Ram Katha: राज्याभिषेक के बाद भगवान शिव ने अयोध्या पहुंच कर श्री रघुनाथ की स्तुति की
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Ram Katha: राज्याभिषेक के बाद भगवान शिव ने अयोध्या पहुंच कर श्री रघुनाथ की स्तुति की

Ramayan Story in Hindi: अयोध्या के राजसिंहासन पर श्री राम के बैठने के बाद सभी देवताओं ने वहां पहुंच कर उनका गुणगान किया. फिर वेदों ने भाट के रूप में पहुंच कर कई प्रकार से उनकी वंदना की और उनके चरणों में सदैव प्रेम करने का वरदान मांगा. इसके बाद भगवान शिव वहां पर स्वयं पधारे और श्री रघुनाथ जी की स्तुति करते हुए अपने रक्षा की प्रार्थना करने लगे.

राम कथा

Ramayan Story: अयोध्या के राजसिंहासन पर माता सीता के साथ श्री रघुनाथ जी के बैठते ही राजतिलक किया गया. गरीबों को अन्न, वस्त्र, स्वर्ण आभूषण आदि सामग्री दान में दी गई. देवता आकाश से नगाड़े बजाने लगे, गंधर्व और किन्नर गाने अप्सराएं नाचने लगीं. सारे देवताओं ने वहां पहुंच एक-एक कर श्री राम की स्तुति की और अपने लोकों को चले गए तो भाटों का रूप में वेद पहुंचे. वे कुछ बोलते उसके पहले ही प्रभु श्री राम ने उन्हें पहचान लिया और बिना कुछ बोले ही उनका सम्मान करते हुए बैठने को आसन दिया. वेदों ने उनके गुणों की प्रशंसा करते हुए कहा कि आपकी महिमा अपार है, जो लोग आप पर विश्वास करते हैं वे बिना परिश्रम के ही भवसागर पार कर तर जाते हैं. आपके चरणों की धूल का स्पर्श कर शिला बनीं गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या तर गईं. वेदों ने उन्हें नमस्कार करते हुए कहा कि आप प्रकृति हैं, अनादि हैं और विश्वरूप हैं.

वेदों ने प्रभु श्री राम को सद्गुणों की खान बताया

वेदों ने प्रभु श्री राम की प्रशंसा करते हुए कहा कि ब्रह्म तो अजन्मा और अद्वैत है, उसे तो केवल अनुभव से ही जाना जाता है और वह मन से परे है, ऐसा कह कर लोग ब्रह्म का ध्यान करते हैं, लेकिन हम लोग तो आपके सगुण यश का ही गुणगान करते हैं, हे करुणा के धा, आप सद्गुणों की खान हैं, हम आपसे यह वर मांगते हैं कि मन वचन और कर्म से विकारों को त्याग कर आपके चरणों में ही प्रेम करें. इस तरह प्रभु श्री राम की विनती करने के बाद वेद वहां से ब्रह्मलोक चले गए.

शिव जी ने भी श्री रघुनाथ की स्तुति की

सभी देवताओं और वेदों के वहां से जाने के बाद स्वयं शिव जी वहां पहुंचे और श्री राम जी को राज सिंहासन पर विराजमान देख कर ह्रदय से प्रसन्न हुए. उन्होंने श्री रघुनाथ जी की स्तुति करते हुए कहा कि हे श्री राम, हे रमारमण, हे जन्म मरण का संताप हरने वाले आपकी जय हो. आवागमन के भय से व्याकुल इस सेवक की रक्षा कीजिए, हे अवधपति, हे देवताओं के स्वामी, हे रमापति, मैं आपसे एक ही प्रार्थना करता हूं कि आप मेरी रक्षा कीजिए.

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