महेंद्र सिंह धोनी: 'अपने भाग्य का मालिक और अपनी आत्मा का कप्तान', पढ़िए माही के मैजिक 'मोमेंट'
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महेंद्र सिंह धोनी: 'अपने भाग्य का मालिक और अपनी आत्मा का कप्तान', पढ़िए माही के मैजिक 'मोमेंट'

महेंद्र सिंह धोनी ने कप्तानी के अपने कार्यकाल के दौरान अपनी आत्मा की आवाज पर सही समय पर सही निर्णय करने की क्षमता का अद्भुत उदाहरण पेश किया और एक बार फिर से उन्होंने अपने भारत के सीमित ओवरों के कप्तान पद से हटने का फैसला करके अपने इस कौशल को दिखाकर हर किसी को ‘स्टंप’ आउट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी को पता नहीं कि धोनी ने अंग्रेजी की कविता ‘इनविक्टस’ पढ़ी थी या नहीं या उन्होंने हालीवुड अभिनेता मोर्गन फ्रीमैन की आवाज में यह सुना कि नहीं कि ‘मैं अपने भाग्य का मालिक हूं, मैं अपनी आत्मा का कप्तान हूं। ’

महेंद्र सिंह धोनी: 'अपने भाग्य का मालिक और अपनी आत्मा का कप्तान', पढ़िए माही के मैजिक 'मोमेंट'

नई दिल्ली : महेंद्र सिंह धोनी ने कप्तानी के अपने कार्यकाल के दौरान अपनी आत्मा की आवाज पर सही समय पर सही निर्णय करने की क्षमता का अद्भुत उदाहरण पेश किया और एक बार फिर से उन्होंने अपने भारत के सीमित ओवरों के कप्तान पद से हटने का फैसला करके अपने इस कौशल को दिखाकर हर किसी को ‘स्टंप’ आउट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी को पता नहीं कि धोनी ने अंग्रेजी की कविता ‘इनविक्टस’ पढ़ी थी या नहीं या उन्होंने हालीवुड अभिनेता मोर्गन फ्रीमैन की आवाज में यह सुना कि नहीं कि ‘मैं अपने भाग्य का मालिक हूं, मैं अपनी आत्मा का कप्तान हूं। ’

कविता का भाव भिन्न हो सकता है लेकिन उसकी भावना कहीं न कहीं जुड़ी हुई है। धोनी ने कल रात जब अपना फैसला सार्वजनिक किया तो उनके मन में कहीं न कहीं ऐसे भाव बने होंगे। सुनील गावस्कर के बाद किसी भी भारतीय क्रिकेटर ने इस तरह की शिष्टता और दूरदर्शिता का परिचय नहीं दिया जैसा कि झारखंड के इस क्रिकेटर ने कल बीसीसीआई के जरिये सीमित ओवरों की कप्तानी छोड़ने की घोषणा करके दिया। जब गावस्कर ने कप्तानी से हटने का फैसला किया तो उन्होंने 1985 में बेंसन एंड हेजेस विश्व चैंपियनशिप जीती थी। इसके बाद जब उन्होंने संन्यास लिया तो चिन्नास्वामी स्टेडियम में 1987 में 96 रन की जानदार पारी खेली थी। ये ऐसे दौर थे जबकि लोग उनसे और खेलने की उम्मीद कर रहे थे। खिलाड़ियों को हम अमूमन यह कहते हुए सुनते हैं कि ‘हम रिकार्ड के लिये नहीं खेलते’लेकिन कितने इस पर अमल करते हैं। धोनी के मामले में हालांकि यह साबित होता है कि वह रिकार्ड के लिये नहीं खेलते। धोनी ने जब टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया तो वह देश की तरफ से 100 टेस्ट मैच खेलने से केवल दस टेस्ट दूर थे लेकिन उन्होंने अपनी दिल की आवाज सुनी और उस पर विश्वास किया। वह जानते थे कि विराट कोहली पद संभालने के लिये तैयार हैं।

अपने फैसले से उन्होंने कोहली को अगले विश्व कप के लिये टीम तैयार करने का 30 महीने का समय दे दिया है। इससे पता चलता है कि धोनी ने हमेशा भारतीय क्रिकेट के हित में फैसले किये। धोनी की अगुवाई में भारत ने दो विश्व कप (एक 50 ओवर और दूसरा टी20 ) जीते। धोनी भारत के सर्वकालिक महान कप्तान हैं तथा सचिन तेंदुलकर, युवराज सिंह, कपिल देव और कोहली के साथ देश के चोटी के पांच वनडे खिलाड़ियों में शामिल हैं। जिस तरह से किसी फिल्म में अभिनेता को कुछ विशिष्ट भूमिकाओं के लिये जाना जाता है उसी तरह से धोनी को दो फैसलों के लिये खास तौर पर याद किया जाएगा जिससे वह ‘कैप्टेन कूल’ बने। इनमें से पहला फैसला शुरूआती टी20 विश्व कप के फाइनल मैच में जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर सौंपना और दूसरा मुंबई में विश्व कप 2011 के फाइनल में खुद युवराज सिंह से पहले बल्लेबाजी के लिये उतरना। धोनी ने कुछ बड़े फैसले करने में कभी हिचकिचाहट नहीं दिखायी। उन्हें पता था कि सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ी आस्ट्रेलिया के बड़े मैदानों पर वनडे में टीम पर कुछ हद तक बोझ बन सकते हैं और इसलिए उन्होंने 2008 की सीबी सीरीज ( वनडे श्रृंखला ) से पहले चयन समिति को अपनी भावनाओं से अवगत कराने में देर नहीं लगायी। इस श्रृंखला के दौरान गौतम गंभीर और रोहित शर्मा ने शानदार प्रदर्शन किया और इस तरह से धोनी का फैसला सही साबित हुआ।

इस बीच ‘हेलीकाप्टर’ शाट उनकी पहचान बन गया। लेकिन ऐसे कितने खिलाड़ी हैं जो एक रन को दो या तीन रन में बदलने का महत्व जानते हों। धोनी इसमें माहिर थे। अगर तेंदुलकर एक रन लेने के लिये बहुत अच्छी तरह से अनुमान लगा लेते थे तो धोनी का विकेटों के बीच दौड़ और दो रन लेने में कोई सानी नहीं था। अपने करियर के शुरू में उनकी विकेटकीपिंग पर सवाल उठे लेकिन बाद में उन्होंने खुद के खेल को निखारा और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपरों में उनकी गिनती होने लगी। रन आउट करने में उनकी फुर्ती और समझ तो देखते ही बनती है। धोनी भले ही आक्रामक खिलाड़ी थे लेकिन हाव भाव में नहीं। उनका मानना है कि खेलों में ‘बदला’ जैसा शब्द बहुत कड़ा है। इसके अलावा हास्य विनोद में भी उनका कोई जवाब नहीं है।

एक बार डेविड वार्नर और रविंद्र जडेजा के बीच नोंकझोंक हो गयी। मैच समाप्ति पर इस बारे में धोनी से पूछा गया तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘जब स्कूली बच्चे स्नातक बनने के लिये कालेज जाते हैं तो ऐसा होता है। ’ यही नहीं जब एक आस्ट्रेलियाई पत्रकार ने विश्व टी20 सेमीफाइनल में हार के बाद उनसे संन्यास के बारे में सवाल किया तो उन्होंने उस पत्रकार को अपने साथ मंच पर बुला दिया। किसी को यह मजाकिया तो किसी को अशिष्टता लगी लेकिन धोनी तो धोनी है। धोनी का यूट्यूब पर एक पुराना वीडियो है जिसमें उन्हें फिल्म ‘कभी कभी’ का मुकेश का गीत ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ गाते हुए दिखाया गया है। धोनी ‘दो पल का शायर’ से भी अधिक हैं। वह बेहतरीन मनोरंजनकर्ता है। वह अब अपने शानदार करियर के अंतिम पड़ाव पर हैं। हमें आखिर तक उनके साथ का लुत्फ उठाना चाहिए।

 

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