निर्जला एकादशी व्रत में क्या करें कि व्रत सफल हो और पूरा फल भी मिले
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निर्जला एकादशी व्रत में क्या करें कि व्रत सफल हो और पूरा फल भी मिले

कहा गया है कि व्यक्ति को सप्ताह में एक बार व्रत या उपवास करना चाहिए इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं. 

निर्जला एकादशी व्रत में क्या करें कि व्रत सफल हो और पूरा फल भी मिले

नई दिल्ली: आज मॉडर्न साइंस से बात शुरू करते हैं. 2010 में Christopher C Kemball, Claudia T Flynn, Malcolm R Wood वैज्ञानिकों की टीम ने रिसर्च पेपर निकाला कहा कि फास्ट (व्रत या उपवास) करने से ह्यूमन बॉडी सेल में ऑटोफेगी (Autophagy) प्रोसेस बढ़ती है. 

2015 में नेचर पत्रिका में छपा कि ऑटोफेगी फास्टिंग करने से बढ़ती है. ऑटोफेगी का मतलब होता है सेल्फ इटिंग. हमारे शरीर की सेल्स(कोशिकाओं) में वो क्षमता होती है कि वह अनवांटेड और टॉक्सिक सेल्स को अपने आप खा जाती हैं. 2016 में ऑटोफेगी प्रोसेस को विस्तार से बताने के लिए जापानी सेल बायोलॉजिस्ट योशिनोरी ओहसूमी को नोबेल प्राइज मिला. उन्होंने अपने प्रयोग में पाया कि ऑटोफेगी कई बातों से बढ़ती है जिसमें से फास्टिंग भी एक है. उन्होंने यह भी पाया खराब और रोग फैलाने वाली कोशिकाओं को दूसरी कोशिकाएं खा जाती हैं. ऑटोफेगी के इस प्रोसेस में शरीर बड़ी बीमारियों से लड़ने की ताकत ले लेता है.

अब हम फास्टिंग (व्रत, उपवास) के भारतीय दर्शन पर आते हैं. भारत में कहा गया है कि व्यक्ति को सप्ताह में एक बार व्रत या उपवास करना चाहिए इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं. सनातन धर्म के सभी अंग चाहे वह जैन हो बौद्ध हो हिंदू हो या कोई और धर्म सभी में व्रत और उपवास करने को कहा गया है. यानी एक बात तो है कि विज्ञान जिसको आज साबित कर रहा है हम वह हजारों सालों से करते आ रहे हैं.

भारत में व्रत और उपवास को आध्यात्मिक शक्तियों से भी जोड़ा गया है, एकादशी का व्रत भारतीय दर्शन में ऐसा बताया गया है कि वो एक दिन में ही खत्म नहीं होता, बल्कि दूसरे दिन खत्म होता है. यानी यहां पेट को एक रीजनेबल समय दिया जाता हैं ताकि वह अपनी मेटाबॉलिक एक्टिविटी को अपने हिसाब से एडजस्ट कर सके. 

एकादशी व्रत का विधान कुछ इस तरह है कि आपको इसमें अनाज नहीं खाना है. विशेषकर चावल दाल चना गेहूं और इन से बनी हुई चीज बिल्कुल ही नहीं खानी है. मांसाहार का सेवन बिल्कुल नहीं करना है. फल या पानी ले सकते हैं. लेकिन साल में एक बार निर्जला एकादशी आती है, उसमें पानी भी नहीं लेने का विधान है. यह अलग बात है कि कुछ लोग जो सह नहीं पाते वह पानी पीकर भी निर्जला एकादशी का व्रत रखते हैं.अब आते हैं निर्जला एकादशी का व्रत कैसे करें कि उसका पूरा फल मिले.

एकादशी की तिथि वैसे तो 1 जून दोपहर से ही शुरू हो गई थी लेकिन सूर्योदय के समय जो तिथि होती है उस हिसाब से व्रत किया जाता है. यानी 2 जून के सूर्योदय मैं एकादशी की तिथि थी तो उस दिन ही व्रत किया जाएगा. लेकिन यह गृहस्थ लोगों के लिए नियम है. जो सन्यासी हैं उनके लिए व्रत 1 जून से ही चालू हो गया था.

आध्यात्मिक रूप से कहा गया है कि व्रत को असरदार बनाने और उसका लाभ लेने के लिए सात्विक विचारों के साथ मानसिक शुद्धि के साथ व्रत या उपवास किया जाना चाहिए.
एकादशी भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है. पंडित सकला नंद बलोदी कहते हैं कि इस दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र की माला जाप करना चाहिए. अनाज न खाना चाहिए और न ही इसका दान करना चाहिए न ही पानी का दान करना चाहिए. कुछ लोग छबील लगाते हैं इस दिन वह पूर्णत:गलत है, यह क्या बात हुई कि आप निर्जल रहेंगे व्रत का लाभ लेने के लिए और दूसरों को पानी पिला रहे हैं.

हां, यह जरूर हो सकता है कि व्रत का पारायण यानी व्रत जब खत्म होगा आज की स्थिति में 3 जून सुबह व्रत खत्म होगा. तो पारायण के मुहूर्त के बाद आप अनाज दान भी कर सकते हैं, जल दान भी कर सकते हैं, छबील बांट सकते हैं. दान भी किसको देना है यह ध्यान रहे, जिनको जरूरत है उनको दान दीजिए, जो हर तरह से संपन्न हैं, उनको दान देने का कोई मतलब नहीं. कर्मकांडी ब्राह्मण को दान देने का महत्व जरूर है. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि आपके आसपास में कोई जरूरत वाला या गरीब दिखे उसको नजरअंदाज कर देना.

 एकादशी भले ही भगवान विष्णु से जुड़ी हुई तिथि है लेकिन ध्यान रहे भगवान विष्णु के आराध्य भगवान शिव हैं और शिव के आराध्य भगवान विष्णु है. इसलिए एकादशी में भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा भी होनी चाहिए. 

यह भी ध्यान रहे कि सारी पूजा में, व्रत या उपवास में आप के भाव क्या है, आध्यात्मिक क्रिया का फल लेने के लिए सबसे बड़ा पासवर्ड है भाव यानी मन के अंदर क्या चल रहा है. अगर भाव ठीक नहीं होंगे तो पासवर्ड सही नहीं लगेगा और उसका फल नहीं मिलेगा.

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