पेश किए गए. उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव सरकारों के खिलाफ तीन-तीन बार ऐसे प्रस्ताव पेश हुए. 1993 में नरसिंह राव बेहद मामूली अंतर से अपनी सरकार बचाने में सफल रहे.