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नई दिल्ली: शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को छठ पूजा मनाई जाती है. आज छठ महापर्व का तीसरा दिन है. चार दिनों का छठ पर्व सबसे कठिन व्रत होता है. इसलिए इसे छठ महापर्व कहा जाता है. दीपावली से छठे दिन यानी षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है और पर्व का समापन सप्तमी तिथि को सूर्योदय के समय अर्घ्य के साथ होता है. मंगलवार (13 नवंबर) को डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा. इस बार रविवार यानी सूर्य के दिन से छठ की शुरुआत हुई है. यह बहुत शुभ संयोग बना है.
सूर्योदय – सुबह 06:41
सूर्यास्त – शाम 05:28
षष्ठी तिथि समाप्त – 04:22 (14 नवंबर 2018 की सुबह)
आज बन रहा है खास योग
13 नवंबर को तीसरे दिन सायं कालीन अर्घ्य दिया जाएगा. इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा. इस संयोग से श्रद्धालुओं पर सूर्यदेव की विशेष कृपा होगी. व्रत करने वाले सूर्य डूबने से पहले घाट पर पहुंच जाएंगे. शुभ मुहूर्त में जल में खड़े होकर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य देंगे. माना जाता है कि डूबते सूर्य की लाल किरणें अर्घ्य के जल से छनकर तन-मन और बुद्धि को तेज कर देती हैं.
ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूरी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा. टोकरी को धोकर उसमें ठेकुआ के अलावा नई फल सब्जियां भी रखी जाती हैं. जैसे कि केला, सेब, सिंघाड़ा, मूली,अदरक पत्ते समेत, गन्ना, कच्ची हल्दी, नारियल आदि रखते हैं. छठ की पूजा में बांस की टोकरी का विशेष महत्व होता है. बांस को आध्यात्म की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है. इसमें पूजा की सभी सामग्री को रखकर अर्घ्य देने के लिए पूजा स्थल तक लेकर जाते हैं.
वहीं, सूर्य को अर्घ्य देते वक्त सारा प्रसाद सूप में रखते हैं. सूप में ही दीपक जलता है. लोटा से सूर्य को दूध गंगाजल और साफ जल से फल प्रसाद के ऊपर चढ़ाते हुए अर्घ्य दिया जाता है.